अत्याचार (सूक्तियाँ): Difference between revisions

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Latest revision as of 12:08, 4 June 2017

क्रमांक सूक्तियाँ सूक्ति कर्ता
(1) अत्याचारी से बढ़कर अभागा कोई दूसरा नहीं क्योंकि विपत्ति के समय उसका कोई मित्र नहीं होता। शेख सादी
(2) ग़ुलामों की अपेक्षा उनपर अत्याचार करनेवाले की हालत ज़्यादा ख़राब होती है। महात्मा गाँधी
(3) अत्याचार करने वाला उतना ही दोषी होता है जितना उसे सहन करने वाला। तिलक
(4) अत्याचार और अनाचार को सिर झुकाकर वे ही सहन करते हैं जिनमें नैतिकता और चरित्र का अभाव होता है। कमलापति त्रिपाठी
(5) जो असहायों पर दया नहीं करता, उसे शक्तिशालियों के अत्याचार सहने पड़ते हैं। शेख सादी
(6) अत्याचार और भय दोनों कायरता के दो पहलू हैं। अज्ञात
(7) अत्याचारी से बढ़कर अभागा व्यक्ति दूसरा नहीं, क्योंकि विपत्ति के समय कोई उसका मित्र नहीं होता।
(8) यह लौकिक पुरुष के अत्याचार का बहुत निर्बल बहाना है कि नारी का सद्गुण सच्चरित्रता और आज्ञाकारिता है। राधाकृष्णन
(9) शत्रु की कृपा से मित्र का अत्याचार अधिक अच्छा है। हाफिज
(10) पापी की परिभाषा व्यक्ति के आचरण पर निर्भर करती है। अत्याचार करने वाले से सहने वाला अधिक पापी है। कंचनलता सब्बरवाल
(11) प्रशासन की जन के प्रति दुर्भावना भी एक प्रकार का अत्याचार ही है। जनतंत्र में जन से ऊपर कुछ नहीं। भगवतीचरण वर्मा
(12) बुरों पर दया करना भलों पर अत्याचार है, और अत्याचारियों को क्षमा करना पीड़ितों पर अत्याचार है। शेख सादी

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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