श्रवण देवी मंदिर हरदोई: Difference between revisions

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श्रवण देवी मंदिर [[हरदोई]] जनपद के मुख्यालय में स्थित है।
'''श्रवण देवी मंदिर''' [[उत्तर प्रदेश]] में [[हरदोई]] जनपद के मुख्यालय में स्थित है। इस मंदिर को देवी के [[शक्तिपीठ|शक्तिपीठों]] में से एक माना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर [[सती|माता सती]] के कर्ण भाग का निपात हुआ था, इसीलिए मंदिर का नाम 'श्रवण देवी मंदिर' पड़ा।
==[[लोककथा]]==
==लोककथा==
[[चित्र:Srawan com.jpg|thumb|left|श्रवण देवी मूर्ति का श्रंगार]]लोककथा है कि प्रजापति के यज्ञ मे भगवान शंकर के अपमान को सहन न कर पाने पर सती जी ने प्राण त्याग दिये थे सती जी के पार्थिव शरीर को लेकर [[शंकर|भगवान शंकर]] जी निकले। जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, सती के धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां [[शक्तिपीठ]] अस्तित्व में आया।
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ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं।  
लोककथा है कि [[दक्ष|दक्ष प्रजापति]] के [[यज्ञ]] मे भगवान [[शिव]] के अपमान को सहन न कर पाने पर माता सती ने यज्ञ की [[अग्नि]] में ही भस्म होकर अपने प्राण त्याग दिये। सती के पार्थिव शरीर को अपने कन्धे पर लेकर भगवान शिव निकल पड़े और करुण क्रन्दन करते हुए सारे जगत में भ्रमण करने लगे। इस समय समस्त सृष्टि के नष्ट हो जाने का भय देवताओं को सताने लगा। [[देवता]] [[ब्रह्मा]] और [[विष्णु]] की शरण में गये। तब भगवान विष्णु ने अपने [[चक्र अस्त्र|चक्र]] के प्रहार से सती के शरीर के कई टुकड़े कर दिये। जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए हुए वस्त्र या [[आभूषण]] आदि गिरे, वहाँ-वहाँ [[शक्तिपीठ]] अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थ स्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं।
उस समय सती जी का कर्ण भाग यहा पर गिरा इसी से इस स्थान का नाम श्रवण दामिनी देवी पड़ा । [[उत्तर प्रदेश]] के [[वाराणसी]] में विश्वेश्वर के निकट मीरघाट पर माता सती की 'कर्णमणि' (श्रंगार स्वरूप कान में धारण किया जाने वाला [[आभूषण]]) गिरी थी। यहाँ [[काशी विशालाक्षी मंदिर|विशालाक्षी शक्तिपीठ]] है।
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==ऐतिहासिक तथ्य==
==ऐतिहासिक तथ्य==
देवी भागवत में 108 शक्तिपीठों का ज़िक्र मिलता है, जिसमे 529 वे नाम के रूप मे श्रवण दामिनी देवी का उल्लेख मिलता है। यहाँ की [[जनश्रुति]] के अनुसार यहा पीपल का प्राचीन पेड़ था जिसकी खोह मे श्रवण देवी की प्राचीन मूर्ति प्राप्त हुई ऐसा कहा जाता है की उस पीपल मे स्वयम आकृति बना बिगड़ा करती थी। 1880 ई.में पूर्व खजांची सेठ समलिया प्रसाद को स्वप्न में मां का दर्शन होने पर उन्होंने इसका विकास करवाया था। इस स्थान पर प्रति वर्ष क्वार व चैत मास (नवरात्री) में तथा असाढ़-पूर्णिमा में मेला लगता है।  
देवी भागवत में 108 शक्तिपीठों का ज़िक्र मिलता है। इसमें से 'श्रवण देवी मंदिर' भी एक है। यहाँ की [[जनश्रुति]] के अनुसार यहाँ [[पीपल]] का प्राचीन पेड़ था, जिसकी खोह मे श्रवण देवी की प्राचीन मूर्ति प्राप्त हुई थी। ऐसा कहा जाता है की उस पीपल में स्वयं आकृति बनती और बिगड़ा करती थी। [[1880]] ई. में पूर्व खजांची सेठ समलिया प्रसाद को स्वप्न में माँ का दर्शन होने पर उन्होंने इसका विकास करवाया था। इस स्थान पर प्रतिवर्ष क्वार व [[चैत्र मास]] ([[नवरात्र]]) में तथा [[आषाढ़|आषाढ़ मास]] की [[पूर्णिमा]] में मेला लगता है।  
 
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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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Revision as of 05:48, 9 October 2013

thumb|श्रवण देवी मंदिर श्रवण देवी मंदिर उत्तर प्रदेश में हरदोई जनपद के मुख्यालय में स्थित है। इस मंदिर को देवी के शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती के कर्ण भाग का निपात हुआ था, इसीलिए मंदिर का नाम 'श्रवण देवी मंदिर' पड़ा।

लोककथा

thumb|left|श्रवण देवी मूर्ति का श्रंगार लोककथा है कि दक्ष प्रजापति के यज्ञ मे भगवान शिव के अपमान को सहन न कर पाने पर माता सती ने यज्ञ की अग्नि में ही भस्म होकर अपने प्राण त्याग दिये। सती के पार्थिव शरीर को अपने कन्धे पर लेकर भगवान शिव निकल पड़े और करुण क्रन्दन करते हुए सारे जगत में भ्रमण करने लगे। इस समय समस्त सृष्टि के नष्ट हो जाने का भय देवताओं को सताने लगा। देवता ब्रह्मा और विष्णु की शरण में गये। तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र के प्रहार से सती के शरीर के कई टुकड़े कर दिये। जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए हुए वस्त्र या आभूषण आदि गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थ स्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं।

उस समय माता सती का कर्ण भाग यहाँ पर गिरा था, इसी से इस स्थान का नाम 'श्रवण दामिनी देवी' पड़ा। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में विश्वेश्वर के निकट मीरघाट पर माता सती की 'कर्णमणि'[1] गिरी थी। यहाँ 'विशालाक्षी शक्तिपीठ' है।

  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें

ऐतिहासिक तथ्य

देवी भागवत में 108 शक्तिपीठों का ज़िक्र मिलता है। इसमें से 'श्रवण देवी मंदिर' भी एक है। यहाँ की जनश्रुति के अनुसार यहाँ पीपल का प्राचीन पेड़ था, जिसकी खोह मे श्रवण देवी की प्राचीन मूर्ति प्राप्त हुई थी। ऐसा कहा जाता है की उस पीपल में स्वयं आकृति बनती और बिगड़ा करती थी। 1880 ई. में पूर्व खजांची सेठ समलिया प्रसाद को स्वप्न में माँ का दर्शन होने पर उन्होंने इसका विकास करवाया था। इस स्थान पर प्रतिवर्ष क्वार व चैत्र मास (नवरात्र) में तथा आषाढ़ मास की पूर्णिमा में मेला लगता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रंगार स्वरूप कान में धारण किया जाने वाला आभूषण

बाहरी कड़ियाँ

जय मां श्रवण देवी

संबंधित लेख