कलिसन्तरणोपनिषद: Difference between revisions

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कलिसन्तरणोपनिषद

  • कृष्ण यजुर्वेद से सम्बन्धित इस उपनिषद में 'यथा नाम तथा गुण' की उक्ति को चरितार्थ करते हुए 'कलियुग' के दुष्प्रभाव से मुक्त हो जाने का अति सुगम उपाय बताया गया है। इसमें 'हरि नाम' की महिमा का ही वर्णन है। इसीलिए इसे 'हरिनामोपनिषद' भी कहा जाता है। इसमें कुल तीन मन्त्र हैं। नारद और ब्रह्मा जी के संवाद-रूप में में इस उपनिषद की रचना हुई है।
  • इसमें बताया गया है कि आत्मा के ऊपर जो आवरण पड़ा हुआ है, उसे भेदने के लिए सुगम उपाय भगवान के नाम का स्मरण है। जिस प्रकार मेघाच्छन्न सूर्य, वायु के द्वारा मेघों को हटाने पर मुक्त आकाश में चमकने लगता है, वैसे ही भगवान नाम के कीर्तन से 'ब्रह्म' का दर्शन सम्भव हो जाता है। ब्रह्मा जी ने कहा-

हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे।

  • ये सोलह नाम जपने से कलिकाल के महान पापों का नाश हो जाता है। शुद्ध-अशुद्ध, हर स्थिति में इस मन्त्र-नाम का सतत जप करने वाला भक्त, सभी तरह के बन्धनों से मुक्ति प्राप्त कर लेता है और 'मोक्ष' को प्राप्त होता है।


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