पन्नालाल पटेल: Difference between revisions

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लगभग छह दशक पूर्व [[गुजराती साहित्य]] जगत में पन्नालाल पटेल का अविर्भाव एक चमत्कार माना गया। ग्रामीण जीवन के आत्मीय एवं प्रामाणिक चित्रण के साथ ही उन्होंने लोकभाषा का प्रयोग कुछ इस प्रकार किया कि उसकी गति और गीतात्मकता गुजराती गद्य के सन्दर्भ में अपूर्व मानी गयी। पन्नालाल पटेल की सर्वोत्कृष्ट इक्कीस कहानियों की चयनिका ‘गूँगे सुर बाँसुरी के’ [[कथा साहित्य]] के सुधी पाठकों के लिए उपलब्ध हो चुकी है। इन कहानियों में उन्होंने प्रायः दलित, पीड़ित, उत्पीड़ित मनुष्य को अपना विषय बनाया है।
लगभग छह दशक पूर्व [[गुजराती साहित्य]] जगत में पन्नालाल पटेल का अविर्भाव एक चमत्कार माना गया। ग्रामीण जीवन के आत्मीय एवं प्रामाणिक चित्रण के साथ ही उन्होंने लोकभाषा का प्रयोग कुछ इस प्रकार किया कि उसकी गति और गीतात्मकता गुजराती गद्य के सन्दर्भ में अपूर्व मानी गयी। पन्नालाल पटेल की सर्वोत्कृष्ट इक्कीस कहानियों की चयनिका ‘गूँगे सुर बाँसुरी के’ [[कथा साहित्य]] के सुधी पाठकों के लिए उपलब्ध हो चुकी है। इन कहानियों में उन्होंने प्रायः दलित, पीड़ित, उत्पीड़ित मनुष्य को अपना विषय बनाया है।
==उपन्यास 'जीवी'==
==उपन्यास 'जीवी'==
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'जीवी' पन्नालाल पटेल के प्रसिद्ध उपन्यासों में से एक है। यह [[उपन्यास]] [[राजस्थान]] और [[गुजरात]] के सीमा-प्रदेशवर्ती एक [[गाँव]] पर आधारित है और इसमें आंचलिक उपन्यासों की परम्परा का नितान्त स्वाभाविक तथा अत्यन्त भव्य रूप देखने को मिलता है। इस उपन्यास के साल-सवा साल के कथा-काल में ग्राम्य-जीवन की सरलता, निश्छलता, अन्ध-विश्वास और बात पर मर मिटने की वृत्ति पग-पग पर प्रकट होती है। [[भाषा]] ठेठ ग्रामीण है, जिसमें लेखक ने अनेक बहुमूल्य अनुभव सूक्तियों के रूप में पिरो दिए हैं। लेखक का कथाशिल्प अद्वितीय है। मेले से ही उपन्यास का आरम्भ होता है और मेले से ही अन्त।
'जीवी' पन्नालाल पटेल के प्रसिद्ध उपन्यासों में से एक है। यह [[उपन्यास]] [[राजस्थान]] और [[गुजरात]] के सीमा-प्रदेशवर्ती एक [[गाँव]] पर आधारित है और इसमें आंचलिक उपन्यासों की परम्परा का नितान्त स्वाभाविक तथा अत्यन्त भव्य रूप देखने को मिलता है। इस उपन्यास के साल-सवा साल के कथा-काल में ग्राम्य-जीवन की सरलता, निश्छलता, अन्ध-विश्वास और बात पर मर मिटने की वृत्ति पग-पग पर प्रकट होती है। [[भाषा]] ठेठ ग्रामीण है, जिसमें लेखक ने अनेक बहुमूल्य अनुभव सूक्तियों के रूप में पिरो दिए हैं। लेखक का कथाशिल्प अद्वितीय है। मेले से ही उपन्यास का आरम्भ होता है और मेले से ही अन्त।
==पुरस्कार व सम्मान==
==पुरस्कार व सम्मान==

Revision as of 05:32, 24 March 2017

पन्नालाल पटेल
पूरा नाम पन्नालाल पटेल
जन्म 7 मई, 1912
जन्म भूमि डूंगरपुर, राजस्थान
मृत्यु 5 अप्रैल, 1989
मृत्यु स्थान अहमदाबाद, गुजरात
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र साहित्य रचना
भाषा गुजराती
पुरस्कार-उपाधि 'रणजितराम पुरस्कार' (1950) तथा 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' (1985)।
प्रसिद्धि गुजराती साहित्यकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी ‘गूँगे सुर बाँसुरी के’ पन्नालाल पटेल की कहानियों का संग्रह है, जिसमें उन्होंने प्रायः दलित, पीड़ित, उत्पीड़ित मनुष्य को अपना विषय बनाया है।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

पन्नालाल पटेल (अंग्रेज़ी:Pannalal Patel, जन्म: 7 मई, 1912, राजस्थान; मृत्यु: 5 अप्रैल, 1989, गुजरात) गुजराती भाषा के जानेमाने साहित्यकार थे। उन्हें 'रणजितराम पुरस्कार' तथा 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। वे गुजराती के अग्रणी कथाकार रहे। लगभग छह दशक पूर्व गुजराती साहित्य जगत में उनका अविर्भाव एक चमत्कार माना गया था।

जीवन परिचय

गुजराती साहित्यकार पन्नालाल पटेल का जन्म 7 मई, 1912 को राजस्थान राज्य के डूंगरपुर ज़िले के मंडली नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता एक साधारण किसान थे। पन्नालाल जी की शिक्षा-दीक्षा के बारे में जानकारी के रूप में कहा गया है कि उन्होंने प्राथमिक तक शिक्षा ग्रहण की थी, जिसको अंग्रेज़ी में चार मानक से पहचाना जाता है।

लेखन कार्य

पन्नालाल पटेल के लेखन कार्य के बारे में बताया जाये तो अगणित लेखन कार्य और प्रकाशन कार्य उन्होंने किया था, जिसमें उपन्यास, कहानियाँ, नाटक, जीवनी, बच्चों के साहित्य और विविध प्रकार के अन्य लेख भी शामिल हैं। उनके सहित्य का भारत की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

लगभग छह दशक पूर्व गुजराती साहित्य जगत में पन्नालाल पटेल का अविर्भाव एक चमत्कार माना गया। ग्रामीण जीवन के आत्मीय एवं प्रामाणिक चित्रण के साथ ही उन्होंने लोकभाषा का प्रयोग कुछ इस प्रकार किया कि उसकी गति और गीतात्मकता गुजराती गद्य के सन्दर्भ में अपूर्व मानी गयी। पन्नालाल पटेल की सर्वोत्कृष्ट इक्कीस कहानियों की चयनिका ‘गूँगे सुर बाँसुरी के’ कथा साहित्य के सुधी पाठकों के लिए उपलब्ध हो चुकी है। इन कहानियों में उन्होंने प्रायः दलित, पीड़ित, उत्पीड़ित मनुष्य को अपना विषय बनाया है।

उपन्यास 'जीवी'

thumb|250px|left|'जीवी' उपन्यास का आवरण पृष्ठ 'जीवी' पन्नालाल पटेल के प्रसिद्ध उपन्यासों में से एक है। यह उपन्यास राजस्थान और गुजरात के सीमा-प्रदेशवर्ती एक गाँव पर आधारित है और इसमें आंचलिक उपन्यासों की परम्परा का नितान्त स्वाभाविक तथा अत्यन्त भव्य रूप देखने को मिलता है। इस उपन्यास के साल-सवा साल के कथा-काल में ग्राम्य-जीवन की सरलता, निश्छलता, अन्ध-विश्वास और बात पर मर मिटने की वृत्ति पग-पग पर प्रकट होती है। भाषा ठेठ ग्रामीण है, जिसमें लेखक ने अनेक बहुमूल्य अनुभव सूक्तियों के रूप में पिरो दिए हैं। लेखक का कथाशिल्प अद्वितीय है। मेले से ही उपन्यास का आरम्भ होता है और मेले से ही अन्त।

पुरस्कार व सम्मान

भारतीय साहित्य में विशिष्ट योगदान के लिए पन्नालाल पटेल को 1950 में 'रणजितराम पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था और 1985 में 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया था।

मृत्यु

पन्नालाल पटेल की मृत्यु 5 अप्रैल सन 1989 को अहमदाबाद, गुजरात में हुई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख