कृष्ण प्रथम: Difference between revisions
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Revision as of 08:51, 21 March 2011
- दन्तिदुर्ग के कोई पुत्र नहीं था। अतः उसकी मृत्यु के बाद उसका चाचा कृष्णराज मान्यखेट के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ।
- राष्ट्रकूटों के द्वारा परास्त होने के बाद भी चालुक्यों की शक्ति का पूर्णरूप से अन्त नहीं हुआ था। उन्होंने एक बार फिर अपने उत्कर्ष का प्रयत्न किया, पर उन्हें सफलता नहीं मिली।
- दंतिदुर्ग के चाचा एवं उत्तराधिकारी कृष्ण प्रथम ने बादामी के चालुक्यों के अस्तित्व को पूर्णतः समाप्त कर दिया।
- उसने मैसूर के गंगो की राजधानी मान्यपुर एवं लगभग 772 ई. में हैदराबाद को अपने अधिकार क्षेत्र में कर लिया। उसने सम्भवतः दक्षिण कोंकण के कुछ भाग को भी जीता था। इसके प्रतिहार राजा ने द्वारपाल का कार्य किया।
- चालुक्यों की शक्ति को अविकल रूप से नष्ट करके राष्ट्रकूट राजा कृष्णराज ने कोंकण और वेंगि की भी विजय की।
- पर कृष्णराज की ख्याति उसकी विजय यात्राओं के कारण उतनी नहीं है, जितनी कि उस 'कैलाश मन्दिर' के कारण है, जिसका निर्माण उसने एलोरा में पहाड़ काटकर कराया था।
- एलोरा के गुहा मन्दिरों में कृष्णराज द्वारा निर्मित कैलाश मन्दिर बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है, और उसकी कीर्ति को चिरस्थायी रखने के लिए पर्याप्त है। उसने ऐलोरा में सुप्रसिद्ध गुहा मंदिर (कैलाशनाथ मंदिर) का एक ही चट्टान काटकर निर्माण करवाया।
- यह एक आयताकार प्रांगण के बीच स्थित है तथा द्रविड़ कला का अनुपम उदाहरण है।
- उसका भाई गोविन्द अत्यन्त कमज़ोर शासक होने के कारण अधिक दिन तक शासन नहीं कर सका।
- कृष्ण प्रथम ने 'राजाधिराज परमेश्वर' की उपाधि ग्रहण की।
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