प्रमाणमंजरी: Difference between revisions
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Revision as of 10:30, 19 July 2011
- प्रमाणमंजरी ग्रंथ सर्वदेव रचित है।
- प्रमाणमंजरी ग्रन्थ में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय और अभाव का सात प्रकरणों में विश्लेषण किया गया है।
- इस वैशेषिक ग्रन्थ में भाव और अभाव भेद से पदार्थों का विभाग किया गया है।
- इसमें छ: हेत्वाभास और दो प्रमाण स्वीकार किए गए हैं।
- अभाव के प्रकारों के निरूपण में इसमें निम्नलिखित रूप से एक नई पद्धति अपनाई गई है—
जन्य: (प्रध्वंस:) |
अजन्य: |
विनाशी (प्रागभाव:) |
अविनाशी |
समानाधकिरणानिषेध:
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असमानाधिकरणनिषेध:
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- इसके रचयिता सर्वदेव का समय पन्द्रहवीं शती से पूर्व माना जाता है।
- प्रमाणमंजरी पर अद्वयारण्य, वामनभट्ट और बलभद्र द्वारा टीकाओं की रचना की गई है।
- ये टीकाएँ राजस्थान पुरातन ग्रन्थामाला में प्रकाशित हुई हैं।
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