परिवर्तन (सूक्तियाँ): Difference between revisions

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Latest revision as of 14:20, 1 October 2012

क्रमांक सूक्तियाँ सूक्ति कर्ता
(1) बदलाव से पूरी मुक्ति मतलब ग़लतियों से पूरी मुक्ति है, लेकिन यह तो अकेली सर्वज्ञता का विशेषाधिकार है। सी सी काल्टन
(2) सिर्फ अतीत की जुगाली करने से कोई लाभ नहीं है।
(3) हर चीज़ बदलती है, नष्ट कोई चीज़ नहीं होती। अरविन्द घोष
(4) परिवर्तन ही सृष्टि है, जीवन है और स्थिर होना मृत्यु। जयशंकर प्रसाद
(5) स्वयं को बदल दो भाग्य बदल जायेगा। कहावत
(6) परिवर्तन नए अवसर लाता है। नीडो क्युबैन
(7) परिवर्तन को जो ठुकरा देता है वह क्षय का निर्माता है, केवलमात्र मानव व्यवस्था जो प्रगति से विमुख है वह है क़ब्रगाह। हैरल्ड विल्सन
(8) दुःखी होने पर प्रायः लोग आंसू बहाने के अतिरिक्त कुछ नहीं करते लेकिन जब वे क्रोधित होते हैं तो परिवर्तन ला देते हैं। माल्कम एक्स
(9) मजबूरी की स्थिति आने से पहले ही परिवर्तन कर लें। जैक वेल्च
(10) बहुधा वातावरण में परिवर्तन से कहीं अधिक व्यक्ति के भीतर ही बदलाव की ज़रूरत होती है। ए सी बेंसन
(11) दुनिया परिवर्तन से नफरत करती है, लेकिन यही एकमात्र वस्तु है जिससे प्रगति का जन्म हुआ है। चार्ल्स कैट्टरिंग
(12) आपके सिवाए आपकी खुशियों का नियंत्रण किसी ओर के पास नहीं है; इसलिए, आपके पास अपनी किसी भी स्थिति को परिवर्तन करने की शक्ति है। बारबरा डे एंजेलिस
(13) हमारे शरीर को नियमितता भाती है, लेकिन मन सदैव परिवर्तन चाहता है।
(14) हम मात्र प्रवचन से नहीं अपितु आचरण से परिवर्तन करने की संस्कृति में विश्वास रखते हैं।
(15) परिवर्तन के बीच व्यवस्था और व्यवस्था के बीच परिवर्तन को बनाये रखना ही प्रगति की कला है। अल्फ्रेड ह्वाइटहेड
(16) समय परिवर्तन का धन है। परंतु घड़ी उसे केवल परिवर्तन के रूप में दिखाती है, धन के रूप में नहीं। रवींद्रनाथ ठाकुर
(17) हमें वह परिवर्तन खुद बनना चाहिये जिसे हम संसार मे देखना चाहते हैं। महात्मा गाँधी
(18) अपने जीवन में परिवर्तन करने के लिए तत्काल कार्य करना आरम्भ करें, ऐसा शानदार ढ़ंग से करें, इसमें कोई अपवाद नहीं है। विलियम जेम्स
(19) मेरी पीढ़ी की महानतम खोज यह रही है कि मनुष्य अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन कर के अपने जीवन को बदल सकता है। विलियम जेम्स (1842-1910), अमरीकी दार्शनिक
(20) जब आर्थिक परिवर्तन की प्रगति बहुत बढ़ जाती है, पर शासन तंत्र जैसा का तैसा बना रहता है, तब दोनों के बीच बहुत बड़ा अंतर आ जाता है। प्राय: यह अंतर एक

आकस्मिक परिवर्तन से दूर होता है, जिसे क्रांति कहते हैं।

जवाहरलाल नेहरू
(21) परिवर्तन ही सृष्टि है, जीवन है। स्थिर होना मृत्यु है। जयशंकर प्रसाद
(22) संगत से चरित्र में परिवर्तन नहीं होता। ढाल और तलवार सदा एक साथ रहती है, पर फिर भी एक घातक है और दूसरी रक्षक। दोनों का स्वभाव भिन्न है। दयाराम

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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