महावाक्योपनिषद: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
m (Text replace - "Category: कोश" to "Category:दर्शन कोश") |
m (Text replace - "Category: पौराणिक ग्रन्थ" to "") |
||
Line 15: | Line 15: | ||
[[Category:दर्शन कोश]] | [[Category:दर्शन कोश]] | ||
[[Category:उपनिषद]] | [[Category:उपनिषद]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 07:29, 25 March 2010
महावाक्योपनिषद
अथर्ववेद से सम्बन्धित इस उपनिषद में ब्रह्मा ने देवताओं के समक्ष 'आत्मज्ञान' का रहस्य प्रकट किया है। यह आत्मज्ञान सदैव अज्ञान के अन्धकार से ढका रहता है। इसे सात्विक गुणों वाले व्यक्ति के सम्मुख ही कहना चाहिए। इसमें कुल बारह मन्त्र हैं।
- हमारे शरीर में स्थित 'आत्मा' ही 'ब्रह्म' का अंश है और यह परमात्मा की भांति सदैव प्रकाशवान रहता है। इसे ऐसा मानकर प्राण-अपान, प्राणायाम द्वारा तब तक जानने का प्रयास करना चाहिए, जब तक साधक इसे पूरी तरह आत्मसात न कर ले; क्योंकि इससे संयुक्त होते ही साधक को 'ब्रह्मज्ञान' प्राप्त हो जाता है और उसे सत्य-स्वरूप परमानन्द की अनुभूति होने लगती है।
- वह 'ब्रह्म' आत्मतत्त्व का ही आदित्य वर्ण है। उसमें अद्वैत भाव से समर्पित हो जाने के उपरान्त ही परात्पर 'ब्रह्म' की अनुभूति हो पाती है। इससे भिन्न मुक्ति का कोई दूसरा मार्ग नहीं है।
सोऽहमर्क: परं ज्योतिरर्कज्योतिरहं शिव:।
आत्मज्योतिरहं शुक्र: सर्वज्योतिरसावदोम्॥11॥
- अर्थात में ही वह चिद् आदित्य हूँ, मैं ही आदित्य-रूप वह परम ज्योति हूं, मैं ही वह शिव (कल्याणकारी तत्त्व) हूँ। मैं ही वह श्रेष्ठ आत्मा-ज्योति हूँ। सभी को प्रकाश देने वाला शुक्र (ब्रह्म) मैं ही हूँ तथा उस (परमसत्ता) के कभी अलग नहीं रहता।
- इस उपनिषद का प्रात:काल पाठ करने से रात्रि में किये हुए समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। सायंकाल पाठ करने वाला मनुष्य दिन में किये हुए पापों से मुक्त हो जाता है तथा दोनों समय पाठ करने से पांच महापातक- ब्रह्महत्या, परस्त्रीगमन, सुरापान, द्यूत-क्रीड़ा और मांसादि भक्षण तथा अन्य दूसरे जघन्य पापों से भी मुक्त हो जाता है।
उपनिषद के अन्य लिंक