देवकी बोस: Difference between revisions

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==बाहरी कड़ियाँ==
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*[http://www.indianetzone.com/33/debaki_bose_indian_movies.htm Debaki Bose, Indian Movie Director]
*[http://www.snipview.com/q/Debaki_Bose Debaki Bose]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{फ़िल्म निर्माता और निर्देशक}}
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Revision as of 11:39, 3 November 2015

देवकी बोस
पूरा नाम देवकी कुमार बोस
जन्म 25 नवम्बर, 1898
जन्म भूमि वर्धमान ज़िला, पश्चिम बंगाल
मृत्यु 11 नवम्बर, 1971
मृत्यु स्थान कोलकाता
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र फ़िल्म निर्देशन
मुख्य फ़िल्में 'चंडीदास', 'पूरन भगत', 'मीराबाई', 'सीता', 'विद्यापति', 'सोनार काठी', 'मेघदूत', 'सागर', 'संगम' और 'अपराधी' आदि।
पुरस्कार-उपाधि 'पद्मश्री' (1958)
प्रसिद्धि फ़िल्म निर्देशक
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी देवकी बोस ही पहले बंगाली फ़िल्म निर्देशक थे, जिन्होंने 'भारतीय शास्त्रीय संगीत' के साथ 'रवीन्द्र संगीत' को मिला कर फ़िल्मों में एक अद्भुत ध्वनि माधुर्य पैदा किया।

देवकी कुमार बोस (जन्म- 25 नवम्बर, 1898, पश्चिम बंगाल; मृत्यु- 11 नवम्बर, 1971, कोलकाता) 'मूक युग' के बाद भारतीय सिनेमा के इतिहास में आये थियेटर्स युग के बेहद कल्पनाशील फ़िल्म निर्देशक थे। वे ध्वनि और संगीत के अद्भुत जानकार थे। यही कारण है कि उनके द्वारा निर्देशित सभी फ़िल्मों में संगीत का माधुर्य बिखरा पड़ा है। उनकी अधिकतर फ़िल्मों में राय चन्द बोराल ने संगीत दिया था। देवकी बोस ही वह पहले बंगाली फ़िल्म निर्देशक थे, जिन्होंने 'भारतीय शास्त्रीय संगीत' के साथ 'रवीन्द्र संगीत' को मिला कर फ़िल्मों में एक अद्भुत ध्वनि माधुर्य पैदा किया। यदि देवकी बोस 'न्यू थियेटर्स' से न जुड़ते तो संभव था कि 'न्यू थियेटर्स' की वह प्रसिद्धि नहीं होती जो आज है।

जन्म

देवकी बोस का जन्म 25 नवम्बर, 1898 ई. को वर्धमान ज़िला, पश्चिम बंगाल में हुआ था। उनके पिता अपने समय के एक नामी वकील थे। जिन दिनों देवकी बोस अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर रहे थे, उस समय देश को स्वतंत्रता दिलाने के कई क्रांतिकारी अपनी गतिविधियाँ चला रहे थे। इनमें राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी सर्वप्रमुख थे।

गाँधीजी का प्रभाव

भारत की आज़ादी के लिए महात्मा गाँधी द्वारा चलाया गया 'असहयोग आन्दोलन' अपने चरम बिन्दू पर था। इस आन्दोलन से देवकी बोस स्वयं भी बहुत प्रभावित थे। इसके परिणामस्वरूप आन्दोलन में हिस्सा लेने के लिए देवकी बोस ने कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी। पढ़ाई छोड़ने के बाद वह कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में रह कर एक छोटे-से अख़बार "शक्ति" का संपादन करने लगे।

फ़िल्म निर्देशन

इन्हीं दिनों पत्रकारिता करते हुए उनकी मुलाकात धीरेन गांगुली से हुई। देवकी बोस ने धीरेन गांगुली की 'ब्रिटिश डोमिनियन कम्पनी' के लिए कई मूक फ़िल्मों की पटकथा लिखी। इसके साथ ही कुछ फ़िल्मों का निर्देशन भी किया, चूँकि इन तमाम फ़िल्मों का छायांकन कृष्ण गोपाल ने किया था, इसलिए देवकी बोस से उनकी मित्रता हो गयी। कृष्ण गोपाल नवाबों के शहर लखनऊ के थे, इसलिए वह चाहते थे कि लखनऊ में रहते हुए ही फ़िल्म बनायें। लखनऊ की एक फ़िल्म कम्पनी 'यूनाइटेड फ़िल्म कारपोरेशन' एक फ़िल्म बनाना चाहती थी, जिसमें छायांकन का काम कृष्ण गोपाल को सौंपा गया था। उन्होंने फ़िल्म को निर्देशित करने के लिए देवकी बोस को कलकत्ता से बुला लिया।[1]

फ़िल्म की असफलता

वर्ष 1930 में 'द शैडो ऑफ़ डैड' फ़िल्म बन कर तैयार हुई। लेकिन यह फ़िल्म बुरी तरह से असफल हो गयी। देवकी बोस तो लखनऊ से वापस कलकत्ता चले गये, लेकिन फ़िल्म के छायाकार कृष्ण गोपाल को कम्पनी ने बंधक बना लिया और कहा कि 'वह कम्पनी छोड़ कर तब ही जा सकते हैं, जब पूरे घाटे की भरपाई करें'। यह कृष्ण गोपाल के बस में नहीं था। इसलिए वह कम्पनी के बंधक बने रहे और उम्मीद करते रहे कि देवकी बोस उन्हें छुड़ाने के लिए पैसे लेकर आएँगे। देवकी बोस ने प्रथमेश बरूआ से उन्हें अपनी फ़िल्म कम्पनी में रखने की गुजारिश की और फिर कृष्ण गोपाल को छुड़वाने के लिए भी उनसे पैसा हासिल कर लिया। इस तरह कृष्ण गोपाल देवकी बोस की वजह से ही कम्पनी के बन्धन से छूट सके।

सफलता की पाप्ति

'न्यू थियेटर्स' की फ़िल्म 'चंडीदास' की कामयाबी से देवकी बोस का नाम अचानक ही रातों रात चमक उठा। 'न्यू थियेटर्स' में उनके प्रवेश की कहानी भी फ़िल्मी-सी है। जब 'न्यू थियेटर्स' की एक के बाद एक सात फ़िल्में फ़्लॉप हो गईं, तब देवकी बोस ने 'न्यू थियेटर्स' के मालिक वीरेन्द्रनाथ सरकार से मिलने की कोशिश की। वीरेन्द्रनाथ सरकार उनसे मिल तो लिए, लेकिन जब देवकी बोस अपने साथ लाई हुई एक पटकथा उन्हें सुनाने लगे तो उन्होंने कहा कि वे यह पटकथा छायाकार नितिन बोस को सुनाएँ। नितिन बोस से देवकी बोस तीन दिनों तक मिलने की कोशिश करते रहे, लेकिन उन्होंने पलट कर देखा तक नहीं। इतना अवश्य था कि वे ये देखते रहे कि कोई सफ़ेद रंग की धोती-कुर्ता पहने युवक कई दिनों से उनके पीछे रहता है। आखिरकार चौथे दिन हिम्मत करके देवकी बोस ने नितिन बोस को अपना परिचय दिया और बताया कि उन्हें वीरेन्द्रनाथ सरकार ने उनसे मिलने के लिए कहा है।[1]

नितिन बोस ने दोपहर में लंच के समय देवकी बोस के हाथ में मौजूद कहानी को सुना और सुनते ही अभिभूत हो गये। यह कहानी और कोई नहीं, बल्कि फ़िल्म "चंडीदास" की ही पटकथा थी। 'चंडीदास' के बनते ही 'न्यू थियेटर्स' की टूटती साँसे लौट आयीं। फ़िल्म सुपरहिट हो चुकी थी, और इसके साथ ही देवकी बोस भी 'न्यू थियेटर्स' के महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व बन गये।

प्रमुख फ़िल्में

देवकी बोस ने चार दर्जन से भी ज़्यादा फ़िल्मों का सफल निर्देशन किया, जिसमें हिन्दी से अधिक बांग्ला भाषा की फ़िल्में थीं। उनके द्वारा निर्देशित प्रमुख फ़िल्मों में से कुछ निन्मलिखित हैं-

देवकी बोस द्वारा निर्देशित प्रमुख फ़िल्में[1]
क्र.सं. फ़िल्म क्र.सं. फ़िल्म
1. द शैडो ऑफ़ डैड 2. अपराधी
3. निशिर डाक 4. चंडीदास
5. राजरानी मीरा 6. पूरन भगत
7. मीराबाई 8. दुलारी बीवी
9. सीता 10. जीवन नाटक
11. इंकलाब 12. सोनार संसार
13. विद्यापति 14. सपेरा
15. नर्तकी 16. अभिनव
17. अपना घर 18. श्रीरामानुज
19. स्वर्ग से सुन्दर देश हमारा 20. मेघदूत
21. कृष्णलीला 22. अलकनंदा
23. चंद्रशेखर 24. सर शंकरनाथ
25. कवि 26. रत्नदीप
27. पथिक 28. भालोबाशा
29. नवजन्मा 30. चिरकुमार सभा
31. सोनार काठी 32. सागर संगम
33. अर्घ्य 34. अपराधी

सरल व्यक्तित्व

देवकी बोस मन के बड़े उदार और सरल व्यक्तित्व के इंसान थे। वह हमेशा उन्हीं विषयों पर फ़िल्म बनाते थे, जो विषय उन्हें अपने स्वभाव और सोच के अनुकूल लगते थे। उनकी जिन फ़िल्मों ने सफलता के नये कीर्तिमान स्थापित किए थे, उनमें 'चंडीदास' और 'पूरन भगत' के साथ-साथ फ़िल्म 'सीता' भी शामिल थी। उनके द्वारा निर्देशित फ़िल्म 'सीता' भारत की पहली ऐसी फ़िल्म थी, जिसे 'वेनिस फ़िल्म समारोह' में प्रदर्शन के लिए चुना गया था। फ़िल्म 'सीता' में राम की भूमिका अपने समय के मशहूर अभिनेता पृथ्वीराज कपूर ने और सीता की भूमिका दुर्गा खोटे ने निभाई थी। देवकी बोस की एक अन्य फ़िल्म जिसकी बहुत चर्चा होती है, वह है "विद्यापति"। इस फ़िल्म ने भी भारतीय जनता के बीच अच्छी सफलता प्राप्त की थी।

संगीत के पारखी

उनकी फ़िल्मों की सबसे बड़ी निधि उनका संगीत है। ये फ़िल्में अपनी ध्वनि और संगीत के लिए भारतीय सिनेमा में मील का पत्थर मानी जाती हैं। देवकी बोस को ध्वनियों की अद्भुत समझ थी और संगीत में वह बेहद प्रयोगधर्मी शिल्पकार के रूप में जाने जात थे। उन्होंने 'भारतीय शास्त्रीय संगीत' के साथ 'रवीन्द्र संगीत' को मिलाकर फ़िल्मों में ध्वनि और संगीत का बहुत ही माधुर्य प्रयोग किया था।[1]

अंतिम फ़िल्म

देवकी बोस ने जिस अंतिम फ़िल्म को निर्देशित किया, वह थी बांग्ला भाषा में बनी फ़िल्म 'अर्घ्य'। यह फ़िल्म उन्होंने वर्ष 1961 में बनाई थी। 'न्यू थियेटर्स' से अलग होने के बाद देवकी बोस ने 1942 से 1961 के बीच यूँ तो बीस से भी अधिक फ़िल्में बनायी थीं, लेकिन उनमें से कोई भी फ़िल्म 'चंडीदास' या 'पूरन भगत' जैसी सफलता अर्जित नहीं कर सकी, और न ही 'सीता' जैसी बौद्धिक प्रशंसा ही पाप्त कर सकी।

पुरस्कार व सम्मान

सन 1958 में देवकी बोस को भारत की सरकार ने प्रतिष्ठित "पद्मश्री" से सम्मानित किया था।

निधन

11 नवम्बर, 1971 को देवकी बोस का निधन कोलकाता में हुआ।


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