लीलावती: Difference between revisions
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Revision as of 09:18, 21 August 2010
वत्साचार्य कृत लीलावती
- लीलावती नाम से दो ग्रन्थों का प्रचलन हुआ, श्रीवत्साचार्य कृत लीलावती तथा श्री वल्लभाचार्य कृत न्याय लीलावती। न्यायकन्दली के व्याख्याता राजशेखर जैन ने श्री वत्साचार्य का उल्लेख किया।
- इसके अतिरिक्त उदयनाचार्य ने भी न्यायवार्तिक तात्पर्य टीका परिशुद्धि[1] में श्रीवत्साचार्य के मत का उल्लेख किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि इस नाम के कोई आचार्य हुए थे, किन्तु उन्होंने लीलावती नाम का जो ग्रन्थ लिखा था, वह अब उपलब्ध नहीं है।
- परिशुद्धि के द्वितीयाध्याय के आरम्भ में उपलब्ध निम्नलिखित श्लोक के आधार पर कतिपय विद्वान श्रीवत्साचार्य को उदयनाचार्य का गुरु मानते हैं-
संशोध्य दर्शितरसा मरुकूपरूपा:
टीकाकृत: प्रथम एवं गिरो गभीरा:।
तात्पर्यता यदधुना पुनरुद्यमो न:
श्रीवत्सवत्सलतयैव तथा तथापि॥
- इस आधार पर यह माना जा सकता है कि श्रीवत्साचार्य उदयनाचार्य से पहले हुए थे। किन्तु उपर्युक्त कथनों को कतिपय अन्य विद्वान प्रामाणिक नहीं मानते और श्रीवत्स का समय 1025 ई. बताते हैं।
- वस्तुत: श्रीवत्साचार्य रचित लीलावती वल्लभाचार्य रचित न्यायलीलावती से भिन्न है। हाँ ऐसे विद्वानों की भी कमी नहीं है जो पदार्थ धर्म संग्रह की प्रमुख चार टीकाओं में वल्लभाचार्य कृत न्याय लीलावती की ही परिगणना करते हैं, न कि श्री वत्साचार्य कृत लीलावती की। किन्तु ऐसा मानना तर्कसंगत नहीं है।
- वस्तुत: न्यायलीलावती भाष्य का व्याख्यान नहीं, अपितु एक स्वतंत्र ग्रन्थ है, जबकि श्री वत्साचार्यकृत लीलावती प्रशस्तपाद भाष्य का व्याख्यान है, जो कि अब उपलब्ध नहीं है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 2-1-58 3-1-27 और 5-2-11
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