रावणभाष्य: Difference between revisions

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वैशेषिक सूत्रों पर कटन्दी नाम की कोई [[टीका]] लिखी गई थी। अष्टम-नवम शताब्दी में मुरारि कवि द्वारा विरचित 'अनर्घराघव' नाटक के पंचम अंक में रावण के मुख से यह कहलाया गया है कि वह वैशेषिक कटन्दी पण्डित है। अनर्घराघव के व्याख्याकार रूचिपति उपाध्याय ने कटन्दी को रावण की रचना  बताया है। किन्तु किस रावण ने यह व्याख्या लिखी? यह भी एक ऐसा प्रश्न है, जिस पर विद्वानों का गहन मतभेद है। किसी के विचार में लंकापति [[रावण]] और किसी के मत में रावण नाम का कोई अन्य व्यक्ति इसका रचयिता है। किरणावली भास्कर में पद्मनाभी मिश्र ने [[उदयनाचार्य]] के-'सूत्रे वैशद्याभावात् भाष्यस्य विसाररत्वात्'- इन कथन का विश्लेषण करते हुए यह कहा कि उदयनाचार्य द्वारा उल्लिखित भाष्य, रावण द्वारा रचित था, किन्तु नयचक्र में तथा नयचक्र वृत्ति में कटन्दी को एक टीका कहा गया है, जिससे यह भी आभासित होता है कि कटन्दी रावण कृत भाष्य का नाम भी हो सकता है और उस भाष्य की [[टीका]] का नाम भी। हाँ, इससे इतना संकेत मिलता है कि वैशेषिक सूत्र का कोई एक भाष्य था, व्याख्याग्रन्थ था, उसका नाम कटन्दी था। अब वह उपलब्ध नहीं है। वह बहुत विस्तृत था तथा [[प्रशस्तपाद भाष्य]] से भिन्न था। उसमें उदधृत वचन प्रशस्तपाद भाष्य में नहीं मिलते। 'अन्ये तु प्रधानत्वात् आत्ममन:सन्निकर्षप्रमाणमाद्दु:' –दिङ्नाग के प्रमाणसमुच्चय में समागत इस कथा की विशालमलवती में व्याख्या करते समय अन्ये का आशय रावण आदि बताया गया।<ref>विमलावती, पृ. 194</ref> इसी प्रकार नयचक्र में तथा [[ब्रह्मसूत्र]] शांकरभाष्य की गोविन्द्रानन्द रचित व्याख्या- रत्नप्रभा में भी रावणप्रणीत भाष्य का उल्लेख है। यथा—'द्वाभ्यां द्वय्णुकाभ्याम् आरब्धकार्ये महत्त्वं दृश्यते। तस्य हेतु: प्रचयो नाम प्रशिथिलावयवसंयोग इति रावणप्रणीतभाष्ये दृश्यत इति चिरन्तनवैशेषिकदृष्ट्या इदमभिहितम्।'  
वैशेषिक सूत्रों पर कटन्दी नाम की कोई [[टीका]] लिखी गई थी। अष्टम-नवम शताब्दी में मुरारि कवि द्वारा विरचित 'अनर्घराघव' नाटक के पंचम अंक में रावण के मुख से यह कहलाया गया है कि वह वैशेषिक कटन्दी पण्डित है। अनर्घराघव के व्याख्याकार रुचिपति उपाध्याय ने कटन्दी को रावण की रचना  बताया है। किन्तु किस रावण ने यह व्याख्या लिखी? यह भी एक ऐसा प्रश्न है, जिस पर विद्वानों का गहन मतभेद है। किसी के विचार में लंकापति [[रावण]] और किसी के मत में रावण नाम का कोई अन्य व्यक्ति इसका रचयिता है। किरणावली भास्कर में पद्मनाभी मिश्र ने [[उदयनाचार्य]] के-'सूत्रे वैशद्याभावात् भाष्यस्य विसाररत्वात्'- इन कथन का विश्लेषण करते हुए यह कहा कि उदयनाचार्य द्वारा उल्लिखित भाष्य, रावण द्वारा रचित था, किन्तु नयचक्र में तथा नयचक्र वृत्ति में कटन्दी को एक टीका कहा गया है, जिससे यह भी आभासित होता है कि कटन्दी रावण कृत भाष्य का नाम भी हो सकता है और उस भाष्य की [[टीका]] का नाम भी। हाँ, इससे इतना संकेत मिलता है कि वैशेषिक सूत्र का कोई एक भाष्य था, व्याख्याग्रन्थ था, उसका नाम कटन्दी था। अब वह उपलब्ध नहीं है। वह बहुत विस्तृत था तथा [[प्रशस्तपाद भाष्य]] से भिन्न था। उसमें उदधृत वचन प्रशस्तपाद भाष्य में नहीं मिलते। 'अन्ये तु प्रधानत्वात् आत्ममन:सन्निकर्षप्रमाणमाद्दु:' –दिङ्नाग के प्रमाणसमुच्चय में समागत इस कथा की विशालमलवती में व्याख्या करते समय अन्ये का आशय रावण आदि बताया गया।<ref>विमलावती, पृ. 194</ref> इसी प्रकार नयचक्र में तथा [[ब्रह्मसूत्र]] शांकरभाष्य की गोविन्द्रानन्द रचित व्याख्या- रत्नप्रभा में भी रावणप्रणीत भाष्य का उल्लेख है। यथा—'द्वाभ्यां द्वय्णुकाभ्याम् आरब्धकार्ये महत्त्वं दृश्यते। तस्य हेतु: प्रचयो नाम प्रशिथिलावयवसंयोग इति रावणप्रणीतभाष्ये दृश्यत इति चिरन्तनवैशेषिकदृष्ट्या इदमभिहितम्।'  


प्रकटार्थविवरण में भी यह यह कहा गया है कि—'रावणप्रणीते भाष्ये यद् द्वाभ्यां द्वय्णुकाभ्याम् आरब्धे कार्येयत् महत्त्वम् उत्पद्यते तस्य प्रचय: समवायिकारणमित्युक्तम्।'
प्रकटार्थविवरण में भी यह यह कहा गया है कि—'रावणप्रणीते भाष्ये यद् द्वाभ्यां द्वय्णुकाभ्याम् आरब्धे कार्येयत् महत्त्वम् उत्पद्यते तस्य प्रचय: समवायिकारणमित्युक्तम्।'

Revision as of 07:47, 3 January 2016

कटन्दीव्याख्या : रावणभाष्य

वैशेषिक सूत्रों पर कटन्दी नाम की कोई टीका लिखी गई थी। अष्टम-नवम शताब्दी में मुरारि कवि द्वारा विरचित 'अनर्घराघव' नाटक के पंचम अंक में रावण के मुख से यह कहलाया गया है कि वह वैशेषिक कटन्दी पण्डित है। अनर्घराघव के व्याख्याकार रुचिपति उपाध्याय ने कटन्दी को रावण की रचना बताया है। किन्तु किस रावण ने यह व्याख्या लिखी? यह भी एक ऐसा प्रश्न है, जिस पर विद्वानों का गहन मतभेद है। किसी के विचार में लंकापति रावण और किसी के मत में रावण नाम का कोई अन्य व्यक्ति इसका रचयिता है। किरणावली भास्कर में पद्मनाभी मिश्र ने उदयनाचार्य के-'सूत्रे वैशद्याभावात् भाष्यस्य विसाररत्वात्'- इन कथन का विश्लेषण करते हुए यह कहा कि उदयनाचार्य द्वारा उल्लिखित भाष्य, रावण द्वारा रचित था, किन्तु नयचक्र में तथा नयचक्र वृत्ति में कटन्दी को एक टीका कहा गया है, जिससे यह भी आभासित होता है कि कटन्दी रावण कृत भाष्य का नाम भी हो सकता है और उस भाष्य की टीका का नाम भी। हाँ, इससे इतना संकेत मिलता है कि वैशेषिक सूत्र का कोई एक भाष्य था, व्याख्याग्रन्थ था, उसका नाम कटन्दी था। अब वह उपलब्ध नहीं है। वह बहुत विस्तृत था तथा प्रशस्तपाद भाष्य से भिन्न था। उसमें उदधृत वचन प्रशस्तपाद भाष्य में नहीं मिलते। 'अन्ये तु प्रधानत्वात् आत्ममन:सन्निकर्षप्रमाणमाद्दु:' –दिङ्नाग के प्रमाणसमुच्चय में समागत इस कथा की विशालमलवती में व्याख्या करते समय अन्ये का आशय रावण आदि बताया गया।[1] इसी प्रकार नयचक्र में तथा ब्रह्मसूत्र शांकरभाष्य की गोविन्द्रानन्द रचित व्याख्या- रत्नप्रभा में भी रावणप्रणीत भाष्य का उल्लेख है। यथा—'द्वाभ्यां द्वय्णुकाभ्याम् आरब्धकार्ये महत्त्वं दृश्यते। तस्य हेतु: प्रचयो नाम प्रशिथिलावयवसंयोग इति रावणप्रणीतभाष्ये दृश्यत इति चिरन्तनवैशेषिकदृष्ट्या इदमभिहितम्।'

प्रकटार्थविवरण में भी यह यह कहा गया है कि—'रावणप्रणीते भाष्ये यद् द्वाभ्यां द्वय्णुकाभ्याम् आरब्धे कार्येयत् महत्त्वम् उत्पद्यते तस्य प्रचय: समवायिकारणमित्युक्तम्।'

किरणावली में उदयनाचार्य द्वारा उल्लिखित भाष्य पद्मनाभ मिश्र की दृष्टि से भी रावणभाष्य ही है। इस प्रकार अनर्घराघव में प्रमाणसमुच्चय की व्याख्या विशालामलवती में, रत्नप्रभा में, प्रकटार्थविवरण में, तथा किरणावली भास्कर में उपर्युक्त रूप से जिस कटन्दी भाष्य का उल्लेख है, उसको अधिकतर विद्वान लंकापति रावण कृत भाष्य मानते हैं, किन्तु कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार रावण कटन्दी का पण्डित था, न कि कटन्दी का रचयिता। फिर भी, किसी विद्वान या लंकापति रावण ने वैशेषिक सूत्र पर भाष्य लिखा था, इस बात से अधिकतर विद्वान सहमत हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विमलावती, पृ. 194

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