घृणा (सूक्तियाँ): Difference between revisions

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| (13) ||घृणा करने वाला निन्दा, द्वेष, ईर्ष्या करने वाले व्यक्ति को यह डर भी हमेशा सताये रहता है, कि जिससे मैं घृणा करता हूँ, कहीं वह भी मेरी निन्दा व मुझसे घृणा न करना शुरू कर दे।  ||  
| (13) ||घृणा करने वाला निन्दा, द्वेष, ईर्ष्या करने वाले व्यक्ति को यह डर भी हमेशा सताये रहता है, कि जिससे मैं घृणा करता हूँ, कहीं वह भी मेरी निन्दा व मुझसे घृणा न करना शुरू कर दे।  ||  
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| (14) ||चिल्‍ला कर और झल्‍ला कर बातें करना, बिना सलाह मांगे सलाह देना, किसी की मजबूरी में अपनी अहमियत दर्शाना और सिद्ध करना, ये कार्य दुनियां का सबसे कमज़ोर और असहाय व्‍यक्ति करता है, जो खुद को ताकतवर समझता है और जीवन भर बेवकूफ बनता है, घृणा का पात्र बन कर दर दर की ठोकरें खाता है।  ||  
| (14) ||चिल्‍ला कर और झल्‍ला कर बातें करना, बिना सलाह मांगे सलाह देना, किसी की मजबूरी में अपनी अहमियत दर्शाना और सिद्ध करना, ये कार्य दुनिया का सबसे कमज़ोर और असहाय व्‍यक्ति करता है, जो खुद को ताकतवर समझता है और जीवन भर बेवकूफ बनता है, घृणा का पात्र बन कर दर दर की ठोकरें खाता है।  ||  
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| (15) ||सत्य परायण मनुष्य किसी से घृणा नहीं करता है।  ||  
| (15) ||सत्य परायण मनुष्य किसी से घृणा नहीं करता है।  ||  

Latest revision as of 11:49, 3 August 2017

क्रमांक सूक्तियाँ सूक्ति कर्ता
(1) संकटों से घृणा की जाए, तो वे बड़े हो जाते हैं। एडमंड बर्क
(2) घृणा पाप से करो, पापी से नहीं। महात्मा गाँधी
(3) जो सच्चाई पर निर्भर है वह किसी से घृणा नहीं करता। नेपोलियन
(4) घृणा और प्रेम दोनों अंधे हैं। कहावत
(5) घृणा हृदय का पागलपन है। बायरन
(6) घृणा घृणा से कभी कम नहीं होती, प्रेम से ही होती है। बुद्ध
(7) ईर्ष्या करने वालों का सबसे बड़ा शत्रु उसकी ईर्ष्या ही है। तिरुवल्लुवर
(8) ईर्ष्यालु को मृत्यु के सामान दुःख भोगना पड़ता है। वेदव्यास
(9) क्रोध से धनि व्यक्ति घृणा और निर्धन तिरस्कार का पात्र होता है। कहावत
(10) ‘भय’ और ‘घृणा’ ये दोनों भाई-बहन लाख बुरे हों पर अपनी माँ बर्बरता के प्रति बहुत ही भक्ति रखते हैं। जो कोई इनका सहारा लेना चाहता है, उसे ये सब से पहले अपनी माँ के चरणों में डाल जाते हैं। बर्ट्रेंड रसेल
(11) प्रत्येक व्यक्ति को सफलता प्रिय है लेकिन सफल व्यक्तियों से सभी लोग घृणा करते हैं। जान मैकनरो
(12) तीन से घृणा न करो - रोगी से, दुखी से और निम्न जाती से। मुहम्मद साहब
(13) घृणा करने वाला निन्दा, द्वेष, ईर्ष्या करने वाले व्यक्ति को यह डर भी हमेशा सताये रहता है, कि जिससे मैं घृणा करता हूँ, कहीं वह भी मेरी निन्दा व मुझसे घृणा न करना शुरू कर दे।
(14) चिल्‍ला कर और झल्‍ला कर बातें करना, बिना सलाह मांगे सलाह देना, किसी की मजबूरी में अपनी अहमियत दर्शाना और सिद्ध करना, ये कार्य दुनिया का सबसे कमज़ोर और असहाय व्‍यक्ति करता है, जो खुद को ताकतवर समझता है और जीवन भर बेवकूफ बनता है, घृणा का पात्र बन कर दर दर की ठोकरें खाता है।
(15) सत्य परायण मनुष्य किसी से घृणा नहीं करता है।
(16) मैं उक्तियों से घृणा करता हूँ। वह कहो जो तुम जानते हो। इमर्सन
(17) मुझे जितनी जहन्नुम से फाटकों से घृणा है उतनी ही उस व्यक्ति से घृणा है जो दिल में एक बात छुपाकर दूसरी कहता है। होमर
(18) ईर्ष्‍या या घृणा के के विचार मन में प्रवेश होते ही खुशी गायब हो जाती है, प्रेम व शुभ-भावना युक्‍त विचारों से उदासी दूर हो जाती है। अज्ञात
(19) मानव हृदय में घृणा, लोभ और द्वेष वह विषैली घास हैं जो प्रेम रूपी पौधे को नष्ट कर देती है। सत्य साईं बाबा
(20) जो दूसरों से घृणा करता है वह स्वयं पतित होता है। स्वामी विवेकानन्द
(21) मानसिक बीमारियों से बचने का एक ही उपाय है कि हृदय को घृणा से और मन को भय व चिन्ता से मुक्त रखा जाय। आचार्य श्रीराम शर्मा
(22) जो मनुष्‍य अपने साथी से घृणा करता है, वह उसी मनुष्‍य के समान हत्‍यारा है, जिसने सचमुच हत्‍या की हो। स्वामी रामतीर्थ
(23) मैं अपने ट्रेनिंग सत्र के प्रत्येक मिनट से घृणा करता था, परंतु मैं कहता था – 'भागो मत, अभी तो भुगत लो, और फिर पूरी ज़िंदगी चैम्पियन की तरह जिओ' मुहम्मद अली
(24) प्रत्येक व्यक्ति को सफलता प्रिय है लेकिन सफल व्यक्तियों से सभी लोग घृणा करते हैं। जान मैकनरो
(25) मोह में हम बुराइयाँ नहीं देख पाते, लेकिन घृणा में हम अच्छाइयाँ नहीं देख पाते। इबा एज़रा
(26) ‘भय’ और ‘घृणा’ ये दोनों भाई-बहन लाख बुरे हों पर अपनी माँ बर्बरता के प्रति बहुत ही भक्ति रखते हैं। जो कोई इनका सहारा लेना चाहता है, उसे ये सब से पहले अपनी माँ के चरणों में डाल जाते हैं। बर्ट्रेंड रसेल
(27) घृणा के घाव बदसूरत होते हैं; और प्रेम के ख़ूबसूरत। मिगनों मैकलोलिन
(28) घृणा प्रेम से ही कम होती है, यही सर्वदा उसका स्वभाव रहा है। धम्मपद
(29) इस संसार में घृणा घृणा से भी कभी कम नहीं, घृणा प्रेम से ही कम होती है, यही सर्वदा उसका स्वभाव रहा है। धम्मपद
(30) सभी प्रकार की घृणा का अर्थ है आत्मा के द्वारा आत्मा का हनन। इसलिए प्रेम ही जीवन का यथार्थ नियामक है। प्रेम की अवस्था को प्राप्त करना ही सिद्धावस्था है। विवेकानंद
(31) घृणा और द्वेष जो बढ़ा है, वह शीघ्र ही पतन के गह्वर में गिर पड़ता है। हजारीप्रसाद द्विवेदी
(32) जहां प्रेम जितना उग्र होता है वहां वैसी ही तीखी घृणा भी होती है। अज्ञेय
(33) संकटों से घृणा की जाए, तो वे बड़े हो जाते हैं। एडमंड बर्क
(34) क्रोध को क्षमा से, विरोध को अनुरोध से, घृणा को दया से, द्वेष को प्रेम से और हिंसा को अहिंसा की भावना से जीतो। दयानंद सरस्वती
(35) साधारण सुधारक सदा उन लोगों से घृणा करते हैं जो उनसे आगे जाते हैं। जेम्स एंथनी फ्राउड

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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