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         '''[[रक्षाबन्धन]]''' का अर्थ है (रक्षा+बंधन) अर्थात किसी को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना। भारतीय परम्परा में विश्वास का बन्धन ही मूल है और रक्षाबन्धन इसी विश्वास का पर्व है। यह पर्व मात्र रक्षा-सूत्र के रूप में [[राखी]] बाँधकर रक्षा का वचन ही नहीं देता वरन् प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए हृदयों को बाँधने का भी वचन देता है। पहले रक्षाबन्धन बहन-भाई तक ही सीमित नहीं था, अपितु आपत्ति आने पर अपनी रक्षा के लिए अथवा किसी की आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिये किसी को भी रक्षा-सूत्र (राखी) बांधा या भेजा जाता था। भगवान [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] ने [[गीता]] में कहा है कि- ‘मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव’- अर्थात ‘सूत्र’ अविच्छिन्नता का प्रतीक है, क्योंकि सूत्र (धागा) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है। माला के सूत्र की तरह रक्षा-सूत्र (राखी) भी लोगों को जोड़ता है। [[श्रावण]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] की [[पूर्णिमा]] को भारतवर्ष में भाई-बहन के प्रेम व रक्षा का पवित्र त्योहार 'रक्षाबन्धन' मनाया जाता है।  [[रक्षाबन्धन|... और पढ़ें]]
         '''[[रक्षाबन्धन]]''' का अर्थ है (रक्षा+बंधन) अर्थात् किसी को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना। भारतीय परम्परा में विश्वास का बन्धन ही मूल है और रक्षाबन्धन इसी विश्वास का पर्व है। यह पर्व मात्र रक्षा-सूत्र के रूप में [[राखी]] बाँधकर रक्षा का वचन ही नहीं देता वरन् प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए हृदयों को बाँधने का भी वचन देता है। पहले रक्षाबन्धन बहन-भाई तक ही सीमित नहीं था, अपितु आपत्ति आने पर अपनी रक्षा के लिए अथवा किसी की आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिये किसी को भी रक्षा-सूत्र (राखी) बांधा या भेजा जाता था। भगवान [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] ने [[गीता]] में कहा है कि- ‘मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव’- अर्थात् ‘सूत्र’ अविच्छिन्नता का प्रतीक है, क्योंकि सूत्र (धागा) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है। माला के सूत्र की तरह रक्षा-सूत्र (राखी) भी लोगों को जोड़ता है। [[श्रावण]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] की [[पूर्णिमा]] को भारतवर्ष में भाई-बहन के प्रेम व रक्षा का पवित्र त्योहार 'रक्षाबन्धन' मनाया जाता है।  [[रक्षाबन्धन|... और पढ़ें]]
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मुखपृष्ठ पर चयनित एक त्योहार के लेखों की सूची

नवरात्र

        नवरात्र हिन्दू धर्म ग्रंथ एवं पुराणों के अनुसार माता भगवती की आराधना का श्रेष्ठ समय होता है। भारत में नवरात्र का पर्व, एक ऐसा पर्व है जो हमारी संस्कृति में महिलाओं के गरिमामय स्थान को दर्शाता है। वर्ष में चार नवरात्र चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ महीने की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिन के होते हैं, परंतु प्रसिद्धि में चैत्र और आश्विन के नवरात्र ही मुख्य माने जाते हैं। इनमें भी देवीभक्त आश्विन के नवरात्र अधिक करते हैं। इनको यथाक्रम वासन्ती और शारदीय नवरात्र भी कहते हैं। मान्यता है कि नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई, इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, दुर्गा सप्तशती में स्वयं भगवती ने इस समय शक्ति-पूजा को महापूजा बताया है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण है। नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुल्लिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुद्ध है। ... और पढ़ें

गणेशोत्सव

        गणेशोत्सव (गणेश + उत्सव) हिन्दू धर्म के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख उत्सव है। यह उत्सव भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से चतुर्दशी तिथि तक मनाया जाता है। यद्यपि गणेशोत्सव पूरे भारत में पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है, किंतु महाराष्ट्र में इसका विशेष महत्त्व है। गणेशोत्सव में भगवान गणेश की पूजा-अर्चना का विशेष महत्त्व है। यह भगवान गणेश को समर्पित प्रमुख तिथियों में से एक गणेश चतुर्थी से प्रारम्भ होकर 'अनन्त चतुर्दशी' (अनन्त चौदस) तक चलने वाला दस दिवसीय महोत्सव है। ... और पढ़ें

कृष्ण जन्माष्टमी

        कृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव है। योगेश्वर कृष्ण के भगवद्गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी को भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि में कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया। कृष्ण जन्मभूमि पर देश–विदेश से लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और पूरे दिन व्रत रखकर नर-नारी तथा बच्चे रात्रि 12 बजे मन्दिरों में अभिषेक होने पर पंचामृत ग्रहण कर व्रत खोलते हैं। कृष्ण जन्मभूमि के अलावा द्वारिकाधीश, बिहारीजी एवं अन्य सभी मन्दिरों में इसका भव्य आयोजन होता है, जिनमें भारी भीड़ होती है। ... और पढ़ें

नवरात्र

        नवरात्र हिन्दू धर्म ग्रंथ एवं पुराणों के अनुसार माता भगवती की आराधना का श्रेष्ठ समय होता है। भारत में नवरात्र का पर्व, एक ऐसा पर्व है जो हमारी संस्कृति में महिलाओं के गरिमामय स्थान को दर्शाता है। वर्ष में चार नवरात्र चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ महीने की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिन के होते हैं, परंतु प्रसिद्धि में चैत्र और आश्विन के नवरात्र ही मुख्य माने जाते हैं। इनमें भी देवीभक्त आश्विन के नवरात्र अधिक करते हैं। इनको यथाक्रम वासन्ती और शारदीय नवरात्र भी कहते हैं। मान्यता है कि नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई, इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, दुर्गा सप्तशती में स्वयं भगवती ने इस समय शक्ति-पूजा को महापूजा बताया है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण है। नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुल्लिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुद्ध है। ... और पढ़ें

होली

        होली भारत का प्रमुख त्योहार है। पुराणों में वर्णित है कि हिरण्यकशिपु की बहन होलिका वरदान के प्रभाव से नित्य अग्नि स्नान करती थी। हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्निस्नान करने को कहा। उसने समझा कि ऐसा करने से प्रह्लाद अग्नि में जल जाएगा तथा होलिका बच जाएगी। होलिका ने ऐसा ही किया, किंतु होलिका जल गयी, प्रह्लाद बच गये। इस पर्व को 'नवान्नेष्टि यज्ञपर्व' भी कहा जाता है, क्योंकि खेत से आये नवीन अन्न को इस दिन यज्ञ में हवन करके प्रसाद लेने की परम्परा भी है। उस अन्न को 'होला' कहते है। इसी से इसका नाम 'होलिकोत्सव' पड़ा। सभी लोग आपसी भेदभाव को भुलाकर इसे हर्ष व उल्लास के साथ मनाते हैं। होली पारस्परिक सौमनस्य एकता और समानता को बल देती है। लिंग पुराण में आया है- 'फाल्गुन पूर्णिमा को 'फाल्गुनिका' कहा जाता है, यह बाल-क्रीड़ाओं से पूर्ण है और लोगों को विभूति, ऐश्वर्य देने वाली है।' वराह पुराण में आया है कि यह 'पटवास-विलासिनी' है। ... और पढ़ें

दीपावली

        दीपावली अथवा 'दिवाली' भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। त्योहारों का जो वातावरण धनतेरस से प्रारम्भ होता है, वह आज के दिन पूरे चरम पर आता है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार कार्तिक अमावस्या को भगवान श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या लौटे थे, तब अयोध्यावासियों ने श्रीराम के राज्यारोहण पर दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था। रात्रि के समय प्रत्येक घर में धनधान्य की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी, विघ्न-विनाशक गणेश जी और विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती की पूजा-आराधना की जाती है। ब्रह्म पुराण के अनुसार इस अर्धरात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुंदर तरीक़े से सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है, वहां अंश रूप में ठहर जाती हैं। ... और पढ़ें

अहोई अष्टमी

        अहोई अष्टमी का व्रत महिलायें अपनी सन्तान की रक्षा और दीर्घ आयु के लिए रखती हैं। यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन किया जाता है। माताएँ अहोई अष्टमी के व्रत में दिन भर उपवास रखती हैं और सायंकाल तारे दिखाई देने के समय अहोई माता का पूजन किया जाता है। अहोई माता के चित्रांकन में ज़्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। यह अहोई माता गेरू आदि के द्वारा दीवार पर बनाई जाती है। इस दिन धोबी मारन लीला का भी मंचन होता है, जिसमें श्रीकृष्ण द्वारा कंस के भेजे धोबी का वध प्रदर्शन किया जाता है। ... और पढ़ें

करवा चौथ

        करवा चौथ का पर्व भारत में उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में मुख्य रूप से मनाया जाता है। करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अटल सुहाग, पति की दीर्घ आयु, स्वास्थ्य एवं मंगलकामना के लिए यह व्रत करती हैं। करवा चौथ के व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश तथा चंद्रमा का पूजन करने का विधान है। स्त्रियां चंद्रोदय के बाद चंद्रमा के दर्शन कर अर्ध्य देकर ही जल-भोजन ग्रहण करती हैं। वामन पुराण में करवा चौथ व्रत का वर्णन आता है। ... और पढ़ें

रक्षाबन्धन

        रक्षाबन्धन का अर्थ है (रक्षा+बंधन) अर्थात् किसी को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना। भारतीय परम्परा में विश्वास का बन्धन ही मूल है और रक्षाबन्धन इसी विश्वास का पर्व है। यह पर्व मात्र रक्षा-सूत्र के रूप में राखी बाँधकर रक्षा का वचन ही नहीं देता वरन् प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए हृदयों को बाँधने का भी वचन देता है। पहले रक्षाबन्धन बहन-भाई तक ही सीमित नहीं था, अपितु आपत्ति आने पर अपनी रक्षा के लिए अथवा किसी की आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिये किसी को भी रक्षा-सूत्र (राखी) बांधा या भेजा जाता था। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि- ‘मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव’- अर्थात् ‘सूत्र’ अविच्छिन्नता का प्रतीक है, क्योंकि सूत्र (धागा) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है। माला के सूत्र की तरह रक्षा-सूत्र (राखी) भी लोगों को जोड़ता है। श्रावण शुक्ल की पूर्णिमा को भारतवर्ष में भाई-बहन के प्रेम व रक्षा का पवित्र त्योहार 'रक्षाबन्धन' मनाया जाता है। ... और पढ़ें