वसुदेव: Difference between revisions
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Revision as of 09:43, 26 September 2010
- एक यदुवंशी जिनके पिता का नाम शूर और माता का नाम मारिषा था।
- ये मथुरा के राजा उग्रसेन के मन्त्री थे। पांडवों की माता कुंती वसुदेव की सगी बहन थी।
- उग्रसेन के भाई देवक की सात कन्याओं से इनका विवाह हुआ था जिनमें देवकी और रोहिणी प्रमुख थीं। कहीं पर इनकी पत्नियों की संख्या 12 बताई गई है।
- रोहिणी के आठ पुत्र थे। इनमें बलराम प्रमुख थे। देवकी के भी आठ संताने हुई जिनमें से सात को उसके चचेरे भाई कंस ने जन्म लेते ही मार डाला और आठवीं संतान श्रीकृष्ण बच गए। बाद में द्वारका में श्रीकृष्ण के स्वर्गारोहण का समाचार सुनकर वसुदेव ने भी प्राण त्याग दिए।
- भागवत तथा अन्य पुराणों के अनुसार वसुदेव कृष्ण के वास्तविक पिता, देवकी के पति और कंस के बहनोई थे। जिस प्रकार यशोदा की तुलना में देवकी का चरित्र भक्त कवियों को आकर्षित नहीं कर सका, उसी प्रकार नन्द की तुलना में वसुदेव का चरित्र भी गौण ही रहा। कृष्ण जन्म पर कंस के वध के भय से आक्रान्त वसुदेव की चिन्ता, सोच और कार्यशीलता से उनके पुत्र-स्नेह की सूचना मिलती है। यद्यपि उन्हें कृष्ण अलौकिक व्यक्तित्व का ज्ञान है फिर भी उनकी पितृसुलभ व्याकुलता स्वाभाविक ही है।[1]
- मथुरा में पुनर्मिलन के पूर्व ही वसुदेव को स्वप्न में उसका आभास मिल जाता है। वे अपनी दुखी पत्नी देवकी से इस शुभ अवसर की आशा में प्रसन्न रहने के लिए कहते हैं।[2] वसुदेव का चरित्र भागवत-भाषाकारों के अतिरिक्त सूर के समसामायिक एवं परवर्ती प्राय: सभी कवियों की दृष्टि में उपेक्षित ही रहा। आधुनिक युग में केवल 'कृष्णायन' (1/2) के अन्तर्गत उसे परम्परागत रूप में ही स्थान मिल सका है।[3]