मिश्रित ज्वालामुखी

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मिश्रित ज्वालामुखी का निर्माण जम कर ठोस रूप में परिवर्तित हुए लावा, टेफ़्रा, कुस्रन और ज्वालामुखी की राख की कई परतों के द्वारा होता है। ये ज्वालामुखी आकार में लम्बे और शंक्वाकार होत हैं। मिश्रित ज्वालामुखी को ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इनकी रचना ज्वालामुखीय उद्गार के समय निकले मिश्रित पदार्थों के विभिन्न स्तरों पर घनीभूत होने के फलस्वरूप होती है।

  • ढाल ज्वालामुखी के विपरीत, तीखी ढलान और समय-समय पर होने वाले विस्फोटक उद्गार मिश्रित ज्वालामुखी की विशेषतायें है।
  • मिश्रित ज्वालामुखियों के मुख से निकला लावा, ढाल ज्वालामुखी से निकले लावे की तुलना में अधिक गाढ़ा और चिपचिपा होता है।
  • इस ज्वालामुखी से निकला लावा आमतौर पर उद्गार के पश्चात दूर तक बहने से पहले ही ठंडा हो जाता है।
  • इनके लावे की रचना करने वाला मैग्मा अक्सर फेल्सिक होता है, जिसमें सिलिका की मात्रा उच्च से लेकर मध्य स्तर तक की होती है और कम श्यानता वाले मैफिक मैग्मा की मात्रा कम होती है।
  • फेल्सिक लावा का दूर तक प्रवाह असामान्य है, लेकिन फिर भी इसे 15 किमी (9.3 मील) तक बहते हुए भी देखा गया है।
  • ढाल ज्वालामुखी, जो कि कम ही मिलते हैं, उनके विपरीत मिश्रित ज्वालामुखियों के सबसे सामान्य प्रकार हैं।
  • दो प्रसिद्ध मिश्रित ज्वालामुखियों में से पहला 'क्राकाटोआ' है, जिसको उसके 1883 के उद्गार के लिए जाना जाता है, और दूसरा 'विसुवियस' है, जिसके उद्गार के कारण 79 ईस्वी में पॉम्पेई और हरकुलेनियम नामक दो इतालवी शहर पूरी तरह बरबाद हो गये।


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