Revision as of 10:58, 20 June 2013 by दिनेश(talk | contribs)('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Faiz-Ahmed-Faiz.jp...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मुझको शिकवा है मेरे भाई कि तुम जाते हुए
ले गए साथ मेरी उम्रे-गुज़िश्ता की किताब
उसमें तो मेरी बहुत क़ीमती तस्वीरें थीं
उसमें बचपन था मेरा, और मेरा अहदे-शबाब
उसके बदले मुझे तुम दे गए जाते-जाते
अपने ग़म का यह् दमकता हुआ ख़ूँ-रंग गुलाब
क्या करूँ भाई, ये एज़ाज़ मैं क्यूँ कर पहनूँ
मुझसे ले लो मेरी सब चाक क़मीज़ों का हिसाब
आख़िरी बार है लो मान लो इक ये भी सवाल
आज तक तुमसे मैं लौटा नहीं मायूसे-जवाब
आके ले जाओ तुम अपना ये दहकता हुआ फूल
मुझको लौटा दो मेरी उम्रे-गुज़िश्ता की किताब