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यह रात उस दर्द का शजर है
जो मुझसे तुझसे अज़ीमतर है
अज़ीमतर है कि उसकी शाख़ों में
लाख मशा'ल-बकफ़ सितारों
के कारवाँ, घिर के खो गए हैं
हज़ार महताब उसके साए
में अपना सब नूर, रो गए हैं
यह रात उस दर्द का शजर है
जो मुझसे तुझसे अज़ीमतर है
मगर इसी रात के शजर से
यह चंद लमहों के ज़र्द पत्ते
गिरे हैं और तेरे गेसुओं में
उलझ के गुलनार हो गए हैं
इसी की शबनम से, ख़ामुशी के
यह चंद क़तरे, तेरी ज़बीं पर
बरस के, हीरे पिरो गए हैं