जमदग्नि
जमदग्नि एक परम तेजस्वी ऋषि, जो 'भृगुवंशी' ऋचीक के पुत्र थे तथा जिनकी गणना 'सप्तऋषियों' में होती है। इनकी पत्नी राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका थीं। भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र परशुराम थे, जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
परिचय
जमदग्नि ऋषि का जन्म भृगुवंशी ऋचीक के यहाँ पुत्र रूप में हुआ था। जमदग्नि की पत्नी राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका थीं। जमदग्नि ने अपनी तपस्या एवं साधना द्वारा उच्च स्थान प्राप्त किया था, जिससे सभी उनका आदर सत्कार करते थे। ऋषि जमदग्नि तपस्वी और तेजस्वी ऋषि थे। उनके और रेणुका के पाँच पुत्र थे- 'रुक्मवान', 'सुखेण', 'वसु', 'विश्ववानस' और 'परशुराम'।
पुत्रेष्टि यज्ञ
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब पृथ्वी पर हैहय वंशीय क्षत्रिय राजाओं का आतंक एवं अत्याचार बढ़ गया, तब सभी लोग इन राजाओं द्वारा त्रस्त हो ग्ये। ब्राह्मण एवं साधु असुरक्षित हो गये। धर्म कर्म आदि के कामों में हैहय राजा व्यवधान उत्पन्न करने लगते थे। ऐसे समय में भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि 'पुत्रेष्टि यज्ञ' सम्पन्न करते हैं, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव वरदान स्वरूप उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान देते हैं और उनकी पत्नी रेणुका से उन्हें पाँच पुत्र प्राप्त होते हैं। इन सभी में परशुराम उन हैहय वंशी राजाओं का अंत करते हैं।[1]
पुराणों के अनुसार
हिंडन नदी के तट पर प्रकृति की गोद में स्थापित 'परशुरामेश्वर मंदिर' काफ़ी पुराना है। लोक मान्यता के अनुसार जिस स्थान पर यह मंदिर है, वह पहले कभी 'कजरी वन' के नाम से जाना जाता था। पुराणों के अनुसार हिंडन नदी को 'पंचतीर्थी' कहा गया है। पंचतीर्थी के किनारे कजरी वन में जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका के साथ रहते थे। एक दिन जमदग्नि ऋषि की अनुपस्थिति में हस्तिनापुर के राजा सहस्रबाहु शिकार खेलते हुए आश्रम के निकट पहुँच गये। रेणुका उनको आदर के साथ आश्रम में ले लायीं। यहाँ कामधेनु के दूध से उनका सत्कार किया। सहस्रबाहु को कामधेनु की खूबियों का पता चला तो वह उसे जबरन ले जाने लगा। जब वह इस प्रयास में सफल नहीं हुआ तो रेणुका को जबरन अपने साथ ले गया। बाद में ऋषि पत्नी को सहस्रबाहु ने मुक्त कर दिया। वह जमदग्नि ऋषि के आश्रम में पहुँची तो ऋषि ने उन्हें अपनाने से इन्कार कर दिया। ऋषि ने अपने तीन पुत्रों को रेणुका का सिर काटने का आदेश दिया तो उन्होंने मना कर दिया। ऋषि ने तीनों पुत्रों को पत्थर बनने का शाप दिया। चौथे पुत्र परशुराम को अपनी माता का सिर कलम करने का आदेश दिया तो उन्होंने पिता की आज्ञा स्वीकार करते रेणुका का सिर कलम कर दिया। परशुराम को पश्चाताप हुआ तो उन्होंने शिवलिंग स्थापित कर घोर तपस्या शुरू कर दी। एक दिन भगवान शिव ने परशुराम को दर्शन दिये। शिवजी ने परशुराम को रेणुका के जीवित होने का वरदान दिया और एक फरसा देते हुए कहा कि वह जिस भी युद्ध में लड़ेगा, जीत अवश्य होगी।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जमदग्नि ऋषि (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 20 अगस्त, 2013।
- ↑ परशुराम ने किया था पुरा में शिवलिंग स्थापित (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 2मई, 2011।
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- REDIRECT साँचा:ऋषि मुनि