जयशंकर प्रसाद के अनमोल वचन

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जयशंकर प्रसाद के अनमोल वचन

[[चित्र:Jaishankar-Prasad.jpg|thumb|जयशंकर प्रसाद]]

  • कष्ट हृदय की कसौटी है।
  • सच्चा सौहार्द वह होता है, जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाए।
  • संसार ही युद्ध-क्षेत्र है, इससे पराजित होकर शस्त्र अर्पण करके जीने से क्या लाभ ?
  • इस भीषण संसार में प्रेम करनेवाले हृदय को खो देना, सबसे बड़ी हानि है।
  • मानव केवल अपने सुख से ही सुखी नहीं होता, कभी-कभी दूसरों को दुखी करके, अपमानित करके, अपने मान को, सुख को प्रतिष्ठित करता है।
  • जागरण का अर्थ है कर्मक्षेत्र में अवतीर्ण होना और कर्मक्षेत्र क्या है? जीवन का संग्राम।
  • प्रेम में स्मृति का ही सुख है। एक टीस उठती है, वही तो प्रेम का प्राण है।
  • प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु से सरल हृदयों की वस्तु है।
  • महत्वाकांक्षा का मोती निष्ठुरता की सीपी में रहता है।
  • सौभाग्य और दुर्भाग्य मनुष्य की दुर्बलता के नाम हैं। मैं तो पुरुषार्थ को ही सबका नियामक समझता हूं। पुरुषार्थ ही सौभाग्य को खींच लाता है।
  • प्रमाद में मनुष्य कठोर सत्य का भी अनुभव नहीं करता।
  • ऐसा विनय प्रवंचकों का आवरण है, जिसमें शील न हो। शील तो परस्पर सम्मान की घोषणा करता है।
  • मेघ-संकुल आकाश की तरह जिसका भविष्य घिरा हो, उसकी बुद्धि को तो बिजली के समान चमकना ही चाहिए।
  • संपूर्ण संसार कर्मण्य वीरों की चित्रशाला है। वीरता भी एक सुंदर कला है, उस पर मुग्ध होना आश्चर्य की बात नहीं।
  • मानव स्वभाव है, वह अपने सुख को विस्तृत करना चाहता है। और भी, केवल अपने सुख से ही सुखी नहीं होता, कभी-कभी दूसरों को दुखी करके, अपमानित करके, अपने मान को, सुख को प्रतिष्ठित करता है।
  • क्षमा पर मनुष्य का अधिकार है, वह पशु के पास नहीं मिलती। प्रतिहिंसा पाशव धर्म है।
  • किसी की अधिक प्रशंसा करना उसे धोखा देना है।


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें



टीका टिप्पणी और संदर्भ

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