लक्ष्मीनारायण मिश्र के अनमोल वचन

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लक्ष्मी नारायण मिश्र के अनमोल वचन
  • बिना विवेक के वीरता महासमुद्र की लहर में डोंगी सी डूब जाती है।
  • लोक-जीवन से विमुख होकर निर्वाण की कामना विडंबना है।
  • जिस देह से श्रम नहीं होता, पसीना नहीं निकलता, सौंदर्य उस देह को छोड़ देता है।
  • कान से सुनकर लोग चलते हैं, आंख से देखकर चलने वाले कम हैं।
  • बिना विनय के विजय नहीं टिकती।
  • कर्म से हीन बन जाना सन्न्यास नहीं है। कर्म के समुद को पार कर जाना ही सन्न्यास है।
  • विवेकहीन बल काल के समुद्र में डोंगी की भांति डूब जाता है।
  • शस्त्र जहां हार जाते हैं, वहीं बुद्धि जीतती है।
  • जो श्रम नहीं करता, दूसरों के श्रम से जीवित रहता है, सबसे बड़ा हिंसक होता है।
  • सदाचार मनुष्य की रुचि से पैदा नहीं होता। उसे तो पैदा करती है उसकी धरती जिस पर वह पैदा होता है। इसी धरती के गुण और स्वभाव के अनुसार हमारा स्वभाव बनता है।
  • संदेह का भार पुरुष ढोता है, स्त्री विश्वास चाहती है।
  • अपढ़ भी संस्कारपूर्ण हो सकता है और विद्वान भी संस्कारहीन।
  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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