Difference between revisions of "दोस्ती-दुश्मनी और मान-अपमान -आदित्य चौधरी"
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+ | [[चित्र:Facebook-icon-2.png|20px|link=http://www.facebook.com/profile.php?id=100000418727453|फ़ेसबुक पर आदित्य चौधरी]] [http://www.facebook.com/profile.php?id=100000418727453 आदित्य चौधरी] | ||
<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>दोस्ती-दुश्मनी और मान-अपमान<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | <div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>दोस्ती-दुश्मनी और मान-अपमान<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | ||
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+ | [[चित्र:Court-of-nand.jpg|राजा नन्द का दरबार|border|right|400px]] | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | न जाने कितनी पुरानी बात है कि न जाने किस राज्य में वीर नाम का एक युवक रहता था। एक बार वीर को दूसरे राज्य में किसी काम से जाना पड़ा और दुर्भाग्य से वीर वहाँ एक झूठे अपराध में फँस गया। गवाहों की ग़ैर मौजूदगी के कारण राजा ने उसे फाँसी का हुक़्म सुना दिया और मुनादी करवा दी गई- | |
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− | न जाने कितनी पुरानी बात है कि न जाने किस राज्य में वीर नाम का एक युवक रहता था। एक बार वीर को दूसरे राज्य में किसी काम से जाना पड़ा और दुर्भाग्य से वीर वहाँ एक झूठे अपराध में फँस गया। गवाहों की ग़ैर मौजूदगी के कारण राजा ने उसे फाँसी का हुक़्म सुना दिया और मुनादी करवा दी गई- | ||
"हर ख़ास-ओ-आम को सूचित किया जाता है कि अपराधी वीर को ठीक एक महीने बाद...याने पूर्णमासी के दिन... हमारे राज्य की प्रथा के अनुसार... प्रजा के सामने... सार्वजनिक रूप से फाँसी पर लटकाया जाएगाऽऽऽ ।" | "हर ख़ास-ओ-आम को सूचित किया जाता है कि अपराधी वीर को ठीक एक महीने बाद...याने पूर्णमासी के दिन... हमारे राज्य की प्रथा के अनुसार... प्रजा के सामने... सार्वजनिक रूप से फाँसी पर लटकाया जाएगाऽऽऽ ।" | ||
− | जेल में बंद वीर बहुत परेशान था। उसे परेशान देखकर पहरेदार ने कहा- | + | जेल में बंद वीर बहुत परेशान था। उसे परेशान देखकर पहरेदार ने कहा- |
"फाँसी की सज़ा से तुम परेशान हो गए हो। अब मरना तो है ही... आराम से खाओ-पीओ और मस्त रहो" | "फाँसी की सज़ा से तुम परेशान हो गए हो। अब मरना तो है ही... आराम से खाओ-पीओ और मस्त रहो" | ||
"मुझे अपने मरने की चिन्ता नहीं है। मेरी परेशानी कुछ और है... क्या मुझे जेल से कुछ दिन की छुट्टी मिल सकती है ?" | "मुझे अपने मरने की चिन्ता नहीं है। मेरी परेशानी कुछ और है... क्या मुझे जेल से कुछ दिन की छुट्टी मिल सकती है ?" | ||
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"मेरी माँ अन्धी है और घर पर अकेली है। मुझे उसके शेष जीवन का पूरा प्रबंध करने के लिए जाना है जिससे मेरे मरने के बाद उसे कोई कष्ट न हो। उसका सारा प्रबंध करके मैं एक महीने के भीतर ही लौट आऊँगा।... क्या कोई तरीक़ा... क्या कोई क़ानून ऐसा नहीं है कि मुझे कुछ दिनों की छुट्टी मिल जाय ?" | "मेरी माँ अन्धी है और घर पर अकेली है। मुझे उसके शेष जीवन का पूरा प्रबंध करने के लिए जाना है जिससे मेरे मरने के बाद उसे कोई कष्ट न हो। उसका सारा प्रबंध करके मैं एक महीने के भीतर ही लौट आऊँगा।... क्या कोई तरीक़ा... क्या कोई क़ानून ऐसा नहीं है कि मुझे कुछ दिनों की छुट्टी मिल जाय ?" | ||
"देखो भाई ! तुम पढ़े-लिखे और सज्जन आदमी मालूम होते हो... तुम्हारी समस्या को मैं राज्य के मंत्री तक पहुँचवा दूँगा... बस इतना ही मैं तुम्हारे लिए कर सकता हूँ।" | "देखो भाई ! तुम पढ़े-लिखे और सज्जन आदमी मालूम होते हो... तुम्हारी समस्या को मैं राज्य के मंत्री तक पहुँचवा दूँगा... बस इतना ही मैं तुम्हारे लिए कर सकता हूँ।" | ||
− | अगले दिन पहरेदार ने बताया- | + | अगले दिन पहरेदार ने बताया- |
"सिर्फ़ एक तरीक़ा है कि तुम छुट्टी जा सको...?" | "सिर्फ़ एक तरीक़ा है कि तुम छुट्टी जा सको...?" | ||
"वो क्या ?" | "वो क्या ?" | ||
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"पागल हो क्या ! कोई दोस्त-वोस्त नहीं होता ऐसे मौक़े के लिए..." | "पागल हो क्या ! कोई दोस्त-वोस्त नहीं होता ऐसे मौक़े के लिए..." | ||
"आप उसे ख़बर तो करवाइए..." | "आप उसे ख़बर तो करवाइए..." | ||
− | वीर और धीर की दोस्ती सारे इलाक़े में मशहूर थी। लोग उनकी दोस्ती की क़समें खाया करते थे। जैसे ही धीर को ख़बर मिली वो भागा-भागा आया और वीर को जेल से छुट्टी मिल गई। | + | वीर और धीर की दोस्ती सारे इलाक़े में मशहूर थी। लोग उनकी दोस्ती की क़समें खाया करते थे। जैसे ही धीर को ख़बर मिली वो भागा-भागा आया और वीर को जेल से छुट्टी मिल गई। |
− | धीरे-धीरे दिन गुज़रने लगे, वीर नहीं लौटा और न ही उसकी कोई ख़बर आई। धीर के चेहरे पर कोई चिन्ता के भाव नहीं थे बल्कि वह तो रोज़ाना ख़ूब कसरत करता और जमकर खाना खाता। पहरेदार उससे कहते कि वीर अब वापस नहीं आएगा तो धीर हँसकर टाल जाता। इस तरह फाँसी में केवल एक दिन शेष रह गया, तब सभी ने धीर को समझाया कि उसे मूर्ख बनाया गया है। | + | धीरे-धीरे दिन गुज़रने लगे, वीर नहीं लौटा और न ही उसकी कोई ख़बर आई। धीर के चेहरे पर कोई चिन्ता के भाव नहीं थे बल्कि वह तो रोज़ाना ख़ूब कसरत करता और जमकर खाना खाता। पहरेदार उससे कहते कि वीर अब वापस नहीं आएगा तो धीर हँसकर टाल जाता। इस तरह फाँसी में केवल एक दिन शेष रह गया, तब सभी ने धीर को समझाया कि उसे मूर्ख बनाया गया है। |
"आप लोग नहीं जानते वीर को... यदि वह जीवित है तो निश्चित लौटेगा... चाहे सूर्य पूरब के बजाय पच्छिम से उगे... लेकिन वीर अवश्य लौटेगा। एक बात और है, जिसका पता आप लोगों को नहीं है। मैंने उसे यह कहकर भेजा है कि वह कभी वापस न लौटे और मुझे ही फाँसी लगने दे... मगर मैं जानता हूँ उसे, वो नालायक़ ज़रूर लौटेगा, मेरी बात मानेगा ही नहीं !" | "आप लोग नहीं जानते वीर को... यदि वह जीवित है तो निश्चित लौटेगा... चाहे सूर्य पूरब के बजाय पच्छिम से उगे... लेकिन वीर अवश्य लौटेगा। एक बात और है, जिसका पता आप लोगों को नहीं है। मैंने उसे यह कहकर भेजा है कि वह कभी वापस न लौटे और मुझे ही फाँसी लगने दे... मगर मैं जानता हूँ उसे, वो नालायक़ ज़रूर लौटेगा, मेरी बात मानेगा ही नहीं !" | ||
− | जब सबने यह सुना कि ख़ुद धीर ने ही वीर से लौटने के लिए मना कर दिया है तो राजा को सूचना दे दी गई। | + | जब सबने यह सुना कि ख़ुद धीर ने ही वीर से लौटने के लिए मना कर दिया है तो राजा को सूचना दे दी गई। |
पूर्णमासी आ गई और फाँसी का दिन भी...। अपार भीड़ एकत्र हो गई, इस विचित्र फाँसी को देखने के लिए। जिसमें किसी के बदले में कोई और फाँसी पर चढ़ रहा था। स्वयं राजा भी वहाँ उपस्थित था। फाँसी लगने ही वाली थी कि वहाँ वीर पहुँच गया। | पूर्णमासी आ गई और फाँसी का दिन भी...। अपार भीड़ एकत्र हो गई, इस विचित्र फाँसी को देखने के लिए। जिसमें किसी के बदले में कोई और फाँसी पर चढ़ रहा था। स्वयं राजा भी वहाँ उपस्थित था। फाँसी लगने ही वाली थी कि वहाँ वीर पहुँच गया। | ||
"रोकिए फाँसी ! फाँसी तो मुझको दी जानी है... मैं आ गया हूँ अब... मुझे दीजिए फाँसी" - वीर बोला, | "रोकिए फाँसी ! फाँसी तो मुझको दी जानी है... मैं आ गया हूँ अब... मुझे दीजिए फाँसी" - वीर बोला, | ||
"नहीं ये समय पर नहीं लौट पाया है, इसलिए फाँसी तो अब मुझे लगेगी... मुझे !" धीर चिल्लाया, | "नहीं ये समय पर नहीं लौट पाया है, इसलिए फाँसी तो अब मुझे लगेगी... मुझे !" धीर चिल्लाया, | ||
− | इस तरह दोनों झगड़ने लगे। | + | इस तरह दोनों झगड़ने लगे। जनता के साथ-साथ राजा को भी बहुत आश्चर्य हो रहा था कि ये दोनों दोस्त फाँसी पर चढ़ने के लिए लड़-झगड़ रहे हैं ? |
− | जनता के साथ-साथ राजा को भी बहुत आश्चर्य हो रहा था कि ये दोनों दोस्त फाँसी पर चढ़ने के लिए लड़-झगड़ रहे | ||
"लेकिन तुम इतनी देर से क्यों लौटे ?" राजा ने पूछा। | "लेकिन तुम इतनी देर से क्यों लौटे ?" राजा ने पूछा। | ||
"महाराज ! मैंने तो अपनी माँ के लिए सारा इन्तज़ाम एक सप्ताह में ही कर दिया था और उसे समझा भी दिया था कि अब उसका ध्यान धीर ही रखेगा। जब मैं वापस लौट रहा था तो लुटेरों से मेरी मुठभेड़ हो गई। मैं 15 दिन घायल और बेसुध पड़ा रहा। जैसे ही मुझे होश आया, मैं भागा-भागा यहाँ आया हूँ।" | "महाराज ! मैंने तो अपनी माँ के लिए सारा इन्तज़ाम एक सप्ताह में ही कर दिया था और उसे समझा भी दिया था कि अब उसका ध्यान धीर ही रखेगा। जब मैं वापस लौट रहा था तो लुटेरों से मेरी मुठभेड़ हो गई। मैं 15 दिन घायल और बेसुध पड़ा रहा। जैसे ही मुझे होश आया, मैं भागा-भागा यहाँ आया हूँ।" | ||
राजा ने कहा "अब तो तुम दोनों को ही सज़ा दी जाएगी... लेकिन वो फाँसी नहीं बल्कि हमारे राजदरबार में नौकरी करने की सज़ा होगी... तुम दोनों बेमिसाल दोस्त हो और ईमानदार भी... आज से तुम दोनों हमारे राजदरबार की शोभा बढ़ाओगे" | राजा ने कहा "अब तो तुम दोनों को ही सज़ा दी जाएगी... लेकिन वो फाँसी नहीं बल्कि हमारे राजदरबार में नौकरी करने की सज़ा होगी... तुम दोनों बेमिसाल दोस्त हो और ईमानदार भी... आज से तुम दोनों हमारे राजदरबार की शोभा बढ़ाओगे" | ||
− | ये तो थी मित्रता की एक पुरानी कहानी, मित्रता और शत्रुता का आपसी रिश्ता बहुत गहरा है। मित्रता, बराबर वालों में होती है और इस 'बराबर' का संबंध पैसे की बराबरी से नहीं है, यह बराबरी किसी और ही धरातल पर होती है। इसी कारण हमारे 'स्तर' की पहचान हमारे दोस्तों से होती है। यही बात शत्रुता पर भी लागू होती है। हमारे शत्रु जिस स्तर के हैं, हमारा भी स्तर वही होता है। | + | ये तो थी मित्रता की एक पुरानी कहानी, मित्रता और शत्रुता का आपसी रिश्ता बहुत गहरा है। मित्रता, बराबर वालों में होती है और इस 'बराबर' का संबंध पैसे की बराबरी से नहीं है, यह बराबरी किसी और ही धरातल पर होती है। इसी कारण हमारे 'स्तर' की पहचान हमारे दोस्तों से होती है। यही बात शत्रुता पर भी लागू होती है। हमारे शत्रु जिस स्तर के हैं, हमारा भी स्तर वही होता है। |
− | यूनान के सम्राट सिकंदर से किसी ने कहा- | + | [[यूनान]] के सम्राट [[सिकंदर]] से किसी ने कहा- |
"आपके बारे में सुना है कि आप बहुत तेज़ दौड़ सकते हैं। किसी दौड़ में आप हिस्सा क्यों नहीं लेते ?" | "आपके बारे में सुना है कि आप बहुत तेज़ दौड़ सकते हैं। किसी दौड़ में आप हिस्सा क्यों नहीं लेते ?" | ||
"जब सम्राटों की दौड़ होगी तो सिकंदर भी दौड़ेगा।" सिकंदर का उत्तर था। | "जब सम्राटों की दौड़ होगी तो सिकंदर भी दौड़ेगा।" सिकंदर का उत्तर था। | ||
− | इसी तरह 'नेपोलियन बोनापार्ट' से एक पहलवान ने कहा- | + | इसी तरह 'नेपोलियन बोनापार्ट' से एक पहलवान ने कहा- |
"आपकी बहादुरी मशहूर है, मुझसे कुश्ती लड़कर मुझे हरा कर दिखाइए !" | "आपकी बहादुरी मशहूर है, मुझसे कुश्ती लड़कर मुझे हरा कर दिखाइए !" | ||
"तुमसे मेरा अंगरक्षक लड़ेगा... जो तुमसे दोगुना ताक़तवर है। उसके सामने तुम एक मिनिट भी नहीं टिक पाओगे। मुझे अपनी बहादुरी के लिए 'तुम्हारे' प्रमाणपत्र की नहीं बल्कि यूरोप की जनता के विश्वास की ज़रूरत है।" | "तुमसे मेरा अंगरक्षक लड़ेगा... जो तुमसे दोगुना ताक़तवर है। उसके सामने तुम एक मिनिट भी नहीं टिक पाओगे। मुझे अपनी बहादुरी के लिए 'तुम्हारे' प्रमाणपत्र की नहीं बल्कि यूरोप की जनता के विश्वास की ज़रूरत है।" | ||
− | + | मित्रता का कोई 'प्रकार' नहीं होता कि इस प्रकार की मित्रता या उस प्रकार की, जबकि शत्रुता के बहुत सारे 'प्रकार' हैं। जैसे- राजनीतिक शत्रुता, व्यापारिक शत्रुता, ईर्ष्या-जन्य शत्रुता आदि कई तरह की शत्रुता हो सकती हैं। शत्रुता के बारे में यह भी कहा जा सकता है कि शत्रुता कम हो गई या बढ़ गई। मित्रता कम या अधिक नहीं होती, या तो होती है या नहीं होती। जब हम यह कहते हैं "उससे हमारी उतनी दोस्ती अब नहीं रही..." तो हम सही नहीं कह रहे होते। वास्तव में दोस्ती समाप्त हो चुकी होती है। इसी तरह 'गहरी मित्रता' जैसी कोई स्थिति नहीं होती। दोस्ती और दुश्मनी में एक फ़र्क़ यह भी होता कि दोस्ती 'हो' जाती है और दुश्मनी 'की' जाती है। | |
− | मित्रता का कोई 'प्रकार' नहीं होता कि इस प्रकार की मित्रता या उस प्रकार की, जबकि शत्रुता के बहुत सारे 'प्रकार' हैं। जैसे- | + | मित्रता और शत्रुता के संबंध में [[गीता]] क्या कहती है ? |
− | मित्रता और शत्रुता के संबंध में गीता क्या कहती है ? | ||
गीता में दो श्लोक है- | गीता में दो श्लोक है- | ||
सम: शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयो: । | सम: शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयो: । | ||
− | शीतोष्णसुखदु:खेषु सम: संग्ङविवर्जित: ।। (गीता अध्याय-12 श्लोक-18) | + | शीतोष्णसुखदु:खेषु सम: संग्ङविवर्जित: ।। ([[गीता 12:18|गीता अध्याय-12 श्लोक-18]]) |
मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयो: । | मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयो: । | ||
− | सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीत: स उच्यते ।। (गीता अध्याय-14 श्लोक-25) | + | सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीत: स उच्यते ।। ([[गीता 14:25|गीता अध्याय-14 श्लोक-25]]) |
− | सामान्य भावार्थ को ही समझें तो इन श्लोकों का मतलब है कि बुद्धिमान के लिए न कोई मित्र है और न कोई शत्रु है। न कोई मान है, न कोई अपमान है। | + | सामान्य भावार्थ को ही समझें तो इन श्लोकों का मतलब है कि बुद्धिमान के लिए न कोई मित्र है और न कोई शत्रु है। न कोई मान है, न कोई अपमान है। |
ऐसा कैसे हो सकता है कि न कोई मित्र है और न कोई शत्रु है ? न कोई मान है, न कोई अपमान है ! मित्र तो मित्र होता है, शत्रु तो शत्रु होता है। जो मित्र है, वह शत्रु कैसे हो सकता है और जो शत्रु है, वह मित्र कैसे हो सकता है ? इसी तरह यदि कोई हमें अपमानित करता है तो बुरा लगता है। कोई सम्मान देता है तो अच्छा लगता है। ये कैसे सम्भव है कि न कोई अपमान है और न कोई मान है। गीता में इस श्लोक का अर्थ क्या है ? | ऐसा कैसे हो सकता है कि न कोई मित्र है और न कोई शत्रु है ? न कोई मान है, न कोई अपमान है ! मित्र तो मित्र होता है, शत्रु तो शत्रु होता है। जो मित्र है, वह शत्रु कैसे हो सकता है और जो शत्रु है, वह मित्र कैसे हो सकता है ? इसी तरह यदि कोई हमें अपमानित करता है तो बुरा लगता है। कोई सम्मान देता है तो अच्छा लगता है। ये कैसे सम्भव है कि न कोई अपमान है और न कोई मान है। गीता में इस श्लोक का अर्थ क्या है ? | ||
एक उदाहरण देखें- | एक उदाहरण देखें- | ||
− | चाणक्य और राक्षस की शत्रुता विश्वविख्यात है। चंद्रगुप्त के सम्राट बनने के बाद चाणक्य ने महामात्य के पद से सेवा निवृत्त होकर वापस तक्षशिला जाकर अध्यापन कार्य करना चाहा तो चंद्रगुप्त ने पूछा- | + | [[चाणक्य]] और राक्षस की शत्रुता विश्वविख्यात है। [[चंद्रगुप्त मौर्य|चंद्रगुप्त]] के सम्राट बनने के बाद चाणक्य ने महामात्य के पद से सेवा निवृत्त होकर वापस [[तक्षशिला]] जाकर अध्यापन कार्य करना चाहा तो चंद्रगुप्त ने पूछा- |
− | "अमात्य ! आपकी अनुपस्थिति में आपका कार्य कौन संभालेगा ? मगध का राज्य, चाणक्य जैसे महामात्य के बिना कैसे चल पाएगा ?" | + | "अमात्य ! आपकी अनुपस्थिति में आपका कार्य कौन संभालेगा ? [[मगध]] का राज्य, चाणक्य जैसे महामात्य के बिना कैसे चल पाएगा ?" |
− | "राक्षस बनेगा महामात्य ! उससे अधिक योग्य और निष्ठावान कोई दूसरा नहीं है।" चाणक्य ने उत्तर | + | "राक्षस बनेगा महामात्य ! उससे अधिक योग्य और निष्ठावान कोई दूसरा नहीं है।" चाणक्य ने उत्तर दिया। |
"राक्षस ? किन्तु वह तो आपका शत्रु है ?" | "राक्षस ? किन्तु वह तो आपका शत्रु है ?" | ||
− | "वह मेरा शत्रु नहीं है वरन् वह तो धनानंद का स्वामीभक्त था, जो कि उसका सम्राट था। राक्षस की योग्यता में कोई कमी नहीं थी, सारी कमियाँ नंद में थीं। जब राक्षस तुम्हारा मंत्री बनेगा तो उसकी निष्ठा तुम्हारे प्रति रहेगी" | + | "वह मेरा शत्रु नहीं है वरन् वह तो [[धनानंद]] का स्वामीभक्त था, जो कि उसका सम्राट था। राक्षस की योग्यता में कोई कमी नहीं थी, सारी कमियाँ नंद में थीं। जब राक्षस तुम्हारा मंत्री बनेगा तो उसकी निष्ठा तुम्हारे प्रति रहेगी" |
चंद्रगुप्त को चाणक्य ने समझा दिया लेकिन समस्या यह थी कि राक्षस लापता था। उसको खोजने के लिए चाणक्य ने उसके एक मित्र को सार्वजनिक फाँसी देने की मुनादी करवा दी। राक्षस स्वयं को रोक न सका और अपने मित्र को बचाने के लिए छद्म वेश से प्रत्यक्ष में आ गया। चाणक्य ने राक्षस के मित्र को इस शर्त पर जीवन दान दे दिया कि राक्षस को चंद्रगुप्त का महामंत्री बनना होगा। इसके बाद चाणक्य तक्षशिला चला गया। | चंद्रगुप्त को चाणक्य ने समझा दिया लेकिन समस्या यह थी कि राक्षस लापता था। उसको खोजने के लिए चाणक्य ने उसके एक मित्र को सार्वजनिक फाँसी देने की मुनादी करवा दी। राक्षस स्वयं को रोक न सका और अपने मित्र को बचाने के लिए छद्म वेश से प्रत्यक्ष में आ गया। चाणक्य ने राक्षस के मित्र को इस शर्त पर जीवन दान दे दिया कि राक्षस को चंद्रगुप्त का महामंत्री बनना होगा। इसके बाद चाणक्य तक्षशिला चला गया। | ||
− | + | यदि दो मित्र एक ही कार्य क्षेत्र में प्रयास करते हैं। एक को सफलता मिलती है, एक को नहीं मिलती। निश्चित रूप से उनमें ईर्ष्या हो जायेगी और उनमें एक शत्रुता की भावना पनप जायेगी, जिसे अंग्रेज़ी में आजकल नये टर्मिनोलॉजी में 'फ़्रेनिमी' भी कहा जाता है। फ़्रेनिमी यानी कि फ़्रेंड भी एनिमी भी (दोस्त भी और दुश्मन भी)। | |
− | दो मित्र | ||
एक और उदाहरण- | एक और उदाहरण- | ||
− | उस्ताद बड़े | + | उस्ताद [[बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ]] साहब और [[उस्ताद अमीर ख़ाँ]] साहब दोनों ही शास्त्रीय गायन में पारंगत थे। दोनों में प्रतिस्पर्द्धा थी। एक प्रकार की अदावत थी। बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ साहब अधिक प्रसिद्ध थे। उनकी आवाज़ में मधुरता अधिक थी। [[मुग़ल-ए-आज़म]] फ़िल्म में [[दिलीप कुमार]] और [[मधुबाला]] पर फ़िल्माये गए यादगार प्रेम-दृश्य में, बड़े ग़ुलाम अली की 'राग सोहनी' में गाई ठुमरी 'प्रेम जोगन बनके' ने उनकी प्रसिद्धि घर-घर में कर दी थी। अमीर ख़ाँ उतने ज़्यादा लोकप्रिय नहीं थे। अमीर ख़ाँ, बड़े ग़ुलाम अली के गायन में अक्सर कमियाँ निकालते रहते थे। |
− | मुग़ल-ए-आज़म फ़िल्म में दिलीप कुमार और मधुबाला पर फ़िल्माये गए यादगार प्रेम-दृश्य में, बड़े ग़ुलाम अली की 'राग सोहनी' में गाई ठुमरी 'प्रेम जोगन बनके' ने उनकी प्रसिद्धि घर-घर में कर दी थी। अमीर ख़ाँ उतने ज़्यादा लोकप्रिय नहीं थे। अमीर ख़ाँ, बड़े ग़ुलाम अली के गायन में | + | ख़ुदा-न-ख़ास्ता हुआ ये कि बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ, अमीर ख़ाँ से पहले इंतकाल फ़र्मा गये। कमाल की बात ये देखिए कि अमीर अली ख़ाँ साहब ने गाना ही बन्द कर दिया। लोगों ने उनसे कहा कि अब आप गाते नहीं हैं। आप अब संगीत सभाओं में नहीं जाते। उन्होंने कहा कि 'उसी' को सुनाने के लिए गाता था। अब वही नहीं रहा तो सुनाऊँ किसको। अब आप क्या कहेंगे इसे ? दो लोगों की दोस्ती या दो लोगों की दुश्मनी ? |
− | जो व्यक्ति दोस्त बनने के क़ाबिल नहीं है तो वह दुश्मन बनाने के क़ाबिल भी नहीं होता और जो दुश्मन बनाने के क़ाबिल नहीं है, वह दोस्त बनने के काबिल भी नहीं होता। जिस तरह दोस्तों का स्तर होता है, उसी तरह से दुश्मनों का भी स्तर होता है। | + | जो व्यक्ति दोस्त बनने के क़ाबिल नहीं है तो वह दुश्मन बनाने के क़ाबिल भी नहीं होता और जो दुश्मन बनाने के क़ाबिल नहीं है, वह दोस्त बनने के काबिल भी नहीं होता। जिस तरह दोस्तों का स्तर होता है, उसी तरह से दुश्मनों का भी स्तर होता है। |
एक और उदाहरण- | एक और उदाहरण- | ||
− | नेपोलियन बोनापार्ट का एक दुश्मन युद्ध में मारा गया। नेपोलियन ने कहा कि अब मैं वह नेपोलियन नहीं रहा, जो उस दुश्मन के जीवित रहते हुए था। उस दुश्मन के जीवित रहते हुए जिस नेपोलियन को आप जानते थे, वह इस नेपोलियन से बिल्कुल अलग था। हो सकता है कि उसके जीवित रहते हुए मुझे बिल्कुल भिन्न तरीक़े से जीवन जीना होता। अब जब वो इस दुनिया में नहीं है तो मैं बिल्कुल भिन्न तरीक़े से अपना जीवन जीऊँगा। मेरी राजनीतिक महत्वाकांक्षा, मेरे सफल होने की नीतियाँ, सब बदल गईं, भिन्न हो गईं। | + | नेपोलियन बोनापार्ट का एक दुश्मन युद्ध में मारा गया। नेपोलियन ने कहा कि अब मैं वह नेपोलियन नहीं रहा, जो उस दुश्मन के जीवित रहते हुए था। उस दुश्मन के जीवित रहते हुए जिस नेपोलियन को आप जानते थे, वह इस नेपोलियन से बिल्कुल अलग था। हो सकता है कि उसके जीवित रहते हुए मुझे बिल्कुल भिन्न तरीक़े से जीवन जीना होता। अब जब वो इस दुनिया में नहीं है तो मैं बिल्कुल भिन्न तरीक़े से अपना जीवन जीऊँगा। मेरी राजनीतिक महत्वाकांक्षा, मेरे सफल होने की नीतियाँ, सब बदल गईं, भिन्न हो गईं। |
अब ज़रा मान-अपमान की बात करें तो अपमान की घटनाओं से इतिहास बदले-बने हैं और प्राचीन कथाओं के प्रसिद्ध प्रसंग भी। | अब ज़रा मान-अपमान की बात करें तो अपमान की घटनाओं से इतिहास बदले-बने हैं और प्राचीन कथाओं के प्रसिद्ध प्रसंग भी। | ||
कुछ उदाहरण- | कुछ उदाहरण- | ||
− | कौरवों की सभा में कृष्ण का अपमान, द्रौपदी का चीर हरण, हस्तिनापुर की रंगशाला में कर्ण का अपमान, द्रुपद की सभा में द्रोणाचार्य का अपमान, जनक | + | कौरवों की सभा में कृष्ण का अपमान, द्रौपदी का चीर हरण, हस्तिनापुर की रंगशाला में कर्ण का अपमान, द्रुपद की सभा में द्रोणाचार्य का अपमान, जनक की सभा में अष्टावक्र का अपमान, धनानंद की सभा में चाणक्य का अपमान, अंग्रेज़ों द्वारा महात्मा गांधी का अपमान आदि। ये सभी वास्तविक अपमान थे और इनके प्रतिशोध भी लिए गए और अपमान करने वाले को दंडित भी किया गया। |
− | + | यदि हमें कोई सम्मान दे तो अच्छा लगता है लेकिन कोई मूर्ख, धूर्त, विक्षिप्त अथवा लालची व्यक्ति हमें सम्मानित करता है तो हम इस सम्मान को महत्त्व नहीं देते। क्यों...? क्योंकि उस व्यक्ति को हम इस योग्य नहीं समझते कि हम उसका सम्मान स्वीकार करें। ठीक इसी तरह यदि कोई महत्वहीन व्यक्ति हमारा अपमान करे तब भी हमको यह नहीं समझना चाहिए कि हमारा अपमान हुआ। | |
− | यदि हमें कोई सम्मान दे तो अच्छा लगता है लेकिन कोई मूर्ख, धूर्त, विक्षिप्त अथवा लालची व्यक्ति हमें सम्मानित करता है तो हम इस सम्मान को महत्त्व नहीं देते। क्यों...? क्योंकि उस व्यक्ति को हम इस योग्य नहीं समझते कि हम उसका सम्मान स्वीकार करें। ठीक इसी तरह यदि कोई महत्वहीन व्यक्ति हमारा अपमान करे तब भी हमको यह नहीं समझना चाहिए कि हमारा अपमान हुआ। | ||
धनानंद की राजसभा में विष्णुगुप्त (चाणक्य) का अपमान इतिहास और कथाओं में सम्भवत: अपमान से संबंधित सबसे अधिक प्रसिद्ध घटना है। आपको क्या लगता है चाणक्य का अपमान कोई पहली बार हुआ था ? ऐसा नहीं है। एक अनाथ और ग़रीब बालक किन-किन अपमानों को झेलकर बड़ा हुआ होगा ? उनका आभास आसानी से नहीं किया जा सकता है। किन्तु चाणक्य ने उन छोटे और महत्त्वहीन अपमानों की ओर कभी ध्यान नहीं दिया। जब मगध के सम्राट ने भरी सभा में उसका अनादर किया, तब चाणक्य ने इसे अपना अपमान माना और कहते हैं कि प्रतिज्ञा की- | धनानंद की राजसभा में विष्णुगुप्त (चाणक्य) का अपमान इतिहास और कथाओं में सम्भवत: अपमान से संबंधित सबसे अधिक प्रसिद्ध घटना है। आपको क्या लगता है चाणक्य का अपमान कोई पहली बार हुआ था ? ऐसा नहीं है। एक अनाथ और ग़रीब बालक किन-किन अपमानों को झेलकर बड़ा हुआ होगा ? उनका आभास आसानी से नहीं किया जा सकता है। किन्तु चाणक्य ने उन छोटे और महत्त्वहीन अपमानों की ओर कभी ध्यान नहीं दिया। जब मगध के सम्राट ने भरी सभा में उसका अनादर किया, तब चाणक्य ने इसे अपना अपमान माना और कहते हैं कि प्रतिज्ञा की- | ||
"धनानंद ! जब तक मैं इस अपमान का दंड तुझे नहीं देता, तब तक मैं अपनी शिखा को खुली ही रखूँगा। मेरी शिखा में गांठ तभी लगेगी, जब मैं, चणक पुत्र विष्णगुप्त, तेरा और तेरे वंश का समूल नाश कर दूँगा।" | "धनानंद ! जब तक मैं इस अपमान का दंड तुझे नहीं देता, तब तक मैं अपनी शिखा को खुली ही रखूँगा। मेरी शिखा में गांठ तभी लगेगी, जब मैं, चणक पुत्र विष्णगुप्त, तेरा और तेरे वंश का समूल नाश कर दूँगा।" | ||
− | + | जो हमें सम्मानित करे, उस व्यक्ति का कुछ स्तर अवश्य होना चाहिए। हमें एहसास होना चाहिए कि हम सम्मानित हुए। इसी तरह जो हमें अपमानित कर रहा है, उसका भी कुछ स्तर ऐसा होना चाहिए कि हमें एहसास हो कि वह हमें अपमानित कर रहा है। जो व्यक्ति 'किसी' के भी द्वारा अपमान किए जाने से अपमानित हो जाय उस व्यक्ति का कोई स्तर नहीं होता। | |
− | जो हमें सम्मानित करे, उस व्यक्ति का कुछ स्तर अवश्य होना चाहिए। हमें एहसास होना चाहिए कि हम सम्मानित हुए। इसी तरह जो हमें अपमानित कर रहा है, उसका भी कुछ स्तर ऐसा होना चाहिए कि हमें एहसास हो कि वह हमें अपमानित कर रहा है। जो व्यक्ति 'किसी' के भी द्वारा अपमान किए जाने से अपमानित हो जाय उस व्यक्ति का कोई स्तर नहीं होता। | ||
एक कहावत- | एक कहावत- | ||
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इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | ||
-आदित्य चौधरी | -आदित्य चौधरी | ||
− | <small> | + | <small>संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक</small> |
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Latest revision as of 10:39, 22 January 2015
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20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|fesabuk par bharatakosh (nee shuruat) bharatakosh dosti-dushmani aur man-apaman -adity chaudhari raja nand ka darabar|border|right|400px n jane kitani purani bat hai ki n jane kis rajy mean vir nam ka ek yuvak rahata tha. ek bar vir ko doosare rajy mean kisi kam se jana p da aur durbhagy se vir vahaan ek jhoothe aparadh mean phans gaya. gavahoan ki gair maujoodagi ke karan raja ne use phaansi ka huqm suna diya aur munadi karava di gee- |
tika tippani aur sandarbh