मंगोलिया
thumb|250px|मंगोलिया का ध्वज गोबी मरूभूमि के सीमावर्ती मंगोलिया में रहने वाली अश्वारोहिणी मंगोल जाति ने पूर्व में चीन के बड़े भूभाग पर राज्य किया था। उन्होंने बीजिंग (Beijing) (पेकिंग) को राजधानी बनाया था। पश्चिम की ओर बढ़कर कश्यप सागर तक, जिसे 'तुर्किस्तान' कहते हैं, पर उन्होंने आधिपत्य स्थापित किया। भारत के अतिरिक्त प्राचीन काल के दो बड़े साम्राज्यों का यह समय था। यूरोप और भूमध्य सागर के देशों का रोमन साम्राज्य तथा पूर्वोत्तर में मंगोल साम्राज्य। ये दोनों साम्राज्य अत्यंत क्रूर थे।
मुग़ल साम्राज्य
कालांतर में कश्यप सागर से गोबी मरूस्थल का क्षेत्र इस्लाम पंथावलंबी बन गया। पश्चिमी मंगोल जाति और भी खूँखार हो गयी। मंगोल को ही को अरबी में 'मुग़ल' कहते हैं। इसी मंगोल-तुर्किस्तान से चंगेज खाँ और तैमूर लंग जैसे क्रूर व अधर्मी लुटेरे भारत को लूटने आये थे। उन्हीं में से एक सरदार का पुत्र था बाबर, जिसे भारत में मुग़ल साम्राज्य का जनक कहा जाता है।
भारतीय संस्कृति का प्रभाव
thumb|250px|राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, मंगोलिया प्राचीन साइबेरिया और उससे जुड़ा मंगोलिया कभी भारतीय संस्कृति का प्रभाव-क्षेत्र था, जहाँ दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन करने की पद्घति थी, यहाँ धार्मिक कृत्य एवं पूजा गंगाजल के बिना संपन्न नहीं होती थी। इनके विहारों में संस्कृत तथा अन्य भाषाओं के अनेक प्राचीन ग्रंथ और प्रतिमाएं मिलती हैं और उनके लोक-काव्य में रामायण की कथाएं। 'बैकल' झील के चारों ओर विद्या के अनेक केंद्र थे, जहाँ देवी सरस्वती के अनुपम चित्र एवं भव्य प्रतिमाएं थीं।
चीन की सभ्यता
चीन की सभ्यता अन्य प्राचीन सभ्यताओं से अपेक्षाकृत नई है। भारत से चीन जाने के दो दुर्गम मार्ग थे। एक पश्चिम में कश्मीर तथा गिलगित की घाटी से ऊँचे पर्वत पारकर और दूसरा पूर्व में ब्रह्मदेश के उत्तर से होकर। बीच में हिमालय है, जिसकी चोटियाँ सदा हिम से ढकी रहती हैं। एक अन्य तीसरा मार्ग भी था गांधार तथा कुंभा नदी के दर्रों से होते हुए उत्तर की ओर मध्य एशिया में सर्वत्र हिंदू राज्य थे। इसी रास्ते से भारतीय संस्कृति का प्रचार मध्य एशिया में हुआ। बौद्ध प्रचारकों ने भी इसी मार्ग को अपनाया। इसके अतिरिक्त दक्षिण-पूर्व से होकर एक चौथा सागर मार्ग भी था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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