युद्ध (सूक्तियाँ): Difference between revisions

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| सूच्याग्रं नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव। (हे कृष्ण, बिना युद्ध के सूई के नोक के बराबर भी (ज़मीन) नहीं दूँगा।  
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| प्रागेव विग्रहो न विधिः । पहले ही (बिना साम, दान, दण्ड का सहारा लिये ही) युद्ध करना कोई (अच्छा) तरीका नहीं है।  
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Latest revision as of 12:11, 14 March 2012

क्रमांक सूक्तियाँ सूक्ति कर्ता
(1) सर्वविनाश ही , सह-अस्तित्व का एकमात्र विकल्प है। पं. जवाहरलाल नेहरू
(2) सूच्याग्रं नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव। (हे कृष्ण, बिना युद्ध के सूई के नोक के बराबर भी (ज़मीन) नहीं दूँगा। दुर्योधन, महाभारत में
(3) प्रागेव विग्रहो न विधिः । पहले ही (बिना साम, दान, दण्ड का सहारा लिये ही) युद्ध करना कोई (अच्छा) तरीका नहीं है। पंचतन्त्र
(4) सच्चे वीर को युद्ध में मृत्यु से जितना कष्ट नहीं होता उससे कहीं अधिक कष्ट कायर को युद्ध के भय से होता है। भतृहरि
(5) आर्थिक युद्ध का एक सूत्र है कि किसी राष्ट्र को नष्ट करने के का सुनिश्चित तरीका है, उसकी मुद्रा को खोटा कर देना। (और) यह भी उतना ही सत्य है कि किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना। (लेकिन) यदि विचार भाषा को भ्रष्ट करते है तो भाषा भी विचारों को भ्रष्ट कर सकती है। जार्ज ओर्वेल
(6) विचारों के युद्ध में, पुस्तकें ही अस्त्र हैं। जार्ज बर्नार्ड शॉ
(7) प्रेम करने वाला व्यक्ति प्रेम की दुनिया में रहता है, झगड़ालू व्यक्ति युद्ध जैसी दुनिया में रहता है, प्रत्येक ऐसा जिससे आप मिलते हैं, वह आपकी ही छवि होती है। केन कैन्स, जूनियर
(8) हाथ की शोभा दान से है। सिर की शोभा अपने से बड़ो को प्रणाम करने से है। मुख की शोभा सच बोलने से है। दोनों भुजाओं की शोभा युद्ध में वीरता दिखाने से है। हृदय की शोभा स्वच्छता से है। कान की शोभा शास्त्र के सुनने से है। यही ठाट बाट न होने पर भी सज्जनों के भूषण हैं। चाणक्य
(9) संकट के समय धैर्य, अभ्युदय के समय क्षमा अर्थात सब सहन करने की सामर्थ्य, सभा में अच्छा बोलना और युद्ध में वीरता शोभा देती है। भतृहरि
(10) संसार ही युद्ध-क्षेत्र है, इससे पराजित होकर शस्त्र अर्पण करके जीने से क्या लाभ ? जयशंकर प्रसाद
(11) जीवन के युद्ध में चोटें और आघात बर्दाश्त करने से ही उसमें विजय प्राप्त होती है, उसमें आनंद आता है। अज्ञात
(12) दान और युद्ध को समान कहा जाता है। थोड़े भी बहुतों को जीत लेते हैं। श्रद्धा से अगर थोड़ा भी दान करो तो परलोक का सुख मिलता है। जातक
(13) शांति की अपनी विजयें होती हैं, जो युद्ध की अपेक्षा कम कीर्तिमयी नहीं होतीं। मिल्टन
(14) भयंकर युद्ध में सैकड़ों दुर्जय शत्रुओं को जीतने की अपेक्षा अपने आप को जीत लेना ही सबसे बड़ी विजय है। उत्तराध्ययन
(15) व्यापारिक युद्ध, विश्व युद्ध, शीत युद्ध : इस बात की लडाई कि “गैर-बराबरी पर आधारित व्यापार के नियम” कौन बनाये।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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