हरदोई: Difference between revisions
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[[चित्र:Sandi_061.JPG|हरदोई में में स्थापित नरसिंह भगवान की मूर्ति|thumb|250px]] | [[चित्र:Sandi_061.JPG|हरदोई में में स्थापित नरसिंह भगवान की मूर्ति|thumb|250px]] | ||
'''हरदोई''' [[उत्तर प्रदेश]] राज्य का एक प्रमुख नगर है। संडी पक्षी अभयारण्य, बालामऊ, माधोगंज, पिहानी, संडीला और बेहता गोकुल आदि यहां के दर्शनीय स्थलों में से है। यह | '''हरदोई''' [[उत्तर प्रदेश]] राज्य का एक प्रमुख नगर है। संडी पक्षी अभयारण्य, बालामऊ, माधोगंज, पिहानी, संडीला और बेहता गोकुल आदि यहां के दर्शनीय स्थलों में से है। यह ज़िला [[शाहजहांपुर]] और [[लखीमपुर खीरी ज़िला|लखीमपुर-खीरी ज़िले]] के उत्तर, [[लखनऊ]] और [[उन्नाव ज़िला|उन्नाव ज़िले]] के दक्षिण, [[कानपुर]] और [[फ़र्रुख़ाबाद ज़िला|फ़र्रुख़ाबाद ज़िले]] के पश्चिम और [[सीतापुर ज़िला]] के पूर्व से घिरा हुआ है। | ||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
ऐतिहासिक दृष्टि से यह स्थान | ऐतिहासिक दृष्टि से यह स्थान काफ़ी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इसमें [[मुग़ल]] और [[अफ़ग़ान]] शासकों के बीच कई युद्ध हुए है। [[बिलग्राम]] और सांदी शहर के मध्य हुए युद्ध में [[हुमायूँ]] को [[शेरशाह सूरी]] ने हराया था। | ||
[[चित्र:Gazetiar.jpg|गजेटियर [[1904]] में हरदोई का उद्धरण|thumb|left]] | |||
[[1904]] के गजेटियर में [[प्रथम स्वतंत्रता आन्दोलन]] [[1857]] के दौरान धटित घटनाक्रम के रूप में लिखा है कि हरदोई के कटियारी श्रेत्र का तालुकेदार हरदेव बक्श फतेहगढ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के लगातार भय के बावजूद पूरे संघर्ष में वफादार बना रहा। मुख्य सेनानायक के निर्देश पर ब्रिटिश सेना की तीन टुकडियां उस समय उत्तर पश्चिम अवध में विद्रोहियों के विरुद्ध कार्यरत थी। इनमें से एक को ब्रिगेडियर हाल के अधीन [[फ़र्रुख़ाबाद ज़िला|फतेहगढ]] से जनपद मल्लावां में होते हुये [[सीतापुर]] की ओर बढने का आदेश था। दूसरी को ब्रिगेडिर बारकर के नेतृत्व में लखनउ से चलकर हाल से जा मिलने का आदेश था । बारकर [[7 अक्टूबर]] को [[सण्डीला]] पहुंचा अगले दिन उग्र आक्रमण किया । एक निराशापूर्ण युद्व के पश्चात् स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को पूर्ण रूप से पराजित होना पडा । बारकर ने सण्डीला के आसपास के क्षेत्र पर नियंत्रण करने के लिये इसे केन्द्र बना लिया। अक्टूबर की 21 तारीख को उसने तूंफानी हल्ला बोलकर विरवा के किले को अपने अधिकार में ले लिया। हाल की सेना 28 तारीख को रूइया में बारकर से जाकर मिली । नरपत सिंह को अपना किला छोडकर भागना पडा। नरपत का किला अन्य दुर्गो की भांति तोड डाला गया । [[1858]] नवम्बर के प्रथम सप्ताह में जनपद मल्लावां लगभग पूर्णरूप से सक्रिय अंग्रेज विरोधी तत्वों से साफ कर दिया गया । दिनांा [[28 अक्टूबर]] [[1858]] के उपरांत जनपद मल्लावां का अस्तित्व समाप्त हो गया था और शासक किला छोडकर भाग गये थे। इस तिथि के उपरांत मुख्यालय हरदोई बनाया गया और प्रशासन पुर्नसंगठित किया गया अतः 28 अक्टूबर इस नये जनपद का स्थापना दिवस माना गया। | |||
अंग्रेजी सेनाओं के जाने के बाद जनपद का सामान्य प्रशासन पुर्नसंगठित किया गया | |||
[[मल्लावां]] के स्थान पर मुख्यालय हरदोई बनाया गया क्योंकि यह मल्लावां की तुलना में केन्द्र में स्थित था। | |||
==पौराणिक कथा== | ==पौराणिक कथा== | ||
स्थानीय लोगों का मानना है कि पहले इस जगह को हरिद्रोही के नाम से जाना जाता था। [[हिन्दी]] में जिसका अर्थ ईश्वर का विरोधी होता है। पौराणिक कथा के अनुसार, पूर्व समय में यहाँ पर राजा [[हिरण्यकशिपु]] का शासन था। राजा की भगवान के प्रति बिल्कुल भी आस्था नहीं थी और वह स्वयं को भगवान मानता था। वह चाहता था कि सब लोग उसकी पूजा करें, मगर स्वयं राजा का पुत्र [[प्रह्लाद]] ने उसका विरोध किया। जिस कारण हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को कई बार मारने की कोशिश की। लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। बाद में प्रह्लाद को बचाने के लिए स्वयं भगवान ने [[नरसिंह अवतार|नरसिंह]] का अवतार लिया और हिरण्यकशिपु का वध किया। | स्थानीय लोगों का मानना है कि पहले इस जगह को हरिद्रोही के नाम से जाना जाता था। [[हिन्दी]] में जिसका अर्थ ईश्वर का विरोधी होता है। पौराणिक कथा के अनुसार, पूर्व समय में यहाँ पर राजा [[हिरण्यकशिपु]] का शासन था। राजा की भगवान के प्रति बिल्कुल भी आस्था नहीं थी और वह स्वयं को भगवान मानता था। वह चाहता था कि सब लोग उसकी पूजा करें, मगर स्वयं राजा का पुत्र [[प्रह्लाद]] ने उसका विरोध किया। जिस कारण हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को कई बार मारने की कोशिश की। लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। बाद में प्रह्लाद को बचाने के लिए स्वयं भगवान ने [[नरसिंह अवतार|नरसिंह]] का अवतार लिया और हिरण्यकशिपु का वध किया। | ||
====अन्य कथा==== | ====अन्य कथा==== | ||
एक अन्य कथा के अनुसार, हरदोई की उत्पत्ति हरिद्रव्य से हुई है। जिसका अर्थ दो भगवान होता है। यह दो भगवान, [[वामन अवतार|वामन]] भगवान और नरसिम्हा भगवान है जिन्हें हरिद्रव्य कहा जाता है। जिसके पश्चात् इस जगह का नाम हरदोई पड़ा। हरदोई, 'हरिद्वेई' या 'हरिद्रोही' यूं तो हरदोई को हरिद्वेई भी कहा जाता है क्योंकि भगवान ने यहां दो बार अवतार लिया एक बार हिरण्याकश्यप वध करने के लिये नरसिंह भगवान रूप में तथा दूसरी बार भगवान बावन रूप रखकर | एक अन्य कथा के अनुसार, हरदोई की उत्पत्ति हरिद्रव्य से हुई है। जिसका अर्थ दो भगवान होता है। यह दो भगवान, [[वामन अवतार|वामन]] भगवान और नरसिम्हा भगवान है जिन्हें हरिद्रव्य कहा जाता है। जिसके पश्चात् इस जगह का नाम हरदोई पड़ा। हरदोई, 'हरिद्वेई' या 'हरिद्रोही' यूं तो हरदोई को हरिद्वेई भी कहा जाता है क्योंकि भगवान ने यहां दो बार अवतार लिया एक बार हिरण्याकश्यप वध करने के लिये नरसिंह भगवान रूप में तथा दूसरी बार भगवान बावन रूप रखकर परन्तु सबसे अधिक विस्मयकारी तथ्य यह है कि [[विजयादशमी]] पर्व पर सम्पूर्ण [[हरदोई]] नगर में कहीं भी रावण दहन का कोई कार्यक्रम नहीं होता। जब इसका कारण जानने की कोशिश की तो यह ज्ञात हुआ कि यहां यह परंपरा ही नहीं है। | ||
परन्तु सबसे अधिक विस्मयकारी तथ्य यह है कि [[विजयादशमी]] पर्व पर सम्पूर्ण [[हरदोई]] नगर में कहीं भी रावण दहन का कोई कार्यक्रम नहीं होता। जब इसका कारण जानने की कोशिश की तो यह ज्ञात हुआ कि यहां यह परंपरा ही नहीं है। | |||
====प्रह्लाद नगरी==== | ====प्रह्लाद नगरी==== | ||
हरदोई [[लखनऊ मंडल]] कर एक ज़िला है जो ऐतिहासिक महत्व का जनपद है जो [[भक्त]] [[प्रह्लाद]] की नगरी के रूप में भी प्रसिद्ध है। किंवदंती है कि भगवान ने [[नरसिंह अवतार]] लेकर इसी जगह भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी। [[क़ादिर बख्श]] पिहानी, [[हरदोई ज़िला|ज़िला हरदोई]] के रहने वाले इन्होंने [[कृष्ण]] की प्रशंसा में काव्य-रचना की जो अति सुन्दर एवं मधुर है। | हरदोई [[लखनऊ मंडल]] कर एक ज़िला है जो ऐतिहासिक महत्व का जनपद है जो [[भक्त]] [[प्रह्लाद]] की नगरी के रूप में भी प्रसिद्ध है। किंवदंती है कि भगवान ने [[नरसिंह अवतार]] लेकर इसी जगह भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी। [[क़ादिर बख्श]] पिहानी, [[हरदोई ज़िला|ज़िला हरदोई]] के रहने वाले इन्होंने [[कृष्ण]] की प्रशंसा में काव्य-रचना की जो अति सुन्दर एवं मधुर है। | ||
==हिन्दू मुस्लिम मेलजोल== | |||
देश के आम हिस्सों की तरह यहाँ हिन्दू मुस्लिम में काफ़ी हद तक अभी भी आपसी मेलजोल कायम है सन [[1947]] से पहले जब [[मुम्बई]] (बम्बई ) में गाँधी जी और जिन्ना के बीच हिन्दू और मुसलमानों के मुद्दे को लेकर देश के बटवारे को लेकर बहस जोरो पर थी ठीक उसी समय यहाँ के एक कश्मीरी पंडित हरदोई शहर में एक मात्र ईदगाह के लिए अपनी जमीन मुस्लिमो की संस्था अंजुमन इस्लामिया को दान में दे रहे थे | [[1947]] के बाद जब अयोध्या में मंदिर मस्जिद को लेकर जबरदस्त गर्म हवाए चल रही थी उस समय रेल्वेय्गंज के एक मुस्लिम व्यापारी पैसे और जमीन दान देकर एक मंदिर की नीव रखवा रहे थे .........ऐसे गजब के इतिहास को अपने में समेटे ज़िला हरदोई | |||
==दर्शनीय स्थल== | ==दर्शनीय स्थल== | ||
{{main|हरदोई पर्यटन}} | {{main|हरदोई पर्यटन}} | ||
====[[साण्डी पक्षी अभयारण्य]] | ====साण्डी पक्षी अभयारण्य==== | ||
[[हरदोई ज़िला]] स्थित साण्डी पक्षी अभयारण्य की स्थापना 1990 ई. में हुई थी। यह अभयारण्य [[लखनऊ]] से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह अभयारण्य लगभग तीन किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां पक्षियों की अनेक प्रजातियां देखी जा सकती है। यहां घूमने के लिए सबसे उचित समय [[दिसम्बर]] से [[फरवरी]] है। | [[चित्र:Sandi.jpg| [[साण्डी पक्षी अभयारण्य]]|thumb|250px]] | ||
{{main| साण्डी पक्षी अभयारण्य}} | |||
[[हरदोई ज़िला]] स्थित साण्डी पक्षी अभयारण्य की स्थापना 1990 ई. में हुई थी। यह अभयारण्य [[लखनऊ]] से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह अभयारण्य लगभग तीन किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां पक्षियों की अनेक प्रजातियां देखी जा सकती है। यहां घूमने के लिए सबसे उचित समय [[दिसम्बर]] से [[फरवरी]] है। | |||
====हत्याहारण तीर्थ, हरदोई ==== | |||
[[चित्र:Hatyaharan.jpg| [[हत्याहारण तीर्थ]]|thumb|250px]] | |||
{{main| हत्याहारण तीर्थ}} | |||
हत्याहारण तीर्थ जनपद [[हरदोई]] की [[सण्डीला]] तहसील में पवित्र [[नैमिषारण्य]] परिक्रमा क्षेत्र में स्थित है। यह तीर्थ [[लखनऊ]] से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। तीर्थ के संबंध में यह मान्यता है कि भगवान राम भी रावण वध के उपरांत ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त होने के लिये इस सरोवर में स्नान करने आये थे। | |||
==== | ====बिलग्राम==== | ||
जनपद हरदोई के सम्बन्ध में एक और आश्चर्यजनक तथ्य बताना चाहता | {{main| बिलग्राम}} | ||
जनपद हरदोई के सम्बन्ध में एक और आश्चर्यजनक तथ्य बताना चाहता हूं। इस जनपद में ‘विलग्राम‘ नाम का एक उपखंड है जिसके बारे में यह बताया जाता है कि यह मूल रूप से ‘विलग राम‘ शब्द का अपभ्रंश है । ‘विलग राम’ अर्थात राम से विलग रहने वाला। [[1909]] में यहां के निवासी एक [[मुसलमान]], सैयद हुसैन बिलग्रामी को महारानी विक्टोरिया के वादे को लागू करने के लिए व्हाइट हॉल में नियुक्त किया गया, जिन्होंने [[मॉर्ले मिण्टो सुधार]] में तथा कालान्तर में [[मुस्लिम लीग]] की स्थापना में सक्रिय भूमिका निभाई। विलग्राम तहसील क्षेत्रान्तरर्गत मोहक [[साण्डी पक्षी अभ्यारण]] स्थित है। | |||
====बालामऊ | ====बालामऊ==== | ||
बालामऊ, हरदोई ज़िला के प्राचीन शहरों में से है। माना जाता है कि इस शहर की स्थापना [[अकबर]] काल के अन्तिम समय में बामी मिरमी ने की थी। वर्तमान समय में इस जगह को बामी खेरा ने नाम से जाना जाता है। यह शहर | बालामऊ, हरदोई ज़िला के प्राचीन शहरों में से है। माना जाता है कि इस शहर की स्थापना [[अकबर]] काल के अन्तिम समय में बामी मिरमी ने की थी। वर्तमान समय में इस जगह को बामी खेरा ने नाम से जाना जाता है। यह शहर ज़िला मुख्यालय के दक्षिण की ओर तथा सांदिला के उत्तर-पूर्व से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। शहर के समीप ही [[सीतापुर ज़िला]] है जो नैमिषारण्य के लिए प्रसिद्ध है। यह जगह धार्मिक स्थल के रूप में जानी जाती है। | ||
====विक्टोरिया मेमोरियल==== | |||
==== | {{main|विक्टोरिया मेमोरियल हरदोई}} | ||
जिस प्रकार [[रूमी दरवाज़ा लखनऊ|रूमी दरवाज़ा]], [[लखनऊ]] शहर का हस्ताक्षर भवन है ठीक वैसे ही यह विक्टोरिया भवन जनपद [[हरदोई]] का हस्ताक्षर शिल्प भवन है । परतंत्र भारत देश 1877 ई में जब [[महारानी विक्टोरिया]] सम्राज्ञी घोषित की गईं तो भारतवर्ष में दो स्थानों पर इतिहास में समेटने के लिये [[विक्टोरिया मेमोरियल कोलकाता|विक्टोरिया मेमोरियल]] भवनों का निर्माण कराया गया उनमें से एक तत्कालीन [[कलकत्ता]] जो आज [[कोलकाता]] है और दूसरा हरदोई में। वर्तमान में इस भवन में हरदोई क्लब संचालित है। | जिस प्रकार [[रूमी दरवाज़ा लखनऊ|रूमी दरवाज़ा]], [[लखनऊ]] शहर का हस्ताक्षर भवन है ठीक वैसे ही यह विक्टोरिया भवन जनपद [[हरदोई]] का हस्ताक्षर शिल्प भवन है । परतंत्र भारत देश 1877 ई में जब [[महारानी विक्टोरिया]] सम्राज्ञी घोषित की गईं तो भारतवर्ष में दो स्थानों पर इतिहास में समेटने के लिये [[विक्टोरिया मेमोरियल कोलकाता|विक्टोरिया मेमोरियल]] भवनों का निर्माण कराया गया उनमें से एक तत्कालीन [[कलकत्ता]] जो आज [[कोलकाता]] है और दूसरा हरदोई में। वर्तमान में इस भवन में हरदोई क्लब संचालित है। | ||
====माधोगंज==== | ====माधोगंज==== | ||
राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित माधोगंज, हरदोई ज़िले का एक प्राचीन शहर है। यह शहर ऐतिहासिक दृष्टि से भी | राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित माधोगंज, हरदोई ज़िले का एक प्राचीन शहर है। यह शहर ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस शहर की स्थापना स्वतंत्रता सेनानी श्री नरपति सिंह ने की थी। इन्होंने देश को स्वतंत्रता दिलाने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। यहां स्थित रुइया गढ़ी क़िला, जो कि वर्तमान में नष्ट हो चुका है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक क्षणों का गवाह रहा है। वर्तमान समय में यह क़िला पुरातात्विक विभाग, उत्तर-प्रदेश की देख-रेख में है। माधोगंज हरदोई के दक्षिण से लगभग 34 किलोमीटर, [[कानपुर]] से 75 किलोमीटर और [[लखनऊ]] से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। | ||
====पिहानी==== | ====पिहानी==== | ||
हरदोई ज़िला स्थित पिहानी एक ऐतिहासिक जगह है। यह जगह हरदोई, | हरदोई ज़िला स्थित पिहानी एक ऐतिहासिक जगह है। यह जगह हरदोई, ज़िला मुख्यालय के उत्तर-पूर्व से 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह जगह का नाम पर्शियन शब्द पिनहानी से लिया गया है। जिसका अर्थ होता रहने की जगह। माना जाता है कि पूर्व समय में यह स्थान सघन जंगलों से घिरा हुआ था। [[शेरशाह सूरी|शेरशाह]] ने [[हुमायूँ]] के साथ हुए युद्ध में उनसे बचने के लिए इस जगह पर शरण ली थी। सदारजहां, अकबर शासक के मंत्री का पिहानी से नजदीकी सम्बन्ध रहा है। उनका मकबरा और चित्रकला यहां के प्रमुख आकर्षण केन्द्रों में से हैं। | ||
[[शिवसिंह सरोज]] तथा हिंदी साहित्य के प्रथम इतिहास तथा ऐतिहासिक तथ्यों एवं अन्य पुष्ट प्रमाणों के आधार पर रसखान की जन्म-भूमि पिहानी ज़िला हरदोई माना जाए। पिहानी और [[बिलग्राम]] ऐसी जगह हैं, जहाँ [[हिंदी]] के बड़े-बड़े एवं उत्तम कोटि के मुसलमान कवि पैदा हुए।<ref name="IGNCA">{{cite web |url=http://www.ignca.nic.in/coilnet/raskhn.htm |title=रसखान |accessmonthday=11 मई |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=www.ignca.nic.in |language=हिन्दी }}</ref> | |||
====संडीला==== | ====संडीला==== | ||
संडीला हरदोई | संडीला हरदोई ज़िला का एक ख़ूबसूरत नगर है। यह नगर हरदोई के दक्षिण से लगभग 50 किलोमीटर और लखनऊ के उत्तर-पश्चिम से 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस जगह की स्थापना ऋषि संडीला ने की थी। उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम रखा गया है। कई प्राचीन इमारतें, मस्जिद और बाराखम्भा आदि इस शहर का प्रमुख आकर्षण है। इसके अलावा, हत्याहरण यहां का प्रमुख धार्मिक स्थल है। | ||
====बेहता गोकुल==== | ====बेहता गोकुल==== | ||
हरदोई | हरदोई ज़िला स्थित यह एक छोटा सा गांव है। यह गांव हरदोई के उत्तर से 16 किलोमीटर और शाहबाद के दक्षिण से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। | ||
====श्रवण देवी मंदिर==== | |||
====सकहा शंकर मंदिर ==== | {{main|श्रवण देवी मंदिर हरदोई}} | ||
हरदोई जनपद मुख्यालय से लगभग पच्चीस तीस किलोमीटर दूर सकहा नामक स्थान हैं जिसका पुराना नाम सोनिकपुर था तथा यहां पर [[शंकासुर]] नामक दैत्य रहा करता था जो हरदोई के शासक [[हिरण्यकशिपु]] का सहयोगी था। भक्त प्रहलाद के | हरदोई जनपद मुख्यालय श्रवण देवी मंदिर स्थान हैं सती जी का कर्ण भाग यहा पर गिरा इसी से इस स्थान का नाम श्रवण दामिनी देवी पड़ा । इस स्थान पर प्रति वर्ष क्वार व चैत मास (नवरात्री) में तथा असाढ़-पूर्णिमा में मेला लगता है। | ||
इसके संबंध में यह भी किंवदंती है कि आजादी से कई वर्ष पूर्व लाला लाहौरीमल नामक एक व्यापारी के पुत्र को | ====सकहा शंकर मंदिर==== | ||
[[चित्र:Sakaha.jpg|[[सकहा शंकर मंदिर]] हरदोई |thumb|250px]] | |||
{{main|सकहा शंकर मंदिर}} | |||
हरदोई जनपद मुख्यालय से लगभग पच्चीस तीस किलोमीटर दूर सकहा नामक स्थान हैं जिसका पुराना नाम सोनिकपुर था तथा यहां पर [[शंकासुर]] नामक दैत्य रहा करता था जो हरदोई के शासक [[हिरण्यकशिपु]] का सहयोगी था। भक्त प्रहलाद के आह्वान पर जब भगवान ने नरसिंह रूप धारण कर हिरण्याकश्यप का वध किया तो शंकासुर भी ने भी यह स्थान छोड दिया। इस स्थान पर शिवलिंगों की एक पिरामिड जैसी आकृति उभर आयी जिस पर भगवान शंकर का मंदिर स्थापित हुआ । यह एक प्राचीन मंदिर था जिसका जीर्णोधार लगभग सत्तर वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में तैनात रहे कोतवाल द्वारा कराया गया था। | |||
इसके संबंध में यह भी किंवदंती है कि आजादी से कई वर्ष पूर्व लाला लाहौरीमल नामक एक व्यापारी के पुत्र को फाँसी की सजा हुई थी जिसकी माफी के लिये लाला लाहौरीमल ने यहां दरकार लगायी थी और मनौती पूरी होने के पश्चात् उनके द्वारा यहां पर शंकर जी का मंदिर बनवाया गया । कालान्तर में यहां पर आवासीय संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना हुई जो आज भी सुचारू रूप से गतिमान है। वर्तमान में इस मंदिर की व्यवस्था आदि का काम स्थानीय महंत श्री उदयप्रताप गिरि द्वारा देखा जा रहा है। | |||
====गांधी भवन==== | |||
{{main|गाँधी भवन, हरदोई}} | |||
सन [[1928]] में [[साइमन कमीशन]] के भारत आने के बाद इसका विरोध करने के लिये [[महात्मा गांधी]] ने समूचे भारत में यात्रा कर जनजागरण किया । इसी दौरान 11 अक्टूबर [[1929]] को गांधी जी ने हरदोई का भी भ्रमण किया। सभी वर्गों के व्यक्तियों द्वारा महात्मा गांधी जी का स्वागत किया तथा उन्होंने टाउन हाल में 4000 से अधिक व्यक्तियों की जनसभा को संबोधित किया। सभा के समापन पर खद्दर के कुछ बढिया कपडें 296 रुपये में नीलाम किये गये और यह धनराशि गांधी जी को भेट की गयी। <ref>संदर्भ:एच आर नेबिल संपादित हरदोई गजेटियर पृष्ठ 56 </ref> | |||
स्वतंत्रता के बाद सम्पूर्ण भारत वर्ष में महात्मा गांधी जी के भृमण स्थलों पर स्मारकों का निर्माण किया गया जिसमें हरदोई में [[गांधी भवन]] का निर्माण हुआ । इस भवन का रख रखाव [http://www.gandhibhawan.com/index.php महात्मा गांधी जनकल्याण समिति] <ref>http://www.gandhibhawan.com/index.php </ref>द्वारा किया जाता है। इस समिति के सचिव [[अशोक कुमार शुक्ला]] ने इस परिसर में एक प्रार्थना कक्ष स्थापित कराया और 2013 के नववर्ष पर [[सर्वोदय आश्रम टडियांवा]] के सहयोग से सर्वधर्म प्रार्थना का नियमित आरंभ कराया। यह प्रार्थना कक्ष महात्मा जी की विश्राम स्थली रहे [[कौसानी]] में स्थापित [[अनासक्ति आश्रम]] के समरूप है तथा [[कौसानी]] में संचालित नियमित सर्वधर्म प्रार्थना के अनुरूप इस परिसर में भी नियमित रूप से सर्वधर्म [[प्रार्थना]] की जाती है | |||
==== | ====सर्वोदय आश्रम टडियांवा==== | ||
{{main|सर्वोदय आश्रम टडियांवा}} | |||
हरदोई जनपद मुख्यालय से लगभग चालीस किलोमीटर दूर टडियांवा नामक स्थान हैं जहां पर आचार्य [[विनोवा भावे]] और [[महात्मा गांधी]] के दर्शन से प्रेरित इस [[आश्रम]] की नीव प्रसिद्ध समाजसेवी [[रमेश भाई]] और [[उर्मिला बहन]] द्वारा [[1984]] में रखी गयी। | |||
==चित्र वीथिका== | ==चित्र वीथिका== | ||
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चित्र:Victoria.JPG|विक्टोरिया हॉल | चित्र:Victoria.JPG|विक्टोरिया हॉल | ||
चित्र:Narsingh-Bhagwan.jpg|[[नृसिंह अवतार]] | चित्र:Narsingh-Bhagwan.jpg|[[नृसिंह अवतार]] | ||
चित्र:Sravan_devi.JPG|श्रवण देवी मंदिर हरदोई | चित्र:Sravan_devi.JPG|[[श्रवण देवी मंदिर हरदोई]] | ||
चित्र:Hardoi_baba.JPG|हरदोई बाबा मंदिर हरदोई | चित्र:Hardoi_baba.JPG|हरदोई बाबा मंदिर हरदोई | ||
चित्र:Ramjanki_.JPG|राम जानकी मंदिर हरदोई | चित्र:Ramjanki_.JPG|राम जानकी मंदिर हरदोई | ||
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{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
Corection in Sarvodaya Ashram: इस आश्रम की नीव प्रसिद्ध समाजसेवी रमेश भाई एवं उनकी टीम द्वारा 1983 mein रखी गयी. | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
*[http://yatrasalah.com/touristPlaces.aspx?id=222 हरदोई] | *[http://yatrasalah.com/touristPlaces.aspx?id=222 हरदोई] | ||
*[http://fresh-cartoons.blogspot.in/2012/10/blog-post.html हरदोई में आमद] | *[http://fresh-cartoons.blogspot.in/2012/10/blog-post.html हरदोई में आमद] | ||
*[http://hardoi.net/index.php हरदोई शहर] | *[http://hardoi.net/index.php हरदोई शहर] | ||
*[https://www.facebook.com/notes/ashok-shukla/%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A3-%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5-%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%96-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87/794981563865949?comment_id=799885926708846&offset=0&total_comments=15¬if_t=note_comment हत्याहारण तीर्थ हरदोई] | |||
*[http://abhivyakti-hindi.org/sansmaran/nagarnama/hardoi.htm हिरण्याकश्यप की नगरी हरदोई] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{उत्तर प्रदेश के नगर}} | {{उत्तर प्रदेश के नगर}} |
Latest revision as of 10:42, 2 January 2018
हरदोई | हरदोई पर्यटन | हरदोई ज़िला |
हरदोई में में स्थापित नरसिंह भगवान की मूर्ति|thumb|250px हरदोई उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख नगर है। संडी पक्षी अभयारण्य, बालामऊ, माधोगंज, पिहानी, संडीला और बेहता गोकुल आदि यहां के दर्शनीय स्थलों में से है। यह ज़िला शाहजहांपुर और लखीमपुर-खीरी ज़िले के उत्तर, लखनऊ और उन्नाव ज़िले के दक्षिण, कानपुर और फ़र्रुख़ाबाद ज़िले के पश्चिम और सीतापुर ज़िला के पूर्व से घिरा हुआ है।
इतिहास
ऐतिहासिक दृष्टि से यह स्थान काफ़ी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इसमें मुग़ल और अफ़ग़ान शासकों के बीच कई युद्ध हुए है। बिलग्राम और सांदी शहर के मध्य हुए युद्ध में हुमायूँ को शेरशाह सूरी ने हराया था। [[चित्र:Gazetiar.jpg|गजेटियर 1904 में हरदोई का उद्धरण|thumb|left]] 1904 के गजेटियर में प्रथम स्वतंत्रता आन्दोलन 1857 के दौरान धटित घटनाक्रम के रूप में लिखा है कि हरदोई के कटियारी श्रेत्र का तालुकेदार हरदेव बक्श फतेहगढ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के लगातार भय के बावजूद पूरे संघर्ष में वफादार बना रहा। मुख्य सेनानायक के निर्देश पर ब्रिटिश सेना की तीन टुकडियां उस समय उत्तर पश्चिम अवध में विद्रोहियों के विरुद्ध कार्यरत थी। इनमें से एक को ब्रिगेडियर हाल के अधीन फतेहगढ से जनपद मल्लावां में होते हुये सीतापुर की ओर बढने का आदेश था। दूसरी को ब्रिगेडिर बारकर के नेतृत्व में लखनउ से चलकर हाल से जा मिलने का आदेश था । बारकर 7 अक्टूबर को सण्डीला पहुंचा अगले दिन उग्र आक्रमण किया । एक निराशापूर्ण युद्व के पश्चात् स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को पूर्ण रूप से पराजित होना पडा । बारकर ने सण्डीला के आसपास के क्षेत्र पर नियंत्रण करने के लिये इसे केन्द्र बना लिया। अक्टूबर की 21 तारीख को उसने तूंफानी हल्ला बोलकर विरवा के किले को अपने अधिकार में ले लिया। हाल की सेना 28 तारीख को रूइया में बारकर से जाकर मिली । नरपत सिंह को अपना किला छोडकर भागना पडा। नरपत का किला अन्य दुर्गो की भांति तोड डाला गया । 1858 नवम्बर के प्रथम सप्ताह में जनपद मल्लावां लगभग पूर्णरूप से सक्रिय अंग्रेज विरोधी तत्वों से साफ कर दिया गया । दिनांा 28 अक्टूबर 1858 के उपरांत जनपद मल्लावां का अस्तित्व समाप्त हो गया था और शासक किला छोडकर भाग गये थे। इस तिथि के उपरांत मुख्यालय हरदोई बनाया गया और प्रशासन पुर्नसंगठित किया गया अतः 28 अक्टूबर इस नये जनपद का स्थापना दिवस माना गया। अंग्रेजी सेनाओं के जाने के बाद जनपद का सामान्य प्रशासन पुर्नसंगठित किया गया मल्लावां के स्थान पर मुख्यालय हरदोई बनाया गया क्योंकि यह मल्लावां की तुलना में केन्द्र में स्थित था।
पौराणिक कथा
स्थानीय लोगों का मानना है कि पहले इस जगह को हरिद्रोही के नाम से जाना जाता था। हिन्दी में जिसका अर्थ ईश्वर का विरोधी होता है। पौराणिक कथा के अनुसार, पूर्व समय में यहाँ पर राजा हिरण्यकशिपु का शासन था। राजा की भगवान के प्रति बिल्कुल भी आस्था नहीं थी और वह स्वयं को भगवान मानता था। वह चाहता था कि सब लोग उसकी पूजा करें, मगर स्वयं राजा का पुत्र प्रह्लाद ने उसका विरोध किया। जिस कारण हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को कई बार मारने की कोशिश की। लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। बाद में प्रह्लाद को बचाने के लिए स्वयं भगवान ने नरसिंह का अवतार लिया और हिरण्यकशिपु का वध किया।
अन्य कथा
एक अन्य कथा के अनुसार, हरदोई की उत्पत्ति हरिद्रव्य से हुई है। जिसका अर्थ दो भगवान होता है। यह दो भगवान, वामन भगवान और नरसिम्हा भगवान है जिन्हें हरिद्रव्य कहा जाता है। जिसके पश्चात् इस जगह का नाम हरदोई पड़ा। हरदोई, 'हरिद्वेई' या 'हरिद्रोही' यूं तो हरदोई को हरिद्वेई भी कहा जाता है क्योंकि भगवान ने यहां दो बार अवतार लिया एक बार हिरण्याकश्यप वध करने के लिये नरसिंह भगवान रूप में तथा दूसरी बार भगवान बावन रूप रखकर परन्तु सबसे अधिक विस्मयकारी तथ्य यह है कि विजयादशमी पर्व पर सम्पूर्ण हरदोई नगर में कहीं भी रावण दहन का कोई कार्यक्रम नहीं होता। जब इसका कारण जानने की कोशिश की तो यह ज्ञात हुआ कि यहां यह परंपरा ही नहीं है।
प्रह्लाद नगरी
हरदोई लखनऊ मंडल कर एक ज़िला है जो ऐतिहासिक महत्व का जनपद है जो भक्त प्रह्लाद की नगरी के रूप में भी प्रसिद्ध है। किंवदंती है कि भगवान ने नरसिंह अवतार लेकर इसी जगह भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी। क़ादिर बख्श पिहानी, ज़िला हरदोई के रहने वाले इन्होंने कृष्ण की प्रशंसा में काव्य-रचना की जो अति सुन्दर एवं मधुर है।
हिन्दू मुस्लिम मेलजोल
देश के आम हिस्सों की तरह यहाँ हिन्दू मुस्लिम में काफ़ी हद तक अभी भी आपसी मेलजोल कायम है सन 1947 से पहले जब मुम्बई (बम्बई ) में गाँधी जी और जिन्ना के बीच हिन्दू और मुसलमानों के मुद्दे को लेकर देश के बटवारे को लेकर बहस जोरो पर थी ठीक उसी समय यहाँ के एक कश्मीरी पंडित हरदोई शहर में एक मात्र ईदगाह के लिए अपनी जमीन मुस्लिमो की संस्था अंजुमन इस्लामिया को दान में दे रहे थे | 1947 के बाद जब अयोध्या में मंदिर मस्जिद को लेकर जबरदस्त गर्म हवाए चल रही थी उस समय रेल्वेय्गंज के एक मुस्लिम व्यापारी पैसे और जमीन दान देकर एक मंदिर की नीव रखवा रहे थे .........ऐसे गजब के इतिहास को अपने में समेटे ज़िला हरदोई
दर्शनीय स्थल
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साण्डी पक्षी अभयारण्य
[[चित्र:Sandi.jpg| साण्डी पक्षी अभयारण्य|thumb|250px]]
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हरदोई ज़िला स्थित साण्डी पक्षी अभयारण्य की स्थापना 1990 ई. में हुई थी। यह अभयारण्य लखनऊ से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह अभयारण्य लगभग तीन किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां पक्षियों की अनेक प्रजातियां देखी जा सकती है। यहां घूमने के लिए सबसे उचित समय दिसम्बर से फरवरी है।
हत्याहारण तीर्थ, हरदोई
[[चित्र:Hatyaharan.jpg| हत्याहारण तीर्थ|thumb|250px]]
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हत्याहारण तीर्थ जनपद हरदोई की सण्डीला तहसील में पवित्र नैमिषारण्य परिक्रमा क्षेत्र में स्थित है। यह तीर्थ लखनऊ से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। तीर्थ के संबंध में यह मान्यता है कि भगवान राम भी रावण वध के उपरांत ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त होने के लिये इस सरोवर में स्नान करने आये थे।
बिलग्राम
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जनपद हरदोई के सम्बन्ध में एक और आश्चर्यजनक तथ्य बताना चाहता हूं। इस जनपद में ‘विलग्राम‘ नाम का एक उपखंड है जिसके बारे में यह बताया जाता है कि यह मूल रूप से ‘विलग राम‘ शब्द का अपभ्रंश है । ‘विलग राम’ अर्थात राम से विलग रहने वाला। 1909 में यहां के निवासी एक मुसलमान, सैयद हुसैन बिलग्रामी को महारानी विक्टोरिया के वादे को लागू करने के लिए व्हाइट हॉल में नियुक्त किया गया, जिन्होंने मॉर्ले मिण्टो सुधार में तथा कालान्तर में मुस्लिम लीग की स्थापना में सक्रिय भूमिका निभाई। विलग्राम तहसील क्षेत्रान्तरर्गत मोहक साण्डी पक्षी अभ्यारण स्थित है।
बालामऊ
बालामऊ, हरदोई ज़िला के प्राचीन शहरों में से है। माना जाता है कि इस शहर की स्थापना अकबर काल के अन्तिम समय में बामी मिरमी ने की थी। वर्तमान समय में इस जगह को बामी खेरा ने नाम से जाना जाता है। यह शहर ज़िला मुख्यालय के दक्षिण की ओर तथा सांदिला के उत्तर-पूर्व से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। शहर के समीप ही सीतापुर ज़िला है जो नैमिषारण्य के लिए प्रसिद्ध है। यह जगह धार्मिक स्थल के रूप में जानी जाती है।
विक्टोरिया मेमोरियल
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जिस प्रकार रूमी दरवाज़ा, लखनऊ शहर का हस्ताक्षर भवन है ठीक वैसे ही यह विक्टोरिया भवन जनपद हरदोई का हस्ताक्षर शिल्प भवन है । परतंत्र भारत देश 1877 ई में जब महारानी विक्टोरिया सम्राज्ञी घोषित की गईं तो भारतवर्ष में दो स्थानों पर इतिहास में समेटने के लिये विक्टोरिया मेमोरियल भवनों का निर्माण कराया गया उनमें से एक तत्कालीन कलकत्ता जो आज कोलकाता है और दूसरा हरदोई में। वर्तमान में इस भवन में हरदोई क्लब संचालित है।
माधोगंज
राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित माधोगंज, हरदोई ज़िले का एक प्राचीन शहर है। यह शहर ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस शहर की स्थापना स्वतंत्रता सेनानी श्री नरपति सिंह ने की थी। इन्होंने देश को स्वतंत्रता दिलाने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। यहां स्थित रुइया गढ़ी क़िला, जो कि वर्तमान में नष्ट हो चुका है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक क्षणों का गवाह रहा है। वर्तमान समय में यह क़िला पुरातात्विक विभाग, उत्तर-प्रदेश की देख-रेख में है। माधोगंज हरदोई के दक्षिण से लगभग 34 किलोमीटर, कानपुर से 75 किलोमीटर और लखनऊ से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
पिहानी
हरदोई ज़िला स्थित पिहानी एक ऐतिहासिक जगह है। यह जगह हरदोई, ज़िला मुख्यालय के उत्तर-पूर्व से 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह जगह का नाम पर्शियन शब्द पिनहानी से लिया गया है। जिसका अर्थ होता रहने की जगह। माना जाता है कि पूर्व समय में यह स्थान सघन जंगलों से घिरा हुआ था। शेरशाह ने हुमायूँ के साथ हुए युद्ध में उनसे बचने के लिए इस जगह पर शरण ली थी। सदारजहां, अकबर शासक के मंत्री का पिहानी से नजदीकी सम्बन्ध रहा है। उनका मकबरा और चित्रकला यहां के प्रमुख आकर्षण केन्द्रों में से हैं। शिवसिंह सरोज तथा हिंदी साहित्य के प्रथम इतिहास तथा ऐतिहासिक तथ्यों एवं अन्य पुष्ट प्रमाणों के आधार पर रसखान की जन्म-भूमि पिहानी ज़िला हरदोई माना जाए। पिहानी और बिलग्राम ऐसी जगह हैं, जहाँ हिंदी के बड़े-बड़े एवं उत्तम कोटि के मुसलमान कवि पैदा हुए।[1]
संडीला
संडीला हरदोई ज़िला का एक ख़ूबसूरत नगर है। यह नगर हरदोई के दक्षिण से लगभग 50 किलोमीटर और लखनऊ के उत्तर-पश्चिम से 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस जगह की स्थापना ऋषि संडीला ने की थी। उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम रखा गया है। कई प्राचीन इमारतें, मस्जिद और बाराखम्भा आदि इस शहर का प्रमुख आकर्षण है। इसके अलावा, हत्याहरण यहां का प्रमुख धार्मिक स्थल है।
बेहता गोकुल
हरदोई ज़िला स्थित यह एक छोटा सा गांव है। यह गांव हरदोई के उत्तर से 16 किलोमीटर और शाहबाद के दक्षिण से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
श्रवण देवी मंदिर
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हरदोई जनपद मुख्यालय श्रवण देवी मंदिर स्थान हैं सती जी का कर्ण भाग यहा पर गिरा इसी से इस स्थान का नाम श्रवण दामिनी देवी पड़ा । इस स्थान पर प्रति वर्ष क्वार व चैत मास (नवरात्री) में तथा असाढ़-पूर्णिमा में मेला लगता है।
सकहा शंकर मंदिर
[[चित्र:Sakaha.jpg|सकहा शंकर मंदिर हरदोई |thumb|250px]]
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हरदोई जनपद मुख्यालय से लगभग पच्चीस तीस किलोमीटर दूर सकहा नामक स्थान हैं जिसका पुराना नाम सोनिकपुर था तथा यहां पर शंकासुर नामक दैत्य रहा करता था जो हरदोई के शासक हिरण्यकशिपु का सहयोगी था। भक्त प्रहलाद के आह्वान पर जब भगवान ने नरसिंह रूप धारण कर हिरण्याकश्यप का वध किया तो शंकासुर भी ने भी यह स्थान छोड दिया। इस स्थान पर शिवलिंगों की एक पिरामिड जैसी आकृति उभर आयी जिस पर भगवान शंकर का मंदिर स्थापित हुआ । यह एक प्राचीन मंदिर था जिसका जीर्णोधार लगभग सत्तर वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में तैनात रहे कोतवाल द्वारा कराया गया था। इसके संबंध में यह भी किंवदंती है कि आजादी से कई वर्ष पूर्व लाला लाहौरीमल नामक एक व्यापारी के पुत्र को फाँसी की सजा हुई थी जिसकी माफी के लिये लाला लाहौरीमल ने यहां दरकार लगायी थी और मनौती पूरी होने के पश्चात् उनके द्वारा यहां पर शंकर जी का मंदिर बनवाया गया । कालान्तर में यहां पर आवासीय संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना हुई जो आज भी सुचारू रूप से गतिमान है। वर्तमान में इस मंदिर की व्यवस्था आदि का काम स्थानीय महंत श्री उदयप्रताप गिरि द्वारा देखा जा रहा है।
गांधी भवन
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सन 1928 में साइमन कमीशन के भारत आने के बाद इसका विरोध करने के लिये महात्मा गांधी ने समूचे भारत में यात्रा कर जनजागरण किया । इसी दौरान 11 अक्टूबर 1929 को गांधी जी ने हरदोई का भी भ्रमण किया। सभी वर्गों के व्यक्तियों द्वारा महात्मा गांधी जी का स्वागत किया तथा उन्होंने टाउन हाल में 4000 से अधिक व्यक्तियों की जनसभा को संबोधित किया। सभा के समापन पर खद्दर के कुछ बढिया कपडें 296 रुपये में नीलाम किये गये और यह धनराशि गांधी जी को भेट की गयी। [2] स्वतंत्रता के बाद सम्पूर्ण भारत वर्ष में महात्मा गांधी जी के भृमण स्थलों पर स्मारकों का निर्माण किया गया जिसमें हरदोई में गांधी भवन का निर्माण हुआ । इस भवन का रख रखाव महात्मा गांधी जनकल्याण समिति [3]द्वारा किया जाता है। इस समिति के सचिव अशोक कुमार शुक्ला ने इस परिसर में एक प्रार्थना कक्ष स्थापित कराया और 2013 के नववर्ष पर सर्वोदय आश्रम टडियांवा के सहयोग से सर्वधर्म प्रार्थना का नियमित आरंभ कराया। यह प्रार्थना कक्ष महात्मा जी की विश्राम स्थली रहे कौसानी में स्थापित अनासक्ति आश्रम के समरूप है तथा कौसानी में संचालित नियमित सर्वधर्म प्रार्थना के अनुरूप इस परिसर में भी नियमित रूप से सर्वधर्म प्रार्थना की जाती है
सर्वोदय आश्रम टडियांवा
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हरदोई जनपद मुख्यालय से लगभग चालीस किलोमीटर दूर टडियांवा नामक स्थान हैं जहां पर आचार्य विनोवा भावे और महात्मा गांधी के दर्शन से प्रेरित इस आश्रम की नीव प्रसिद्ध समाजसेवी रमेश भाई और उर्मिला बहन द्वारा 1984 में रखी गयी।
चित्र वीथिका
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विक्टोरिया हॉल
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साण्डी पक्षी अभ्यारण
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पर्पल सनबर्ड
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विक्टोरिया हॉल
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हरदोई बाबा मंदिर हरदोई
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राम जानकी मंदिर हरदोई
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सकहा स्थित शंकर जी का लिंग शीर्ष
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सकहा शंकर मंदिर हरदोई
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सर्वोदय आश्रम में भ्रमण करती श्रीमती दमन सिंह (प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह की पुत्री)
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Corection in Sarvodaya Ashram: इस आश्रम की नीव प्रसिद्ध समाजसेवी रमेश भाई एवं उनकी टीम द्वारा 1983 mein रखी गयी.
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रसखान (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) www.ignca.nic.in। अभिगमन तिथि: 11 मई, 2012।
- ↑ संदर्भ:एच आर नेबिल संपादित हरदोई गजेटियर पृष्ठ 56
- ↑ http://www.gandhibhawan.com/index.php
बाहरी कड़ियाँ
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