आदित्य (चोल वंश): Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
(7 intermediate revisions by 4 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
'''आदित्य प्रथम''' (875-907 ई.), चोडराज [[विजयालय]] का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। विजयालय के बाद आदित्य प्रथम लगभग 875 ई. में [[चोल राजवंश]] के सिंहासन पर बैठा। 890 ई. के लगभग उसने पल्लवराज अपराजितवर्मन को परास्त कर तोंडमंडलम् को अपने राज्य में मिला लिया। | |||
*उसने [[पल्लव वंश|पल्लव]] नरेश [[अपराजित]] को [[पाण्ड्य साम्राज्य|पाण्ड्य]] नरेश 'वरगुण' के ख़िलाफ़ संघर्ष में सैनिक सहायता दी थी। | |||
*उसने [[पल्लव वंश|पल्लव]] नरेश [[अपराजित]] को [[पाण्ड्य साम्राज्य|पाण्ड्य]] नरेश 'वरगुण' के | *इस सैनिक सहायता के बल पर इस संघर्ष में नरेश अपराजित विजयी हुआ, किन्तु [[कालान्तर]] में आदित्य प्रथम ने अपनी साम्राज्य विस्तारवादी महत्त्वाकांक्षा के वशीभूत होकर अपराजित को एक युद्ध में पराजित कर उसकी हत्या कर दी और इस तरह पल्लव राज्य पर चोलों का अधिकार हो गया। | ||
*इस सैनिक सहायता के बल पर इस संघर्ष में नरेश अपराजित विजयी हुआ, किन्तु कालान्तर में आदित्य प्रथम ने अपनी साम्राज्य विस्तारवादी | |||
*इसके फलस्वरूप 895 ई. के लगभग [[कांची]] पर भी चोलों का क़ब्ज़ा हो गया और सम्पूर्ण पल्लव राज्य पूरी तरह से चोलों की अधीनता में ले लिया गया। | *इसके फलस्वरूप 895 ई. के लगभग [[कांची]] पर भी चोलों का क़ब्ज़ा हो गया और सम्पूर्ण पल्लव राज्य पूरी तरह से चोलों की अधीनता में ले लिया गया। | ||
*पल्लवों की पराजय के कारण आदित्य के चोल राज्य की उत्तरी सीमा दक्षिणापथ पति [[राष्ट्रकूट साम्राज्य|राष्ट्रकूटों]] के राज्य की सीमा के साथ आ लगी। | *पल्लवों की पराजय के कारण आदित्य के चोल राज्य की उत्तरी सीमा दक्षिणापथ पति [[राष्ट्रकूट साम्राज्य|राष्ट्रकूटों]] के राज्य की सीमा के साथ आ लगी। | ||
*पल्लवों के अतिरिक्त उसने पाण्ड्यों एवं [[कलिंग]] देश के [[गंग वंश|गंगों]] को भी पराजित किया और 'मदुरैकोण्ड' की उपाधि धारण की। | *पल्लवों के अतिरिक्त उसने पाण्ड्यों एवं [[कलिंग]] देश के [[गंग वंश|गंगों]] को भी पराजित किया और 'मदुरैकोण्ड' की उपाधि धारण की। | ||
*949 ई. में [[ | *949 ई. में [[राष्ट्रकूट वंश|राष्ट्रकूट]] नरेश [[कृष्ण तृतीय]] ने पश्चिमी गंगों की सहायता से चोलों पर आक्रमण कर दिया। | ||
*इस आक्रमण से 'तक्कोलम' के युद्ध में चोल बुरी तरह पराजित हुये तथा साम्राज्य का उत्तरी भाग राष्ट्रकूट साम्राज्य में मिल गया। | *इस आक्रमण से 'तक्कोलम' के युद्ध में चोल बुरी तरह पराजित हुये तथा साम्राज्य का उत्तरी भाग राष्ट्रकूट साम्राज्य में मिल गया। | ||
*आदित्य परम शैव भक्त था और उसने शिव के अनेक मंदिर बनाए। | |||
आदित्य प्रथम के मरने तक उत्तर में कलहस्ती और मद्रा तथा दक्षिण में कावेरी तक का सारा जनपद चोलों के शासन में आ चुका था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=368-69 |url=}}</ref> | |||
{{प्रचार}} | {{प्रचार}} | ||
Line 17: | Line 21: | ||
|शोध= | |शोध= | ||
}} | }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{चोल राजवंश}} | {{चोल राजवंश}} | ||
{{भारत के राजवंश}} | |||
[[Category:इतिहास_कोश]] | [[Category:इतिहास_कोश]] | ||
[[Category:चोल साम्राज्य]] | [[Category:चोल साम्राज्य]] | ||
[[Category:हिन्दी विश्वकोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Latest revision as of 11:29, 12 June 2018
आदित्य प्रथम (875-907 ई.), चोडराज विजयालय का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। विजयालय के बाद आदित्य प्रथम लगभग 875 ई. में चोल राजवंश के सिंहासन पर बैठा। 890 ई. के लगभग उसने पल्लवराज अपराजितवर्मन को परास्त कर तोंडमंडलम् को अपने राज्य में मिला लिया।
- उसने पल्लव नरेश अपराजित को पाण्ड्य नरेश 'वरगुण' के ख़िलाफ़ संघर्ष में सैनिक सहायता दी थी।
- इस सैनिक सहायता के बल पर इस संघर्ष में नरेश अपराजित विजयी हुआ, किन्तु कालान्तर में आदित्य प्रथम ने अपनी साम्राज्य विस्तारवादी महत्त्वाकांक्षा के वशीभूत होकर अपराजित को एक युद्ध में पराजित कर उसकी हत्या कर दी और इस तरह पल्लव राज्य पर चोलों का अधिकार हो गया।
- इसके फलस्वरूप 895 ई. के लगभग कांची पर भी चोलों का क़ब्ज़ा हो गया और सम्पूर्ण पल्लव राज्य पूरी तरह से चोलों की अधीनता में ले लिया गया।
- पल्लवों की पराजय के कारण आदित्य के चोल राज्य की उत्तरी सीमा दक्षिणापथ पति राष्ट्रकूटों के राज्य की सीमा के साथ आ लगी।
- पल्लवों के अतिरिक्त उसने पाण्ड्यों एवं कलिंग देश के गंगों को भी पराजित किया और 'मदुरैकोण्ड' की उपाधि धारण की।
- 949 ई. में राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण तृतीय ने पश्चिमी गंगों की सहायता से चोलों पर आक्रमण कर दिया।
- इस आक्रमण से 'तक्कोलम' के युद्ध में चोल बुरी तरह पराजित हुये तथा साम्राज्य का उत्तरी भाग राष्ट्रकूट साम्राज्य में मिल गया।
- आदित्य परम शैव भक्त था और उसने शिव के अनेक मंदिर बनाए।
आदित्य प्रथम के मरने तक उत्तर में कलहस्ती और मद्रा तथा दक्षिण में कावेरी तक का सारा जनपद चोलों के शासन में आ चुका था।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 368-69 |