विश्व हिन्दी सम्मेलन 1983: Difference between revisions
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#विगत दो सम्मेलनों में पारित संकल्पों की संपुष्टि करते हुए यह निर्णय लिया गया कि अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी के विकास और उन्नयन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक स्थायी समिति का गठन किया जाए। इस समिति में देश-विदेश के लगभग 25 व्यक्ति सदस्य हों। | #विगत दो सम्मेलनों में पारित संकल्पों की संपुष्टि करते हुए यह निर्णय लिया गया कि अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी के विकास और उन्नयन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक स्थायी समिति का गठन किया जाए। इस समिति में देश-विदेश के लगभग 25 व्यक्ति सदस्य हों। | ||
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Latest revision as of 11:55, 9 February 2021
तीसरा विश्व हिन्दी सम्मेलन भारत की राजधानी दिल्ली में वर्ष 1983 में 28 अक्टूबर से 30 अक्टूबर तक आयोजित किया गया। इस सम्मेलन के लिये बनी राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष डॉ. बलराम जाखड़ थे।
- इस सम्मेलन में मॉरीशस से आये प्रतिनिधिमण्डल ने भी हिस्सा लिया, जिसके नेता हरीश बुधू थे।
- सम्मेलन के आयोजन में 'राष्ट्रभाषा प्रचार समिति', वर्धा ने प्रमुख भूमिका निभायी।
- तीसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन में कुल 6,566 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया, जिनमें विदेशों से आये 260 प्रतिनिधि भी शामिल थे।
- हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा समापन समारोह की मुख्य अतिथि थीं। इस अवसर पर उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा था कि-
भारत के सरकारी कार्यालयों में हिन्दी के कामकाज की स्थिति उस रथ जैसी है, जिसमें घोड़े आगे की बजाय पीछे जोत दिये गये हों।
पारित प्रस्ताव
- अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी के प्रचार-प्रसार की संभावनाओं का पता लगाकर इसके लिए गहन प्रयास किए जाएं।
- हिन्दी के विश्वव्यापी स्वरूप को विकसित करने के लिए विश्व हिन्दी विद्यापीठ स्थापित करने की योजना को मूर्त रूप दिया जाए।
- विगत दो सम्मेलनों में पारित संकल्पों की संपुष्टि करते हुए यह निर्णय लिया गया कि अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी के विकास और उन्नयन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक स्थायी समिति का गठन किया जाए। इस समिति में देश-विदेश के लगभग 25 व्यक्ति सदस्य हों।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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