अनमोल वचन 14: Difference between revisions
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* सच्चे सौंदर्य का रहस्य सच्ची सरलता है। ~ साधु वासवानी | * सच्चे सौंदर्य का रहस्य सच्ची सरलता है। ~ साधु वासवानी | ||
* सौंदर्य संसार की सभी संस्तुतियों से बढ़कर है। ~ अरस्तु | * सौंदर्य संसार की सभी संस्तुतियों से बढ़कर है। ~ अरस्तु | ||
* | * ज़रूरी नहीं कि जो रूप में ठीक हो, वह सद्गुण संपन्न भी हो। ~ शेख सादी | ||
* सौंदर्य देखने वाले की आंख में होता है। ~ शेक्सपियर | * सौंदर्य देखने वाले की आंख में होता है। ~ शेक्सपियर | ||
===सौंदर्य पवित्रता में रहता है=== | ===सौंदर्य पवित्रता में रहता है=== | ||
* सौंदर्य पवित्रता में रहता है और गुणों में चमकता है। ~ शिवानंद | * सौंदर्य पवित्रता में रहता है और गुणों में चमकता है। ~ शिवानंद | ||
* | * ज़रूरी नहीं कि जो रूप में ठीक हो, वह सद्गुण संपन्न भी हो। ~ शेख सादी | ||
* प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। ~ शाह अब्दुल लतीफ | * प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। ~ शाह अब्दुल लतीफ | ||
* सत्य हज़ार ढंग से कहा जा सकता है और फिर भी हर ढंग सत्य हो सकता है। ~ स्वामी विवेकानंद | * सत्य हज़ार ढंग से कहा जा सकता है और फिर भी हर ढंग सत्य हो सकता है। ~ स्वामी विवेकानंद | ||
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* आपत्तियां हमें आत्मज्ञान कराती हैं, वे हमें दिखा देती हैं कि हम किस मिट्टी के बने हैं। ~ जवाहरलाल नेहरू | * आपत्तियां हमें आत्मज्ञान कराती हैं, वे हमें दिखा देती हैं कि हम किस मिट्टी के बने हैं। ~ जवाहरलाल नेहरू | ||
* आत्मविश्वास सरीखा दूसरा मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की प्रथम सीढ़ी है। ~ स्वामी विवेकानंद | * आत्मविश्वास सरीखा दूसरा मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की प्रथम सीढ़ी है। ~ स्वामी विवेकानंद | ||
* केवल आत्मज्ञान ही ऐसा है जो हमें सब | * केवल आत्मज्ञान ही ऐसा है जो हमें सब ज़रूरतों से परे कर सकता है। ~ स्वामी रामतीरथ | ||
===संसार एक यात्रा और मनुष्य यात्री=== | ===संसार एक यात्रा और मनुष्य यात्री=== | ||
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* सच्चा प्रेम स्तुति से प्रकट नहीं होता, सेवा से प्रकट होता है। ~ गांधी | * सच्चा प्रेम स्तुति से प्रकट नहीं होता, सेवा से प्रकट होता है। ~ गांधी | ||
* प्रेम हृदय के समस्त सद्भावों का शांत, स्थिर, उद्गारहीन समावेश है। ~ प्रेमचंद | * प्रेम हृदय के समस्त सद्भावों का शांत, स्थिर, उद्गारहीन समावेश है। ~ प्रेमचंद | ||
* प्रेम | * प्रेम दु:ख और वेदना का बंधु है। इस संसार में जहां दु:ख और वेदना का अथाह सागर है, वहां प्रेम की अधिक आवश्यकता है। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा | ||
* पारस्परिक प्रेम हमारे सभी आनंदों का शिरोमणि है। ~ मिल्टन | * पारस्परिक प्रेम हमारे सभी आनंदों का शिरोमणि है। ~ मिल्टन | ||
* प्रेम बिना तर्क का तर्क है। ~ शेक्सपियर | * प्रेम बिना तर्क का तर्क है। ~ शेक्सपियर | ||
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===सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति=== | ===सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति=== | ||
* बैर के कारण | * बैर के कारण उत्पन्नहोने वाली आग एक पक्ष को स्वाहा किए बिना कभी शांत नहीं होती। ~ वेदव्यास | ||
* ब्रह्मा ज्ञान मूक ज्ञान है, स्वयं प्रकाश है। सूर्य को अपना प्रकाश मुंह से नहीं बताना पड़ता। वह है, यह हमें दिखाई देता है। यही बात ब्रह्मा-ज्ञान के बारे में भी है। ~ महात्मा गांधी | * ब्रह्मा ज्ञान मूक ज्ञान है, स्वयं प्रकाश है। सूर्य को अपना प्रकाश मुंह से नहीं बताना पड़ता। वह है, यह हमें दिखाई देता है। यही बात ब्रह्मा-ज्ञान के बारे में भी है। ~ महात्मा गांधी | ||
* सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति किसी भी लोक-परलोक की कामना के लिए नहीं होती, वह तो अहैतुकी हुआ करती है। ~ राबिया | * सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति किसी भी लोक-परलोक की कामना के लिए नहीं होती, वह तो अहैतुकी हुआ करती है। ~ राबिया | ||
Line 136: | Line 136: | ||
* सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है। उसका सबसे बड़ा शत्रु पूर्वग्रह है और उसका स्थायी साथी विनम्रता है। ~ चार्ल्स कैलब काल्टन | * सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है। उसका सबसे बड़ा शत्रु पूर्वग्रह है और उसका स्थायी साथी विनम्रता है। ~ चार्ल्स कैलब काल्टन | ||
* मनुष्य श्रद्धा से इस संसार-प्रवाह को आसानी से पार कर जाता है। ~ सुत्तनिपात | * मनुष्य श्रद्धा से इस संसार-प्रवाह को आसानी से पार कर जाता है। ~ सुत्तनिपात | ||
* दुनिया में रहते हुए भी सेवा-भाव से और सेवा के लिए ही जो जीता है, वह | * दुनिया में रहते हुए भी सेवा-भाव से और सेवा के लिए ही जो जीता है, वह संन्यासी है। ~ महात्मा गांधी | ||
* अनिष्ट से यदि इष्ट सिद्धि हो भी जाए तो भी उसका परिणाम अच्छा नहीं होता। ~ नारायण पंडित | * अनिष्ट से यदि इष्ट सिद्धि हो भी जाए तो भी उसका परिणाम अच्छा नहीं होता। ~ नारायण पंडित | ||
Line 152: | Line 152: | ||
===सत्य सदैव निराला होता है=== | ===सत्य सदैव निराला होता है=== | ||
* जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, जिसने न | * जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, जिसने न दु:ख देखा है, न सुख-वह संतुष्ट कहा जाता है। ~ महोपनिषद | ||
* सच्चा मूल्य तो उस श्रद्धा का है, जो कड़ी-से-कड़ी कसौटी के समय भी टिकी रहती है। ~ महात्मा गांधी | * सच्चा मूल्य तो उस श्रद्धा का है, जो कड़ी-से-कड़ी कसौटी के समय भी टिकी रहती है। ~ महात्मा गांधी | ||
* झूठा नाता | * झूठा नाता जगत् का, झूठा है घरवास। यह तन झूठा देखकर सहजो भई उदास। ~ सहजोबाई | ||
* जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। ~ बाणभट्ट | * जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। ~ बाणभट्ट | ||
* सत्य सदैव निराला होता है, कल्पना से भी अधिक निराला। ~ बायरन | * सत्य सदैव निराला होता है, कल्पना से भी अधिक निराला। ~ बायरन | ||
Line 170: | Line 170: | ||
* किसी की भी जीभ पकड़ी नहीं जा सकती। जिसको जैसा समझ में आए, वैसा कहता रहे। ~ तुलसीदास | * किसी की भी जीभ पकड़ी नहीं जा सकती। जिसको जैसा समझ में आए, वैसा कहता रहे। ~ तुलसीदास | ||
* सत्य हज़ार ढंग से कहा जा सकता है और फिर भी हर ढंग सत्य हो सकता है। ~ स्वामी विवेकानंद | * सत्य हज़ार ढंग से कहा जा सकता है और फिर भी हर ढंग सत्य हो सकता है। ~ स्वामी विवेकानंद | ||
* अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, | * अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान् पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता। ~ वेदव्यास | ||
===सत्य के तीन भाग हैं=== | ===सत्य के तीन भाग हैं=== | ||
Line 206: | Line 206: | ||
* योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष की पूतिर् प्रतिष्ठा के द्वारा होती है। ~ मोहन राकेश | * योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष की पूतिर् प्रतिष्ठा के द्वारा होती है। ~ मोहन राकेश | ||
===साहस के | ===साहस के मुताबिक़ संकल्प=== | ||
* जिस मनुष्य में जितना साहस होता है, उसी के अनुसार उसके संकल्प भी होते हैं। ~ मुतनब्बी | * जिस मनुष्य में जितना साहस होता है, उसी के अनुसार उसके संकल्प भी होते हैं। ~ मुतनब्बी | ||
* यदि बात तुम्हारे हृदय से उत्पन्न नहीं हुई है तो तुम दूसरों के हृदय को कदापि प्रसन्न नहीं कर सकते। ~ गेटे | * यदि बात तुम्हारे हृदय से उत्पन्न नहीं हुई है तो तुम दूसरों के हृदय को कदापि प्रसन्न नहीं कर सकते। ~ गेटे | ||
Line 224: | Line 224: | ||
* हम जो कुछ कर रहे हैं, उसमें अच्छा या बुरा क्या और कितना है, यह अवश्य सोच लेना चाहिए। बुराइयां गुप्त रह कर जीवित रहती हैं और अच्छी तरह पनपती हैं। ~ वर्जिल | * हम जो कुछ कर रहे हैं, उसमें अच्छा या बुरा क्या और कितना है, यह अवश्य सोच लेना चाहिए। बुराइयां गुप्त रह कर जीवित रहती हैं और अच्छी तरह पनपती हैं। ~ वर्जिल | ||
* अच्छी तरह सोचना बुद्धिमत्ता है। अच्छी योजना बनाना उत्तम है। और अच्छी तरह काम को पूरा करना सबसे अच्छी बुद्धिमत्ता है। ~ फारसी कहावत | * अच्छी तरह सोचना बुद्धिमत्ता है। अच्छी योजना बनाना उत्तम है। और अच्छी तरह काम को पूरा करना सबसे अच्छी बुद्धिमत्ता है। ~ फारसी कहावत | ||
* बुद्बिमान बनने के लिए पहले मूल सुविधाएं | * बुद्बिमान बनने के लिए पहले मूल सुविधाएं ज़रूरी हैं। ख़ाली पेट कोई भी आदमी बुद्बिमान नहीं हो सकता। ~ जॉर्ज इलियट | ||
===सभी आभूषण भार हैं=== | ===सभी आभूषण भार हैं=== | ||
Line 260: | Line 260: | ||
===सफलता विश्वास पर ही निर्भर करती है=== | ===सफलता विश्वास पर ही निर्भर करती है=== | ||
* सुमार्ग पर चलने, कुमार्ग से बचने और | * सुमार्ग पर चलने, कुमार्ग से बचने और जगत् के प्रबंध की उत्तमता के लिए विश्वास एकमात्र सहारा है। ~ बालकृष्ण भट्ट | ||
* जिसे धर्म की शक्ति पर, धर्मस्वरूप भगवान की अनंत करुणा पर पूर्ण विश्वास है, नैराश्य का | * जिसे धर्म की शक्ति पर, धर्मस्वरूप भगवान की अनंत करुणा पर पूर्ण विश्वास है, नैराश्य का दु:ख उसके पास नहीं फटक सकता। ~ रामचंद्र शुक्ल | ||
* साधन की सफलता विश्वास पर ही निर्भर करती है। ~ अशोकानंद | * साधन की सफलता विश्वास पर ही निर्भर करती है। ~ अशोकानंद | ||
* मनुष्य जिस बात के सत्य होने को वरीयता देता है, उसी में विश्वास को भी वरीयता देता है। ~ बेकन | * मनुष्य जिस बात के सत्य होने को वरीयता देता है, उसी में विश्वास को भी वरीयता देता है। ~ बेकन | ||
Line 272: | Line 272: | ||
* जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वही इस संसार में वास्तव में जीता है। ~ विष्णु शर्मा | * जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वही इस संसार में वास्तव में जीता है। ~ विष्णु शर्मा | ||
* सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है तथा धर्म से आयु बढ़ती है। ~ वेदव्यास | * सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है तथा धर्म से आयु बढ़ती है। ~ वेदव्यास | ||
* ठीक वक्त पर किया हुआ थोड़ा सा काम भी बहुत उपकारी होता है और समय बीतने पर किया हुआ | * ठीक वक्त पर किया हुआ थोड़ा सा काम भी बहुत उपकारी होता है और समय बीतने पर किया हुआ महान् उपकार भी व्यर्थ हो जाता है। ~ योग वशिष्ठ | ||
* समय पुन: वापस न आने के लिए उड़ा चला जा रहा है। ~ वर्जिल | * समय पुन: वापस न आने के लिए उड़ा चला जा रहा है। ~ वर्जिल | ||
* जो समय चिंता में गया, समझो कूड़ेदान में गया। जो समय चिंतन में गया, समझो तिजोरी में जमा हो गया। ~ चिंग चाओ | * जो समय चिंता में गया, समझो कूड़ेदान में गया। जो समय चिंतन में गया, समझो तिजोरी में जमा हो गया। ~ चिंग चाओ | ||
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* सहानुभूति एक ऐसी विश्वव्यापी भाषा है, जिसे सभी प्राणी समझते हैं। ~ जेम्स एलेन | * सहानुभूति एक ऐसी विश्वव्यापी भाषा है, जिसे सभी प्राणी समझते हैं। ~ जेम्स एलेन | ||
===सुख के दिनों का स्मरण करने से | ===सुख के दिनों का स्मरण करने से दु:ख होता है=== | ||
* कुल की प्रशंसा करने से क्या? इस लोक में शील ही महानता का कारण है। ~ शूद्रक | * कुल की प्रशंसा करने से क्या? इस लोक में शील ही महानता का कारण है। ~ शूद्रक | ||
* हृदयहीन मनुष्य से उपासना नहीं होती। ~ शेख सादी | * हृदयहीन मनुष्य से उपासना नहीं होती। ~ शेख सादी | ||
* मनुष्य को सुख और | * मनुष्य को सुख और दु:ख सहने के लिए बनाया गया है, किसी एक से मुंह मोड़ लेना कायरता है। ~ भगवतीचरण वर्मा | ||
* संगीत गले से ही निकलता है, ऐसा नहीं है। मन का संगीत है, इंद्रियों का है, हृदय का है। ~ महात्मा गांधी | * संगीत गले से ही निकलता है, ऐसा नहीं है। मन का संगीत है, इंद्रियों का है, हृदय का है। ~ महात्मा गांधी | ||
* अपने सुख के दिनों का स्मरण करने से बड़ा | * अपने सुख के दिनों का स्मरण करने से बड़ा दु:ख कोई नहीं है। ~ दांते | ||
===सुख-दुख सबके साथ लगे हुए हैं=== | ===सुख-दुख सबके साथ लगे हुए हैं=== | ||
* शोक के मूल में प्रिय व्यक्ति या वस्तु होता है। ~ आचार्य नारायण राम | * शोक के मूल में प्रिय व्यक्ति या वस्तु होता है। ~ आचार्य नारायण राम | ||
* किसे हमेश सुख मिला है और किसे हमेशा | * किसे हमेश सुख मिला है और किसे हमेशा दु:ख मिला है। सुख-दुख सबके साथ लगे हुए हैं। ~ कालिदास | ||
* मन से दुखों का चिंतन न करना ही दुखों के निवारण की औषधि है। ~ वेदव्यास | * मन से दुखों का चिंतन न करना ही दुखों के निवारण की औषधि है। ~ वेदव्यास | ||
* सब कुछ दूसरे के वश में होना | * सब कुछ दूसरे के वश में होना दु:ख है और सब कुछ अपने वश में होना सुख है। ~ मनुस्मृति | ||
* जो | * जो दु:ख अभी तक आया नहीं है, वह दूर किया जा सकता है। ~ योगसूत्रम | ||
===सेवा करके विज्ञापन मत करो=== | ===सेवा करके विज्ञापन मत करो=== | ||
Line 323: | Line 323: | ||
* सहानुभूति एक ऐसी विश्वव्यापी भाषा है, जिसे सभी प्राणी समझते हैं। ~ जेम्स एलेन | * सहानुभूति एक ऐसी विश्वव्यापी भाषा है, जिसे सभी प्राणी समझते हैं। ~ जेम्स एलेन | ||
* हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। ~ वाल्मीकि | * हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। ~ वाल्मीकि | ||
* अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, | * अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान् पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता। ~ वेदव्यास | ||
===साधारण प्रतिभा को त्रुटियों की पहचान नहीं होती=== | ===साधारण प्रतिभा को त्रुटियों की पहचान नहीं होती=== | ||
Line 329: | Line 329: | ||
* असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। ~ महादेवी वर्मा | * असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। ~ महादेवी वर्मा | ||
* कठिन समय, विपत्ति और घेर संग्राम, और कुछ नहीं, केवल प्रकृति की काट-छांट हैं। ~ गणेश शंकर विद्यार्थी | * कठिन समय, विपत्ति और घेर संग्राम, और कुछ नहीं, केवल प्रकृति की काट-छांट हैं। ~ गणेश शंकर विद्यार्थी | ||
* प्रकृति हर एक व्यक्ति को सभी उपहार नहीं प्रदान करती, | * प्रकृति हर एक व्यक्ति को सभी उपहार नहीं प्रदान करती, वरन् हर एक को वह कुछ-कुछ देती है और इस प्रकार सभी को मिलाकर वह समस्त उपहार देती है। ~ लाला हरदयाल | ||
===समग्र विश्व एक ही परिवार है=== | ===समग्र विश्व एक ही परिवार है=== | ||
Line 368: | Line 368: | ||
* सुरूप हो या कुरुप, जिसकी जिसमें मनोगति है, वही उसके लिए उर्वशी है, रंभा है तथा वही तिलोत्तमा है। ~ अतिरात्रयाजी | * सुरूप हो या कुरुप, जिसकी जिसमें मनोगति है, वही उसके लिए उर्वशी है, रंभा है तथा वही तिलोत्तमा है। ~ अतिरात्रयाजी | ||
===सुकर्म के बीज से ही | ===सुकर्म के बीज से ही महान् फल=== | ||
* सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही | * सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान् फल देता है। ~ कथासरित्सागर | ||
* प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है। ~ चाणक्य | * प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है। ~ चाणक्य | ||
* द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। ~ विनोबा | * द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। ~ विनोबा | ||
Line 378: | Line 378: | ||
* संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। ~ सत्य साईं बाबा | * संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। ~ सत्य साईं बाबा | ||
* उस मनुष्य पर विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है, पर कार्य में परिश्रमी और तत्पर है, लेकिन लंबे तर्कों वालों से सावधान रहो। ~ जार्ज सांतायना | * उस मनुष्य पर विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है, पर कार्य में परिश्रमी और तत्पर है, लेकिन लंबे तर्कों वालों से सावधान रहो। ~ जार्ज सांतायना | ||
* जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज़ की अपेक्षा करता है, वह सदा ही | * जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज़ की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। ~ वेदव्यास | ||
* सच हज़ार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है। ~ विवेकानंद | * सच हज़ार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है। ~ विवेकानंद | ||
* सच्चे | * सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं- जगत् के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है। ~ विवेकानन्द | ||
* सत्य सदा का है, सत्य का कोई अतीत और वर्तमान नहीं होता। ~ विमल मित्र | * सत्य सदा का है, सत्य का कोई अतीत और वर्तमान नहीं होता। ~ विमल मित्र | ||
* सत्य सदैव निराला होता है, कल्पना से भी अधिक निराला। ~ बायरन | * सत्य सदैव निराला होता है, कल्पना से भी अधिक निराला। ~ बायरन | ||
Line 419: | Line 419: | ||
* हम इस संसार को ठहरने का घर बनाकर बैठे हैं, किंतु यहां से तो नित्य चलने का धोखा बना रहता है। ठहरने का पक्का स्थान तो इसे तभी जाना जा सकता है, यदि यह लोक अचल हो। ~ गुरुनानक | * हम इस संसार को ठहरने का घर बनाकर बैठे हैं, किंतु यहां से तो नित्य चलने का धोखा बना रहता है। ठहरने का पक्का स्थान तो इसे तभी जाना जा सकता है, यदि यह लोक अचल हो। ~ गुरुनानक | ||
* संत कौन हैं? संपूर्ण संसार से जिनकी आसक्ति नष्ट हो गई है, जिनका अज्ञान नष्ट हो चुका है और जो कल्याणस्वरूप परमात्मतत्व में स्थित हैं। ~ शंकराचार्य | * संत कौन हैं? संपूर्ण संसार से जिनकी आसक्ति नष्ट हो गई है, जिनका अज्ञान नष्ट हो चुका है और जो कल्याणस्वरूप परमात्मतत्व में स्थित हैं। ~ शंकराचार्य | ||
* जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज़ की अपेक्षा करता है, वह सदा ही | * जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज़ की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। ~ वेदव्यास | ||
* संयम का अर्थ घुट-घुटकर जीना नहीं है, स्वस्थ पवन की तरह बहना है। ~ रांगेय राघव | * संयम का अर्थ घुट-घुटकर जीना नहीं है, स्वस्थ पवन की तरह बहना है। ~ रांगेय राघव | ||
Line 438: | Line 438: | ||
===सुदिन सबके लिए आते हैं=== | ===सुदिन सबके लिए आते हैं=== | ||
* हर्ष के साथ शोक और भय इस प्रकार लगे हुए हैं जिस प्रकार प्रकाश के साथ छाया। सच्चा सुखी वही है जिसकी दृष्टि में दोनों समान हैं। ~ धम्मपद | * हर्ष के साथ शोक और भय इस प्रकार लगे हुए हैं जिस प्रकार प्रकाश के साथ छाया। सच्चा सुखी वही है जिसकी दृष्टि में दोनों समान हैं। ~ धम्मपद | ||
* लोभ के कारण पाप होते हैं, रस के कारण रोग होते हैं और स्नेह के कारण | * लोभ के कारण पाप होते हैं, रस के कारण रोग होते हैं और स्नेह के कारण दु:ख होते हैं। अत: लोभ, रस और स्नेह का त्याग करके सुखी हो जाओ। ~ नारायण स्वामी | ||
* सुदिन सबके लिए आते हैं, किंतु टिकते उसी के पास हैं जो उनको पहचान कर आदर देता है। ~ अज्ञात | * सुदिन सबके लिए आते हैं, किंतु टिकते उसी के पास हैं जो उनको पहचान कर आदर देता है। ~ अज्ञात | ||
* सुधार आंतरिक होना चाहिए, बाह्य नहीं। तुम सद्गुणों के लिए नियम नहीं बना सकते। ~ गिबन | * सुधार आंतरिक होना चाहिए, बाह्य नहीं। तुम सद्गुणों के लिए नियम नहीं बना सकते। ~ गिबन | ||
Line 462: | Line 462: | ||
===सभ्य जंगली सबसे बुरा जंगली होता है=== | ===सभ्य जंगली सबसे बुरा जंगली होता है=== | ||
* प्रमाद में मनुष्य कठोर सत्य का भी अनुभव नहीं कर सकता। ~ जयशंकर प्रसाद | * प्रमाद में मनुष्य कठोर सत्य का भी अनुभव नहीं कर सकता। ~ जयशंकर प्रसाद | ||
* बुद्धिमान व्यक्ति कभी भी अपने वर्तमान दुखों के लिए रोया नहीं करते, अपितु वर्तमान में | * बुद्धिमान व्यक्ति कभी भी अपने वर्तमान दुखों के लिए रोया नहीं करते, अपितु वर्तमान में दु:ख के कारणों को रोका करते हैं। ~ शेक्सपियर | ||
* नियम में स्थिर रह कर मर जाना अच्छा है, न कि नियम से फिसल कर जीवन धारण करना। ~ अश्वघोष | * नियम में स्थिर रह कर मर जाना अच्छा है, न कि नियम से फिसल कर जीवन धारण करना। ~ अश्वघोष | ||
* सभ्य जंगली सबसे बुरा जंगली होता है। ~ सी. जे. वेबर | * सभ्य जंगली सबसे बुरा जंगली होता है। ~ सी. जे. वेबर | ||
Line 476: | Line 476: | ||
* जब तक तुम्हें अपने सम्मान और दूसरे का अपमान सुख देता है, तब तक तुम अपमानित ही होते रहोगे। ~ हनुमान प्रसाद पोद्दार | * जब तक तुम्हें अपने सम्मान और दूसरे का अपमान सुख देता है, तब तक तुम अपमानित ही होते रहोगे। ~ हनुमान प्रसाद पोद्दार | ||
* तलवार का घाव भर जाता है, पर अपमान का घाव कभी नहीं भरता। ~ एक कहावत | * तलवार का घाव भर जाता है, पर अपमान का घाव कभी नहीं भरता। ~ एक कहावत | ||
* अपमानपूर्वक जीने से अच्छा है प्राण त्याग देना। प्राण त्यागने में कुछ समय का | * अपमानपूर्वक जीने से अच्छा है प्राण त्याग देना। प्राण त्यागने में कुछ समय का दु:ख होता है, लेकिन अपमानपूर्वक जीने में तो प्रतिदिन का दु:ख सहना होता है। ~ चाणक्य | ||
* अपमान का भय क़ानून के भय से किसी तरह कम क्रियाशील नहीं होता। ~ प्रेमचंद | * अपमान का भय क़ानून के भय से किसी तरह कम क्रियाशील नहीं होता। ~ प्रेमचंद | ||
* अपना मान तभी बना रह सकता है जब हम दूसरों के सम्मान की चिंता करें। ~ जैनेंद्र कुमार | * अपना मान तभी बना रह सकता है जब हम दूसरों के सम्मान की चिंता करें। ~ जैनेंद्र कुमार | ||
Line 513: | Line 513: | ||
* इस संसार को बाज़ार समझो। यहां सभी आदमी व्यापारी हैं। जो जैसा व्यापार करता है, वैसा फल पाता है। ~ विद्यापति | * इस संसार को बाज़ार समझो। यहां सभी आदमी व्यापारी हैं। जो जैसा व्यापार करता है, वैसा फल पाता है। ~ विद्यापति | ||
* आप दूसरों को तभी उठा सकते हैं, जब आप स्वयं ऊपर उठ चुके हों। ~ शिवानंद | * आप दूसरों को तभी उठा सकते हैं, जब आप स्वयं ऊपर उठ चुके हों। ~ शिवानंद | ||
* | * दु:ख आ पड़ने पर मुस्कराओ। उसका सामना करके विजयी होने का साधन इसके समान और कोई नहीं है। ~ तिरुवल्लुवर | ||
* स्थान प्रधान है, बल नहीं। स्थान पर स्थित कायर पुरुष भी शूर हो जाता है। ~ अज्ञात | * स्थान प्रधान है, बल नहीं। स्थान पर स्थित कायर पुरुष भी शूर हो जाता है। ~ अज्ञात | ||
Line 546: | Line 546: | ||
* हमारी श्रद्धा अखंड ज्योति जैसी होनी चाहिए जो हमें प्रकाश देने के अलावा आसपास को भी रोशन करे। ~ महात्मा गांधी | * हमारी श्रद्धा अखंड ज्योति जैसी होनी चाहिए जो हमें प्रकाश देने के अलावा आसपास को भी रोशन करे। ~ महात्मा गांधी | ||
* चाहे गुरु पर हो और चाहे ईश्वर पर हो, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ हो जाती हैं। ~ समर्थ रामदास | * चाहे गुरु पर हो और चाहे ईश्वर पर हो, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ हो जाती हैं। ~ समर्थ रामदास | ||
* शील अपरिमित बल है। शील सर्वोत्तम शस्त्र है। शील ही श्रेष्ठ आभूषण और रक्षा | * शील अपरिमित बल है। शील सर्वोत्तम शस्त्र है। शील ही श्रेष्ठ आभूषण और रक्षा करने वाला कवच है। ~ थेर गाथा | ||
===हमारा जीवन हमारे विचारों का ही प्रतिफल है=== | ===हमारा जीवन हमारे विचारों का ही प्रतिफल है=== | ||
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* विप्रों का आभूषण विद्या है, पृथ्वी का आभूषण राजा है, आकाश का आभूषण चंद्रमा है पर शील सबका आभूषण है। ~ बृहस्पतिनीतिसार | * विप्रों का आभूषण विद्या है, पृथ्वी का आभूषण राजा है, आकाश का आभूषण चंद्रमा है पर शील सबका आभूषण है। ~ बृहस्पतिनीतिसार | ||
* वास्तव में शुभ और अशुभ दोनों एक ही हैं और हमारे मन पर अवलंबित हैं। मन जब स्थिर और शांत रहता है, तब शुभाशुभ कुछ भी उसे स्पर्श नहीं कर पाते। ~ विवेकानंद | * वास्तव में शुभ और अशुभ दोनों एक ही हैं और हमारे मन पर अवलंबित हैं। मन जब स्थिर और शांत रहता है, तब शुभाशुभ कुछ भी उसे स्पर्श नहीं कर पाते। ~ विवेकानंद | ||
* शोक | * शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किस लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। ~ वेदव्यास | ||
* श्रद्धा में निराशा का कोई स्थान नहीं। ~ महात्मा गांधी | * श्रद्धा में निराशा का कोई स्थान नहीं। ~ महात्मा गांधी | ||
* जिसमें सत्य नहीं, वह धर्म नहीं और जो कपटपूर्ण हो, वह सत्य नहीं। ~ वेदव्यास | * जिसमें सत्य नहीं, वह धर्म नहीं और जो कपटपूर्ण हो, वह सत्य नहीं। ~ वेदव्यास | ||
Line 709: | Line 709: | ||
===श्रद्धा में विवाद नहीं=== | ===श्रद्धा में विवाद नहीं=== | ||
* श्रद्धा में विवाद का स्थान ही नहीं है। इसलिए कि एक की श्रद्धा दूसरे के काम नहीं आ सकती। ~ महात्मा गांधी | * श्रद्धा में विवाद का स्थान ही नहीं है। इसलिए कि एक की श्रद्धा दूसरे के काम नहीं आ सकती। ~ महात्मा गांधी | ||
* अपढ़ भी संस्कारपूर्ण हो सकता है और | * अपढ़ भी संस्कारपूर्ण हो सकता है और विद्वान् भी संस्कारहीन। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र | ||
* यही साधुता है कि स्वयं समर्थ होने पर क्षमा-भाव रखें। ~ भागवत | * यही साधुता है कि स्वयं समर्थ होने पर क्षमा-भाव रखें। ~ भागवत | ||
* जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार से सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। ~ बाणभट्ट | * जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार से सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। ~ बाणभट्ट | ||
Line 723: | Line 723: | ||
* श्रम करने से ही कार्य सिद्ध होते हैं, केवल मनोरथ करने से नहीं। ~ हितोपदेश | * श्रम करने से ही कार्य सिद्ध होते हैं, केवल मनोरथ करने से नहीं। ~ हितोपदेश | ||
* श्रम आत्मा के लिए रसायन का काम करता है। श्रम ही मनुष्य की आत्मा है। ~ स्वामी कृष्णानंद | * श्रम आत्मा के लिए रसायन का काम करता है। श्रम ही मनुष्य की आत्मा है। ~ स्वामी कृष्णानंद | ||
* श्रम की पूजा करो। उसकी पूजा | * श्रम की पूजा करो। उसकी पूजा करने वाला त्रिकाल में भी कभी निराश नहीं होता। ~ राम प्रताप त्रिपाठी | ||
===श्रम पूंजी से कहीं श्रेष्ठ है=== | ===श्रम पूंजी से कहीं श्रेष्ठ है=== | ||
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* सर्वोपरि श्रेष्ठ दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, विद्या व ज्ञान का दान है। ~ रामतीर्थ | * सर्वोपरि श्रेष्ठ दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, विद्या व ज्ञान का दान है। ~ रामतीर्थ | ||
* विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है। ~ प्रेमचंद | * विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है। ~ प्रेमचंद | ||
* हम | * हम महान् व्यक्तियों के निकट पहुंच जाते हैं जब हम नम्रता में महान् होते हैं। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर | ||
* संसार के समस्त संबंध तथा पदार्थ क्षणिक हैं। केवल अपना कर्म ही शेष रहता है। ~ धनंजय | * संसार के समस्त संबंध तथा पदार्थ क्षणिक हैं। केवल अपना कर्म ही शेष रहता है। ~ धनंजय | ||
Latest revision as of 10:04, 11 February 2021
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अनमोल वचन |
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