लोहार वंश: Difference between revisions

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लोहार वंश का अन्तिम शासक जयसिंह (1128-1155 ई.) था। अपने शासनकाल में उसने यवनों को परास्त किया था। 1339 ई. में कश्मीर तुर्को के कब्जे में आ गया। जयसिंह कल्हण की राजतरंगिणी का अन्तिम शासक था। उसी के समय में राजतरंगिणी पूर्ण हुयी। तुर्क शासकों में सर्वाधिक लोकप्रिय शासक 'जैनुल आबदीन' था जिसे 'कश्मीर का अकबर' कहा जाता है।
लोहार वंश का अन्तिम शासक जयसिंह (1128-1155 ई.) था। अपने शासनकाल में उसने यवनों को परास्त किया था। 1339 ई. में कश्मीर तुर्को के कब्जे में आ गया। जयसिंह कल्हण की राजतरंगिणी का अन्तिम शासक था। उसी के समय में राजतरंगिणी पूर्ण हुयी। तुर्क शासकों में सर्वाधिक लोकप्रिय शासक 'जैनुल आबदीन' था जिसे 'कश्मीर का अकबर' कहा जाता है।


'''कल्हण'''- [[कल्हण]] के पिता चम्पक ब्राह्मण कुल के थे। वे लोहार वंश के शासक हर्ष के प्रशासन में मंत्री के पद पर थे। कल्हण किसी राजकीय पद पर था या नहीं, इस विषय की स्पष्ट जानकारी नहीं है। कल्हण ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'राजतरगिणी' की रचना लोहार वंश के अंतिम शासक जयसिंह के समय में की थी। इस ग्रंथ से कश्मीर के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। कल्हण की राजतरगिणी मे कुल आठ तरंग एवं 8000 श्लोक हैं। पहले के तीन तरंगों में कश्मीर के प्राचीन इतिहास की जानकारी मिलती है। चैथे से लेकर छठवें तरंग में कार्कोट एवं उत्पल वंश के इतिहास का वर्णन है। अन्तिम सातवें एवं आठवें तरंग में लोहार वंश का इतिहास उल्लिखित है। इस पुस्तक में ऐतिहासिक घटनाओं का क्रमबद्ध उल्लेख है। कल्हण ने पक्षपातरहित होकर राजाओं के गुण एवं दोषों का उल्लेख किया है। पुस्तक के विषय के अन्तर्गत राजनीति के अतिरिक्त सदाचार एवं नैतिक शिक्षा पर भी प्रकाश डाला गया है। कल्हण ने अपने ग्रंथ राजतरंगिणी में संस्कृत भाषा का प्रयोग किया है।
'''कल्हण'''- [[कल्हण]] के पिता चम्पक ब्राह्मण कुल के थे। वे लोहार वंश के शासक हर्ष के प्रशासन में मंत्री के पद पर थे। कल्हण किसी राजकीय पद पर था या नहीं, इस विषय की स्पष्ट जानकारी नहीं है। कल्हण ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'राजतरगिणी' की रचना लोहार वंश के अंतिम शासक जयसिंह के समय में की थी। इस ग्रंथ से कश्मीर के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। कल्हण की राजतरगिणी में कुल आठ तरंग एवं 8000 श्लोक हैं। पहले के तीन तरंगों में कश्मीर के प्राचीन इतिहास की जानकारी मिलती है। चैथे से लेकर छठवें तरंग में कार्कोट एवं उत्पल वंश के इतिहास का वर्णन है। अन्तिम सातवें एवं आठवें तरंग में लोहार वंश का इतिहास उल्लिखित है। इस पुस्तक में ऐतिहासिक घटनाओं का क्रमबद्ध उल्लेख है। कल्हण ने पक्षपातरहित होकर राजाओं के गुण एवं दोषों का उल्लेख किया है। पुस्तक के विषय के अन्तर्गत राजनीति के अतिरिक्त सदाचार एवं नैतिक शिक्षा पर भी प्रकाश डाला गया है। कल्हण ने अपने ग्रंथ राजतरंगिणी में संस्कृत भाषा का प्रयोग किया है।






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Latest revision as of 07:50, 27 July 2012

लोहार वंश का संस्थापक संग्रामराज था। संग्रामराज की बाद अनन्त पर इस वंश का शासक हुआ। उसने अपने शासन काल में सामन्तों के विद्रोह को कुचला। उसके प्रशासन में उसकी पत्नी रानी सूर्यमती सहयोग करती थी। अनन्त का पुत्र कलश एक कमज़ोर शासक था।

हर्ष- कलश का पुत्र हर्ष विद्वान, कवि एवं कई भाषाओं एवं विद्याओं का जानकार था। राजतरंगिणी का लेखक कल्हण, हर्ष का आश्रित कवि था। राज्य में आन्तरिक अशान्ति के कारण हुए विद्रोह में लगभग 1101 ई. में हर्ष की हत्या कर दी गयी। हर्ष को कश्मीर का 'नीरो' भी कहा जाता है। उसके शासन काल में कश्मीर में भयानक अकाल पड़ा था। उसके अत्याचारपूर्ण कार्यो से त्रस्त होकर उत्सल एवं सुस्सल नामक भाईयों ने विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह में हर्ष के पुत्र भोज एवं हर्ष दोनों की हत्या कर दी गयी।

लोहार वंश का अन्तिम शासक जयसिंह (1128-1155 ई.) था। अपने शासनकाल में उसने यवनों को परास्त किया था। 1339 ई. में कश्मीर तुर्को के कब्जे में आ गया। जयसिंह कल्हण की राजतरंगिणी का अन्तिम शासक था। उसी के समय में राजतरंगिणी पूर्ण हुयी। तुर्क शासकों में सर्वाधिक लोकप्रिय शासक 'जैनुल आबदीन' था जिसे 'कश्मीर का अकबर' कहा जाता है।

कल्हण- कल्हण के पिता चम्पक ब्राह्मण कुल के थे। वे लोहार वंश के शासक हर्ष के प्रशासन में मंत्री के पद पर थे। कल्हण किसी राजकीय पद पर था या नहीं, इस विषय की स्पष्ट जानकारी नहीं है। कल्हण ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'राजतरगिणी' की रचना लोहार वंश के अंतिम शासक जयसिंह के समय में की थी। इस ग्रंथ से कश्मीर के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। कल्हण की राजतरगिणी में कुल आठ तरंग एवं 8000 श्लोक हैं। पहले के तीन तरंगों में कश्मीर के प्राचीन इतिहास की जानकारी मिलती है। चैथे से लेकर छठवें तरंग में कार्कोट एवं उत्पल वंश के इतिहास का वर्णन है। अन्तिम सातवें एवं आठवें तरंग में लोहार वंश का इतिहास उल्लिखित है। इस पुस्तक में ऐतिहासिक घटनाओं का क्रमबद्ध उल्लेख है। कल्हण ने पक्षपातरहित होकर राजाओं के गुण एवं दोषों का उल्लेख किया है। पुस्तक के विषय के अन्तर्गत राजनीति के अतिरिक्त सदाचार एवं नैतिक शिक्षा पर भी प्रकाश डाला गया है। कल्हण ने अपने ग्रंथ राजतरंगिणी में संस्कृत भाषा का प्रयोग किया है।



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