कलचुरी वंश: Difference between revisions
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*कलचुरी सम्भवतः चन्द्रवंशी क्षत्रिय थे। | |||
*कोकल्ल ने प्रतिहार शासक भोज एवं उसके सामन्तों को युद्ध में हराया था। उसने तुरुष्क, [[वंग]] एवं कोंकण पर भी अधिकार कर लिया था। | |||
*विलहारी लेख में कोकल्ल के विषय में कहा गया है कि "समस्त [[पृथ्वी]] को विजित कर उसने दक्षिण में कृष्णराज एवं उत्तर में [[भोज]] को अपने दो कीर्ति स्तम्भ के रूप में स्थापित किया।" | |||
*कोकल्ल के 18 पुत्रों में से उसका बड़ा पुत्र शंकरगण अगला कलचुरी शासक बना था। | |||
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*कर्णदेव ने 1060 ई. के लगभग [[मालवा]] के [[भोज परमार|राजा भोज]] को पराजित कर दिया, परंतु बाद में [[कीर्तिवर्मा चंदेल]] ने उसे हरा दिया। इससे कलचुरियों की शक्ति क्षीण हो गई और 1181 तक अज्ञात कारणों से इस वंश का पतन हो गया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय इतिहास कोश |लेखक= सच्चिदानन्द भट्टाचार्य|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=83|url=}}</ref> | |||
*कलचुरी शासक 'त्रैकूटक संवत' का प्रयोग करते थे, जो 248-249 ई. में प्रचलित हुआ था। | |||
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कलचुरी वंश की स्थापना कोकल्ल प्रथम ने लगभग 845 ई. में की थी। उसने त्रिपुरी को अपनी राजधानी बनाया था।
- कलचुरी सम्भवतः चन्द्रवंशी क्षत्रिय थे।
- कोकल्ल ने प्रतिहार शासक भोज एवं उसके सामन्तों को युद्ध में हराया था। उसने तुरुष्क, वंग एवं कोंकण पर भी अधिकार कर लिया था।
- विलहारी लेख में कोकल्ल के विषय में कहा गया है कि "समस्त पृथ्वी को विजित कर उसने दक्षिण में कृष्णराज एवं उत्तर में भोज को अपने दो कीर्ति स्तम्भ के रूप में स्थापित किया।"
- कोकल्ल के 18 पुत्रों में से उसका बड़ा पुत्र शंकरगण अगला कलचुरी शासक बना था।
- कर्णदेव ने 1060 ई. के लगभग मालवा के राजा भोज को पराजित कर दिया, परंतु बाद में कीर्तिवर्मा चंदेल ने उसे हरा दिया। इससे कलचुरियों की शक्ति क्षीण हो गई और 1181 तक अज्ञात कारणों से इस वंश का पतन हो गया।[1]
- कलचुरी शासक 'त्रैकूटक संवत' का प्रयोग करते थे, जो 248-249 ई. में प्रचलित हुआ था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 83 |
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