विज्ञापन (सूक्तियाँ): Difference between revisions
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Latest revision as of 11:22, 26 January 2013
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(1) | मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो ख़रीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दख़ल देती है। | हरिशंकर परसाई |
(2) | सेवा करके विज्ञापन मत करो, जिसकी सेवा की है, उस पर बोझ मत बनो। | हनुमान प्रसाद पोद्दार |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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