क़ुरबानी: Difference between revisions
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Latest revision as of 12:28, 25 October 2017
क़ुरबानी से तात्पर्य है कि "इस्लाम धर्म मानने वाले लोगों द्वारा धार्मिक दृष्टि से किया जाने वाला पशुवध"। मुस्लिमों में इसका बड़ा ही महत्त्व है। प्रत्येक मुस्लिम का यह कर्तव्य माना गया है कि वह अपने बच्चे के जन्म पर (कन्या के जन्म पर एक तथा पुत्र के जन्म पर दो) बकरे की बलि दे। इसे 'अक़ीका उत्सव' कहा जाता है।[1]
- क़ुरबानी प्राय: दो अवसरों पर की जाती है- 'ईद-ए-अजहा' (जो जिलहिज्ज मास में दसवें दिन पड़ता है), तथा उसके बाद के तीन दिन (जिसे अय्याम-ए-तशीरक कहते हैं)।
- ईद-ए-अजहा को फ़ारस में 'ईद-ए-क़ुरबान' (बलिदान का भोज), तुर्की में 'क़ुरबान-बैराम' और भारत में 'बकर-ईद' (बकरीद) कहते हैं।
- 'बकरीद' त्यौहार पैगंबर अब्राहम तथा ईश्वर की इच्छा में उनकी निष्ठा और बलि देने की प्रवृत्ति की स्मृति में मनाया जाता है। ऐसा कहा गया है कि ईश्वर ने उनसे उनकी अपनी प्रिय वस्तु भेंट में माँगी थी। अब्राहम अपने पुत्र इस्माइल को सबसे अधिक चाहते थे, इसीलिए वे उसका बलिदान करने को तैयार हो गए। ईश्वर की इच्छा का पालन करने के निमित्त किए गए मानवीय प्रयत्नों में इसे श्रेष्ठ तक माना गया है, इसीलिए इस्लाम के पैगंबर ने इस घटना की स्मृति में तथा मानव हृदय में त्याग की श्रेष्ठतम भावना और निष्ठा उत्पन्न करने के उद्देश्य से इस त्यौहार की स्थापना की।
- प्रत्येक मुस्लिम का यह कर्त्तव्य है कि बच्चे के जन्म पर बकरे की बलि दे। इसे 'अक़ीका' उत्सव कहते हैं और यह बहुधा जन्म के 7वें, 14वें, 21वें, 25वें या 35वें दिन मनाया जाता है।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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