शैतान: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replace - " जरूर " to " ज़रूर ")
Line 19: Line 19:
(इब्लीस) बोला—देखना, कब तक मुझे, जिस दिन यह (मनुष्य) उठाए जाएँगे।  
(इब्लीस) बोला—देखना, कब तक मुझे, जिस दिन यह (मनुष्य) उठाए जाएँगे।  
(परमेश्वर ने) कहा—निस्सन्देह तू प्रतीज्ञा करने वाला है।  
(परमेश्वर ने) कहा—निस्सन्देह तू प्रतीज्ञा करने वाला है।  
“(इब्लीस) बोला—यतः तूने मुझे भरमाया, अतः अवश्य मैं उनके (भटकने के) लिए तेरे सीधे मार्ग पर खड़ा रहूँगा। फिर मैं जरूर उनके सामने, पीछे, दाहिने, बायें से आऊँगा और उन (मनुष्यों) में से बहुतों को तू कृतज्ञ न पायेगा।“<ref>7:2:11:17</ref></poem>
“(इब्लीस) बोला—यतः तूने मुझे भरमाया, अतः अवश्य मैं उनके (भटकने के) लिए तेरे सीधे मार्ग पर खड़ा रहूँगा। फिर मैं ज़रूर उनके सामने, पीछे, दाहिने, बायें से आऊँगा और उन (मनुष्यों) में से बहुतों को तू कृतज्ञ न पायेगा।“<ref>7:2:11:17</ref></poem>
;दुष्ट शैतान का इतना भय है कि कहा गया ह-
;दुष्ट शैतान का इतना भय है कि कहा गया ह-
:“जब तुम क़ुरान को पढ़ो, तो दुष्ट शैतान से (रक्षा पाने के लिए) ईश्वर की शरण माँगों।“<ref>16:13:9</ref>
:“जब तुम क़ुरान को पढ़ो, तो दुष्ट शैतान से (रक्षा पाने के लिए) ईश्वर की शरण माँगों।“<ref>16:13:9</ref>

Revision as of 14:32, 24 November 2012

फ़रिश्तों के अतिरिक्त क़ुरान में एक प्रकार और भी अदृष्ट प्राणी कहे गए हैं, जो सब जगह आने–जाने में फ़रिश्तों के समान ही हैं; किन्तु वह शुभकर्म से हटाने और अशुभ कराने के लिए मनुष्यों को प्रेरणा देते रहते हैं। इन्हें शैतान कहते हैं। उनके लिए पापात्मा शब्द आता है। शैतानों में सबका सरदार वही इब्लीस है। शैतान के विषय में कहा गया है- यह केवल शैतान है, जो तुम्हें अपने दोस्तों से डराता है।[1] शैतान किस प्रकार मनुष्यों को अशुभ कर्म की ओर प्रेरित करता है, उसको इस वाक्य में कहा गया है- “शैतान उनके कर्मों को सँवार देता है तथा कहता है - अब कोई भी मनुष्य तुम्हें जीत नहीं सकता, मैं तुम्हारा रक्षक हूँ, किन्तु जब दोनों पक्ष आमने–सामने आते हैं, तो वह मुँह मोड़ लेता है और कहता है - मैं तुमसे अलग हूँ, मैं निस्सन्देह देखता हूँ, जिसे तुम नहीं देखते, और परमेश्वर पाप का कठोर नाशक है।“[2]

इसलिए कहा है - “कह, मेरे शरण के प्रलोभनों में मैं तेरी शरण (आया) हूँ।“[3]

काम कर चुकने पर शैतान क्या चाहता है, यह इस वाक्य में है - “काम समाप्त हो जाने पर शैतान ने कहा - निस्सन्देह तुमसे ईश्वर ने ठीक प्रतिज्ञा की थी और मैंने तुमसे प्रतिज्ञा की, फिर तोड़ दी मेरा तुम पर अधिकार नहीं, इसके सिवाय कि मैंने पुकारा और तुमने (मेरी बात) स्वीकार की। सो मुझे दोष मत दो, अपने आपको दोष दो। मैं न तुम्हारा सहायक हूँ और न तुम मेरे सहायक।“[4]

इब्लीस का स्वर्ग से निकाला जाना

शैतान भूमि ही तक नहीं, आकाश तक धावा मारते हैं। कहा है-

“निस्सन्देह हमने आकाश में बुर्ज बनाए और देखने वालों के लिए उसे सँवारा और सब दृष्ट शैतानों से उसकी रक्षा की, उसके अतिरिक्त कि जिसने सुनने के लिए चोरी की, फिर प्रत्यक्ष तारा ने उसका पीछा किया।“[5]

यद्यपि शैतान को आकाश की ओर ले जाना मना है, किन्तु चोरी से कभी–कभी कोई छिपकर आकाश की बात जानने के लिए चला जाता है, यह आकाश के टूटते तारे या उल्का हैं। शैतान के अनुयायी मनुष्यों का लक्षण इस प्रकार कहा ह-

“मनुष्यों में बिना जाने परमेश्वर के विषय में विवाद करते हैं, (वह) सब बागी शैतान का अनुगमन करत हैं।“[6]

शैतानों के सरदार इब्लीस का स्वर्ग से निकाला जाना क़ुरान में इस प्रकार से वर्णित ह-

“जब हमने तुम्हें पैदा किया, फिर तुम्हारी सूरत गढ़ी, फिर फ़रिश्तों से कहा—आदम को दण्डवत करो, तो उन्होंन दण्डवत की, किन्तु इब्लीस प्रणाम करने वालों में न था।“

दुष्ट शैतान

“(परमेश्वर ने) कहा—जब मैंने तुझे आज्ञा दी, तो किसने तुझे मना किया?”
“इब्लीस बोला—मैं उससे अच्छा हूँ, मेरी उत्पत्ति अग्नि से, और उसकी मिट्टी से।“
(परमेश्वर ने) कहा—निकल जा इस (स्वर्ग) से, क्योंकि यह ठीक नहीं कि तू इसमें रह कर गर्व करे, सो निकल, तू क्षुद्र है।
(इब्लीस) बोला—देखना, कब तक मुझे, जिस दिन यह (मनुष्य) उठाए जाएँगे।
(परमेश्वर ने) कहा—निस्सन्देह तू प्रतीज्ञा करने वाला है।
“(इब्लीस) बोला—यतः तूने मुझे भरमाया, अतः अवश्य मैं उनके (भटकने के) लिए तेरे सीधे मार्ग पर खड़ा रहूँगा। फिर मैं ज़रूर उनके सामने, पीछे, दाहिने, बायें से आऊँगा और उन (मनुष्यों) में से बहुतों को तू कृतज्ञ न पायेगा।“[7]

दुष्ट शैतान का इतना भय है कि कहा गया ह-
“जब तुम क़ुरान को पढ़ो, तो दुष्ट शैतान से (रक्षा पाने के लिए) ईश्वर की शरण माँगों।“[8]

ऊपर फ़रिश्तों और शैतान के वर्णन पढ़ने पर भी जिज्ञासा हो सकती है—जिस प्रकार परमेश्वर के अनेक लक्षण वर्णित किए गए हैं, वैसे ही जीव का लक्षण क्या बतलाया गया है, किन्तु यही सवाल उस समय भी लोग महात्मा मुहम्मद से करते थे, जिसका उत्तर क़ुरान में निम्न शब्दों को छोड़कर और कुछ नहीं दिया गया—

“क़लर्रूह मिनम्रि रब्बी”

(कह, कि जीव मेरे परमेश्वर की आज्ञा से है)


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. क़ुरान 3:18:4
  2. क़ुरान 8:6:4
  3. क़ुरान 26:6:5
  4. क़ुरान 15:2:1-3
  5. 15:2:1-3
  6. 22:1:2
  7. 7:2:11:17
  8. 16:13:9

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख