फ़िरोज़ाबाद: Difference between revisions
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फ़िरोज़ाबाद मुग़ल काल से बसा भारत के उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक ज़िला है। यह शहर चूड़ियों के निर्माण के लिये मशहूर है! शहर फ़िरोज़ाबाद आगरा से 40 किलोमीटर और राजधानी दिल्ली से 250 किलोमीटर की दूरी पर पूरब की तरफ स्थित है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ यहाँ से लगभग 250 किलोमीटर पूरब की तरफ है। फिरोज़ाबाद ज़िले के अन्तर्गत दो कस्बे टूंडला और शिकोहाबाद आते हैं। टूंडला पश्चिम तथा शिकोहाबाद शहर के पूरब में स्थित हैं।
इतिहास
फ़िरोज़ाबाद की स्थापना सुल्तान फ़िरोज़शाह तुग़लक ने (1351-1388 ई.) ने अपनी राजधानी दिल्ली से दस मील की दूरी पर बसाया था। यही नाम सुल्तान ने 1353-1354 ई. में बंगाल की चढ़ाई के दौरान वहाँ के 'पहुँचा नगर' को भी दिया था। सुल्तान फ़िरोज़ कट्टर मुसलमान था और उसने देश का प्रशासन इस्लाम के सिद्धान्तों के अनुरूप चलाने का प्रयास किया। फलस्वरूप हिन्दुओं को, जो बहुमत में थे, भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनके धार्मिक उत्सवों, सार्वजनिक सभाओं और पूजा पाठ पर प्रतिबंध लगाया गया।
इस धार्मिक कट्टरता के बावजूद फ़िरोज़ उदार शासक था। उसने अनेक कष्टदायी और अनुचित करों को समाप्त किया, यद्यपि ब्राह्मणों पर भी जजिया कर थोपा गया, जो कि अभी तक इससे मुक्त थे। उसने सिंचाई के कार्य को प्रोत्साहन दिया, जौनपुर सहित कई नगरों की स्थापना की, अनेक बाग़-बग़ीचों को लगाया और वहाँ पर तमाम मस्ज़िदों का निर्माण कराया। उसने अंग-भंग जैसे कठोर दंडों को समाप्त किया और एक धर्मार्थ चिकित्सालय की स्थापना की। जहाँ रोगियों को दवाएँ और भोजन मुफ़्त दिया जाता था। उसका शासन कठोर नहीं था। चीज़ों की क़ीमत कम थी। लोग शान्ति से रहते थे।
उद्योग
यहाँ पर भारत में सबसे अधिक काँच की चूड़ियाँ, सजावट की काँच की वस्तुएँ, वैज्ञानिक उपकरण, बल्ब आदि बनाये जाते हैं। फ़िरोज़ाबाद में चूड़ियों का व्यवसाय मुख्यता: होता है। यहाँ पर आप रंगबिरंगी चूड़ियों की दुकानें चारों ओर देख सकते हैं। घरों के अन्दर महिलाएँ भी चूडियों पर पॉलिश लगाकर रोजगार अर्जित कर लेती हैं। भारत में काँच का सर्वाधिक फ़िरोज़ाबाद नामक छोटे से शहर में बनाया जाता है। इस शहर के अधिकांश लोग काँच के किसी न किसी सामान के निर्माण से जुड़े उद्यम में लगे हैं। सबसे अधिक काँच की चूड़ियों का निर्माण इसी शहर में होता है। रंगीन काँच को गलाने के बाद उसे खींच कर तार के समान बनाया जाता है और एक बेलनाकार ढाँचे पर कुंडली के आकार में लपेटा जाता है। स्प्रिंग के समान दिखने वाली इस संरचना को काट कर खुले सिरों वाली चूड़ियाँ तैयार कर ली जातीं हैं। अब इन खुले सिरों वाली चूड़ियों के विधिपूर्वक न सिर्फ़ ये सिरे जोड़े जाते हैं बल्कि चूड़ियाँ एकरूप भी की जाती हैं ताकि जुड़े सिरों पर काँच का कोई टुकड़ा निकला न रह जाये। यह एक धीमी प्रक्रिया है जिसमें काँच को गर्म व ठण्डा करना पड़ता है।
परिवहन
यह आगरा और इटावा के बीच प्रमुख रेलवे जंक्शन है।
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