मास्टर निसार: Difference between revisions
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Latest revision as of 11:37, 4 October 2017
मास्टर निसार
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पूरा नाम | मास्टर निसार |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | हिन्दी सिनेमा |
मुख्य फ़िल्में | 'बहार-ए-सुलेमानी', 'शाह-ए-बेरहम', 'दुख्तर-ए-हिंद', 'अफज़ल', 'मायाजाल', 'रंगीला राजपूत', 'इंद्र सभा', 'बिलवा मंगल', 'गुलरु ज़रीना' आदि। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | सन 1931 में जहाँआरा कज्जन के साथ मास्टर निसार की जोड़ी बनी और 'शीरीं फ़रहाद' और 'लैला मजनूं' फ़िल्में हिट हो गईं, तब जनता उनके प्रति पागल-सी हो गई थी। |
मास्टर निसार (अंग्रेज़ी: Master Nissar) तीस के दशक के मशहूर अभिनेता थे। वे कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के मदन थिएटर की खोज थे। प्रवाहवार उर्दू बोलना और गाने के लिए बहुत बढ़िया गला, ये मास्टर निसार की विशेषताएँ थीं। उन दिनों किसी की भी किस्मत को परवाज़ चढ़ने के लिए इतनी ही ख़ासियतें बहुत हुआ करती थी। सन 1931 में जहाँआरा कज्जन के साथ मास्टर निसार की जोड़ी 'शीरीं फ़रहाद' और 'लैला मजनूं' में हिट हो गयी थी। जनता में उनके प्रति दीवानगी पागलपन की हद तक थी। 'बहार-ए-सुलेमानी', 'मिस्र का ख़ज़ाना', 'मॉडर्न गर्ल', 'शाह-ए-बेरहम', 'दुख्तर-ए-हिंद', 'जोहर-ए-शमशीर' आदि उनकी सफलतम फ़िल्मों में से थीं।
परिचय
मास्टर निसार अपने समय के मशहूर नायक थे। उनकी उर्दू भाषा पर पकड़ बहुत अच्छी थी। इसके साथ ही वह गाते भी अच्छा थे। जब सन 1931 में जहाँआरा कज्जन के साथ उनकी जोड़ी बनी और 'शीरीं फ़रहाद' और 'लैला मजनूं' फ़िल्में हिट हो गईं, तब जनता उनके प्रति पागल-सी हो गई थी। बाद में टॉकी इरा आया। मास्टर निसार का जलवा तब भी बरक़रार रहा।
'बहार-ए-सुलेमानी', 'मिस्र का खजाना', 'मॉडर्न गर्ल', 'शाह-ए-बेरहम', 'दुख्तर-ए-हिंद', 'जोहर-ए-शमशीर', 'मास्टर फ़कीर', 'सैर-ए-परिस्तान', 'अफज़ल', 'मायाजाल', 'रंगीला राजपूत', 'इंद्र सभा', 'बिलवा मंगल', 'छत्र बकावली', 'गुलरु ज़रीना' आदि अनेक हिट फिल्मों के जनप्रिय हीरो थे मास्टर निसार। लेकिन ऊंचाई पर पहुंच कर खड़े रहना आसान नहीं रहता। किस्मत के रंग भी निराले होते हैं। सुनहरे दिन हवा हुए। कुंदन लाल सहगल नाम का एक सिंगिंग स्टार धूमकेतु का उदय हुआ। उसकी चमक के सामने मास्टर निसार फीके पड़ गए। वह चरित्र भूमिका करने लगे और फिर छोटे-छोटे रोल तक उन्होंने किये। बाद में वह अर्श से फर्श पर आ गए।
बाद के दिन
मास्टर निसार के अंतिम दिन बड़ी ही तंगहाली में व्यतीत हुए। पचास और साठ के दशक में 'शकुंतला', 'कोहिनूर', 'धूल का फूल', 'साधना', 'लीडर' में दो-तीन मिनट की छोटी-छोटी भूमिकायें मास्टर निसार ने कीं। जब तक पुराने लोग पहचानें शॉट बदल गया। 'बरसात की रात' की मशहूर कव्वाली- 'न तो कारवां की तलाश है.…' में वह दिखे। 'बूट-पॉलिश' के सेट पर राजकपूर को बताया गया कि मशहूर ज़माने के हीरो मास्टर निसार काम की तलाश में द्वार पर हैं। दरियादिल राजकपूर ने उनके लिए एक छोटा-सा रोल तुरंत ही तैयार कर दिया। उनके आखिरी दिन बड़ी कंगाली में कटे। उन्हें हाजी अली दरगाह पर भीख मांगते हुए भी देखा गया। उस वक़्त वह बहुत बीमार भी थे। जाने कब गुमनामी में ही दिवंगत हो गए। न कोई शवयात्रा, न किसी की आंख से आंसू टपके और न कोई शोक सभा और न ही कोई खबर छपी।
मुख्य फ़िल्में
वर्ष | फ़िल्म |
---|---|
1935 | बहार-ए-सुलेमानी |
1935 | मिस्र का ख़ज़ाना |
1935 | मॉडर्न गर्ल |
1935 | शाह-ए-बेरहम |
1934 | दुख्तर-ए-हिंद |
1934 | जोहर-ए-शमशीर |
1934 | मास्टर फ़कीर |
1934 | सैर-ए-परिस्तान |
1933 | अफ़ज़ल |
1933 | माया जाल |
1933 | रंगीला राजपूत |
1932 | इंद्रसभा |
1932 | बिलवा मंगल |
1932 | छत्र बकावली |
1932 | गुलरु ज़रीना |
1931 | शिरीं फ़रहाद |
1931 | लैला मजनूं |
1931 | शकुंतला |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- मास्टर निसार - अर्श से फर्श तक
- Master Nissar Movies List
- मशहूर गायक जिन्हें अंतिम दिनों में भीख तक मांगनी पड़ी
- थिएटर सीन: इक वो भी जमाना था
संबंधित लेख
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