अनमोल वचन 9: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - "जरूर" to "ज़रूर") |
आदित्य चौधरी (talk | contribs) m (Text replacement - "डा." to "डॉ.") |
||
Line 156: | Line 156: | ||
* प्रशंसा सब को अच्छी लगती है,शायद ही कोई होगा जिसे प्रशंसा सुनना अच्छा नहीं लगता है, प्रशंसा आवश्यक है, अच्छे कार्य की प्रशंसा नहीं करना अनुचित है पर ये क़तई आवश्यक नहीं है, कि अच्छा करने पर ही प्रशंसा की जाए, प्रोत्साहन के लिए साधारण कार्य की प्रशंसा भी कई बार बेहतर करने को प्रेरित करती है,पर देखा गया है लोग झूंठी प्रशंसा भी करते हैं, खुश करने के लिए या कडवे सत्य से बचने के लिए या दिखावे के लिए। पर इसके परिणाम घातक हो सकते हैं। व्यक्ति सत्य से दूर जा सकता है, एवं वह अति आत्मविश्वाश और भ्रम का शिकार हो सकता है, जो घातक सिद्ध हो सकता है। वास्तविक स्पर्धा में वह पीछे रह सकता है या असफल हो सकता है इसलिए प्रशंसा कब और कितनी करी जाए, यह जानना भी आवश्यक है। साथ ही झूंठी प्रशंसा को पहचानना भी आवश्यक है। इसलिए सहज भाव से संयमित प्रशंसा करें, और सुनें, प्रशंसा से अती आत्मविश्वाश से ग्रसित होने से बचें। प्रशंसा करने में कंजूसी भी नहीं बरतें। - | * प्रशंसा सब को अच्छी लगती है,शायद ही कोई होगा जिसे प्रशंसा सुनना अच्छा नहीं लगता है, प्रशंसा आवश्यक है, अच्छे कार्य की प्रशंसा नहीं करना अनुचित है पर ये क़तई आवश्यक नहीं है, कि अच्छा करने पर ही प्रशंसा की जाए, प्रोत्साहन के लिए साधारण कार्य की प्रशंसा भी कई बार बेहतर करने को प्रेरित करती है,पर देखा गया है लोग झूंठी प्रशंसा भी करते हैं, खुश करने के लिए या कडवे सत्य से बचने के लिए या दिखावे के लिए। पर इसके परिणाम घातक हो सकते हैं। व्यक्ति सत्य से दूर जा सकता है, एवं वह अति आत्मविश्वाश और भ्रम का शिकार हो सकता है, जो घातक सिद्ध हो सकता है। वास्तविक स्पर्धा में वह पीछे रह सकता है या असफल हो सकता है इसलिए प्रशंसा कब और कितनी करी जाए, यह जानना भी आवश्यक है। साथ ही झूंठी प्रशंसा को पहचानना भी आवश्यक है। इसलिए सहज भाव से संयमित प्रशंसा करें, और सुनें, प्रशंसा से अती आत्मविश्वाश से ग्रसित होने से बचें। प्रशंसा करने में कंजूसी भी नहीं बरतें। - डॉ.राजेंद्र तेला,"निरंतर" | ||
* विपत्ती के समय में इंसान विवेक खो देता है, स्वभाव में क्रोध और चिडचिडापन आ जाता है। बेसब्री में सही निर्णय लेना व उचित व्यवहार असंभव हो जाता है। लोग व्यवहार से खिन्न होते हैं, नहीं चाहते हुए भी समस्याएं सुलझने की बजाए उलझ जाती हैं जिस तरह मिट्टी युक्त गन्दला पानी अगर बर्तन में कुछ देर रखा जाए तो मिट्टी और गंद पैंदे में नीचे बैठ जाती है, उसी तरह विपत्ती के समय शांत रहने और सब्र रखने में ही भलाई है। धीरे धीरे समस्याएं सुलझने लगेंगी एक शांत मष्तिष्क ही सही फैसले आर उचित व्यवहार कर सकता है। - | * विपत्ती के समय में इंसान विवेक खो देता है, स्वभाव में क्रोध और चिडचिडापन आ जाता है। बेसब्री में सही निर्णय लेना व उचित व्यवहार असंभव हो जाता है। लोग व्यवहार से खिन्न होते हैं, नहीं चाहते हुए भी समस्याएं सुलझने की बजाए उलझ जाती हैं जिस तरह मिट्टी युक्त गन्दला पानी अगर बर्तन में कुछ देर रखा जाए तो मिट्टी और गंद पैंदे में नीचे बैठ जाती है, उसी तरह विपत्ती के समय शांत रहने और सब्र रखने में ही भलाई है। धीरे धीरे समस्याएं सुलझने लगेंगी एक शांत मष्तिष्क ही सही फैसले आर उचित व्यवहार कर सकता है। - डॉ.राजेंद्र तेला," निरंतर '' | ||
* मनुष्य निरंतर दूसरों का अनुसरण करता है, उनके जीवन से प्रभावित हो कर या उनके कार्य कलापों से प्रभावित होता है अधिकतर अन्धानुकरण ही होता है। क्यों किसी ने कुछ कहा? किन परिस्थितियों में कुछ करा या कहा कभी नहीं सोचता। परिस्थितियाँ और कारण सदा इकसार नहीं होते, महापुरुषों का अनुसरण अच्छी बात है फिर भी अपने विवेक और अनुभव का इस्तेमाल भी आवश्यक है। यह भी निश्चित है जो भी ऐसा करेगा उसे विरोध का सामना भी करना पडेगा। उसे इसके लिए तैयार रहना पडेगा। अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो केवल मात्र एक या दो ही महापुरुष होते। नया कोई कभी पैदा नहीं होता। इसलिए मेरा मानना है जितना ज़िन्दगी को क़रीब से देखोगे। अपने को दूसरों की स्थिती में रखोगे तो स्थितियों को बेहतर समझ सकोगे, जीवन की जटिलताएं स्वत: सुलझने लगेंगी। - राजेंद्र तेला | * मनुष्य निरंतर दूसरों का अनुसरण करता है, उनके जीवन से प्रभावित हो कर या उनके कार्य कलापों से प्रभावित होता है अधिकतर अन्धानुकरण ही होता है। क्यों किसी ने कुछ कहा? किन परिस्थितियों में कुछ करा या कहा कभी नहीं सोचता। परिस्थितियाँ और कारण सदा इकसार नहीं होते, महापुरुषों का अनुसरण अच्छी बात है फिर भी अपने विवेक और अनुभव का इस्तेमाल भी आवश्यक है। यह भी निश्चित है जो भी ऐसा करेगा उसे विरोध का सामना भी करना पडेगा। उसे इसके लिए तैयार रहना पडेगा। अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो केवल मात्र एक या दो ही महापुरुष होते। नया कोई कभी पैदा नहीं होता। इसलिए मेरा मानना है जितना ज़िन्दगी को क़रीब से देखोगे। अपने को दूसरों की स्थिती में रखोगे तो स्थितियों को बेहतर समझ सकोगे, जीवन की जटिलताएं स्वत: सुलझने लगेंगी। - राजेंद्र तेला | ||
* समस्या तभी पैदा होती है जब दिनचर्या का महत्त्व ज़्यादा हो जाता है सोच नेपथ्य में रह जाता है, धीरे धीरे खो जाता है, केवल भ्रम रह जाता है भौतिक सुख, अपने से ज़्यादा" लोग क्या कहेंगे "की चिंता प्रमुख हो जाते हैं आदमी स्वयं, स्वयं नहीं रहता कठपुतली की तरह नाचता रहता, जो करना चाहता, कभी नहीं कर पाता, जो नहीं करना चाहता, उसमें उलझा रहता, जितना दूर भागता उतना ही फंसता जाता। - राजेंद्र तेला | * समस्या तभी पैदा होती है जब दिनचर्या का महत्त्व ज़्यादा हो जाता है सोच नेपथ्य में रह जाता है, धीरे धीरे खो जाता है, केवल भ्रम रह जाता है भौतिक सुख, अपने से ज़्यादा" लोग क्या कहेंगे "की चिंता प्रमुख हो जाते हैं आदमी स्वयं, स्वयं नहीं रहता कठपुतली की तरह नाचता रहता, जो करना चाहता, कभी नहीं कर पाता, जो नहीं करना चाहता, उसमें उलझा रहता, जितना दूर भागता उतना ही फंसता जाता। - राजेंद्र तेला |
Latest revision as of 09:55, 4 February 2021
चित्र:Icon-edit.gif | इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
अनमोल वचन |
---|
|
|
|
|
|