राजराज प्रथम: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "{{लेख प्रगति" to "{{प्रचार}} {{लेख प्रगति")
Line 13: Line 13:




{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति
{{लेख प्रगति
|आधार=आधार1
|आधार=आधार1

Revision as of 12:20, 10 January 2011

  • 985 ई. में इस चोल साम्राज्य का स्वामी राजराज प्रथम बना, जो बहुत ही प्रतापी और महत्वाकांक्षी था।
  • इस समय तक दक्षिणापथ में राष्ट्रकूटों की शक्ति क्षीण हो चुकी थी, और उसका अन्त कर चालुक्य वंश ने कल्याणी को राजधानी बनाकर अपनी शक्ति स्थापित कर ली थी।
  • दक्षिणापथ में राज परिवर्तन के कारण जो स्थिति उत्पन्न हो गई थी, राजराज प्रथम ने उससे पूरा लाभ उठाया, और अपने राज्य का विस्तार शुरू किया।
  • सबसे पूर्व उसने चोलमण्डल के दक्षिण में स्थित पाड्य और केरल राज्यों पर आक्रमण किए, और उन्हें जीतकर कन्याकुमारी तक अपने राज्य का विस्तार किया।
  • समुद्र पार कर उसने सिंहलद्वीप में भी विजय यात्रा की, और उसके उत्तरी प्रदेश को भी अपने राज्य में शामिल कर लिया।
  • पश्चिम दिशा में उसने द्वारसमुद्र के होयसाल राज्य की विजय की, और उसके राजा को अपना सामन्त बनाया। पाड्य, केरल और द्वारसमुद्र को जीत लेने के बाद राजराज प्रथम ने उत्तर दिशा में आक्रमण किया, जहाँ अब चालुक्य राजा सत्याश्रय (997-1008) का शासन था।
  • सत्याश्रय को परास्त कर कुछ समय के लिए राजराज ने कल्याणी पर भी क़ब्ज़ा कर लिया। यद्यपि दक्षिणापथ को स्थायी रूप से अपने आधिपत्य में रखने का उसने कोई प्रयत्न नहीं किया। *दक्षिणापथ पर चोलराज का यह आक्रमण एक विजय यात्रा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था। इसीलिए राजराज के वापस लौट आने पर सत्याश्रय ने दक्षिणापथ पर फिर से अपना अधिकार कर लिया। कल्याणी की विजय के बाद राजराज प्रथम ने वेंगि के पूर्वी चालुक्य वंश पर चढ़ाई की, और उसके राजा शक्तिवर्मा के साथ उसके अनेक युद्ध हुए।
  • शक्तिवर्मा के उत्तराधिकारी विमलादित्य (1011-1018) ने राजराज के आक्रमणों से परेशान होकर उसकी अधीनता स्वीकार कर ली, और चोलराज ने भी अपनी पुत्री का विवाह विमलादित्य के साथ कर उसे अपना सम्बन्धी और परम सहायक बना लिया।
  • नौसेना की दृष्टि से भी राजराज प्रथम बहुत शक्तिशाली था। समुद्र पार कर जिस प्रकार उसने सिंहलद्वीप पर आक्रमण किया था, वैसे ही उसने लक्कदीव और मालदीव नामक द्वीपों की भी विजय की। इसमें सन्देह नहीं कि राजराज प्रथम एक अत्यन्त प्रतापी राजा था, और उसके नेतृत्व ने चोल राज्य ने बहुत ही उन्नति की।
  • तंजोर में विद्यमान राजराजेश्वर शिव मन्दिर उसके वैभव का उत्कृष्ट स्मारक है, और उसकी दीवार पर उत्कीर्ण प्रशस्ति ही उसके इतिहास का परिचय प्राप्त करने का साथन है।
  • 985 से 1012 ई. तक राजराज प्रथम ने राज्य किया। इस काल में भी चोल राज्य की बहुत उन्नति हुई।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख