कुलोत्तुंग प्रथम: Difference between revisions

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*इस घटना की जानकारी [[बौद्ध]] ‘महावंश’ से मिलती है।
*इस घटना की जानकारी [[बौद्ध]] ‘महावंश’ से मिलती है।
*कुछ युद्धों को छोड़कर कुलोत्तुंग प्रथम का शासन काल शान्ति एवं सुव्यवस्था का काल था।
*कुछ युद्धों को छोड़कर कुलोत्तुंग प्रथम का शासन काल शान्ति एवं सुव्यवस्था का काल था।
*उसने विस्तारवादी नीति की निरर्थकता का अनुभव करते हुए अपनी महत्वाकांक्षा की नीति को तिलांजलि दे दी थी।
*उसने विस्तारवादी नीति की निरर्थकता का अनुभव करते हुए अपनी महत्त्वाकांक्षा की नीति को तिलांजलि दे दी थी।
*[[राजराज प्रथम]] की तरह कुलोत्तुंग ने भी भूराजस्व निर्धारण के लिए भूमि का पुनः सर्वेक्षण कराया।
*[[राजराज प्रथम]] की तरह कुलोत्तुंग ने भी भूराजस्व निर्धारण के लिए भूमि का पुनः सर्वेक्षण कराया।
*उसने व्यापार की प्रगति में बाधक चुंगियों तथा तटकरों को समाप्त कर दिया, जिसके कारण उसे शुंगम् (करों को हटाने वाला) की उपाधि मिली।
*उसने व्यापार की प्रगति में बाधक चुंगियों तथा तटकरों को समाप्त कर दिया, जिसके कारण उसे शुंगम् (करों को हटाने वाला) की उपाधि मिली।

Revision as of 10:21, 13 March 2011

  • अधिराजेन्द्र के कोई भी सन्तान नहीं थी। इस दशा में चोल राज्य के राजसिंहासन पर वेंगि का चालुक्य राजा कुलोत्तुंग प्रथम (1070-1120 ई.) आरूढ़ हुआ, जो चोल राजकुमारी का पुत्र था।
  • कुलोत्तुंग ने चोल साम्राज्य में व्यवस्था स्थापित करने के कार्य में अदभुत पराक्रम प्रदर्शित किया।
  • इस समय अनेक राजवंश प्रबल होने शुरू हो गए थे, और उनके साथ निरन्तर संघर्ष करते रहने के कारण चोल राजा की शक्ति क्षीण होनी प्रारम्भ हो गई थी, पर कुलोत्तुंग के शासन काल में राज्य की शक्ति काफ़ी हद तक क़ायम रही।
  • उसने दक्षिण चालुक्य नरेश विक्रमादित्य षष्ठ को पराजित किया।
  • इसका उल्लेख विल्हण के 'विक्रमांकदेवचरित' में मिलता है।
  • 1075-76 ई. में कुलोत्तंग ने कलचुरी शासक यशःकर्णदेव को तथा 1100 ई. में कलिंग नरेश अनन्तवर्मा चोडगंग को पराजित किया था।
  • कुलोत्तुंग के शासन काल में सिंहली (श्रीलंका) नरेश विजयबाहु ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर लिया था।
  • कुलोत्तुंग ने उसकी स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप न कर उससे मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाकर सिंहली राजकुमार वीरप्पेरुमाल के साथ अपनी पुत्री का विवाह करा लिया।
  • इस घटना की जानकारी बौद्ध ‘महावंश’ से मिलती है।
  • कुछ युद्धों को छोड़कर कुलोत्तुंग प्रथम का शासन काल शान्ति एवं सुव्यवस्था का काल था।
  • उसने विस्तारवादी नीति की निरर्थकता का अनुभव करते हुए अपनी महत्त्वाकांक्षा की नीति को तिलांजलि दे दी थी।
  • राजराज प्रथम की तरह कुलोत्तुंग ने भी भूराजस्व निर्धारण के लिए भूमि का पुनः सर्वेक्षण कराया।
  • उसने व्यापार की प्रगति में बाधक चुंगियों तथा तटकरों को समाप्त कर दिया, जिसके कारण उसे शुंगम् (करों को हटाने वाला) की उपाधि मिली।
  • कुलोतुंग प्रथम द्वारा प्रसारित चोलों के स्वर्ण सिक्कों पर उसकी कुछ उपाधियाँ जैसे- कटैकोण्डचोल तथा मलैनडुकोण्डचोलन का उल्लेख प्राप्त होता है।
  • कुलोत्तंग प्रथम के शासन के अन्तिम दिनों में वेंगी व मैसूर स्वतन्त्र हो गये थे।
  • इस समय कुलोत्तुंग का शासन केवल तमिल प्रदेश एवं कुल तेलुगू क्षेत्रों तक सीमित रह गया था।
  • कुलोत्तुंग ने 72 व्यापारियों के एक दूतमण्डल को 1077 ई. में चीन भेजा था।
  • चोल लेखों में कुलोत्तुंग को ‘शुगम्तविर्त चोल' (करों को हटाने वाला) कहा गया है।


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