अजयदेव चौहान: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 3: | Line 3: | ||
*यह सम्भव है कि [[पुष्कर झील|पुष्कर]] अथवा अनासागर झील के निकट होने के कारण ही अजयदेव ने अपनी राजधानी का नाम 'अजयमेर' ('मेर' या 'मीर'-झील, जैसे कश्यपमीर=काश्मीर) रखा हो। | *यह सम्भव है कि [[पुष्कर झील|पुष्कर]] अथवा अनासागर झील के निकट होने के कारण ही अजयदेव ने अपनी राजधानी का नाम 'अजयमेर' ('मेर' या 'मीर'-झील, जैसे कश्यपमीर=काश्मीर) रखा हो। | ||
*अजयदेव चौहान ने [[तारागढ़ का क़िला अजमेर|तारागढ़]] की पहाड़ी पर एक क़िला 'गढ़-बिटली' नाम से बनवाया था, जिसे [[कर्नल टॉड]] ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ में "राजपूताने की कुँजी" कहा है। | *अजयदेव चौहान ने [[तारागढ़ का क़िला अजमेर|तारागढ़]] की पहाड़ी पर एक क़िला 'गढ़-बिटली' नाम से बनवाया था, जिसे [[कर्नल टॉड]] ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ में "राजपूताने की कुँजी" कहा है। | ||
*'इंटेक अजमेर चैप्टर' के वरिष्ठ सदस्य इतिहासकार प्रोफेसर ओमप्रकाश शर्मा के अनुसार [[अजमेर]] की स्थापना [[चौहान वंश]] के 23वें राजा अजयराज चौहान ने गढ़ अजयमेरू के नाम से [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[प्रतिपदा]] के प्रथम दिन की थी।<ref>{{cite web |url=http://www.bhaskar.com/dainikbhaskar2010/scripts/print/index.php?printfile=http://www.bhaskar.com/article/RAJ-OTH-1910904-2997216.html|title=अजमेर|accessmonthday= 12 अप्रैल|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> विख्यात चौहान नरेश अजयराज चौहान के नाम पर [[चारण]] भाट इसे 'अजयमेरु' और क़िले को 'अजयमेरु दुर्ग' कहने लगे थे। | *'इंटेक अजमेर चैप्टर' के वरिष्ठ सदस्य इतिहासकार प्रोफेसर ओमप्रकाश शर्मा के अनुसार [[अजमेर]] की स्थापना [[चौहान वंश]] के 23वें राजा अजयराज चौहान ने गढ़ अजयमेरू के नाम से [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[प्रतिपदा]] के प्रथम दिन की थी।<ref>{{cite web |url=http://www.bhaskar.com/dainikbhaskar2010/scripts/print/index.php?printfile=http://www.bhaskar.com/article/RAJ-OTH-1910904-2997216.html|title=अजमेर|accessmonthday= 12 अप्रैल|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> विख्यात चौहान नरेश अजयराज चौहान के नाम पर [[चारण]]-भाट इसे 'अजयमेरु' और क़िले को 'अजयमेरु दुर्ग' कहने लगे थे। | ||
*अजयदेव चौहान ने प्रसिद्ध पार्श्वनाथ जैन मंदिर में स्वर्ण कलश चढ़ाया था। | *अजयदेव चौहान ने प्रसिद्ध पार्श्वनाथ जैन मंदिर में स्वर्ण कलश चढ़ाया था। | ||
*अजयदेव से पृथ्वीराज चौहान (तृतीय) के समय तक [[अजमेर]], नरायना व [[पुष्कर]] में [[जैन]] विद्वानों के अनेक शास्त्रार्थ होते रहने के उल्लेख भी [[इतिहास]] में मिलते हैं।<ref>{{cite web |url=http://saajhaamanch.blogspot.in/2012/04/blog-post.html|title=जैन संस्कृति का वर्चस्व रहा है प्राचीन अजमेर में|accessmonthday=12 अप्रैल|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | *अजयदेव से पृथ्वीराज चौहान (तृतीय) के समय तक [[अजमेर]], नरायना व [[पुष्कर]] में [[जैन]] विद्वानों के अनेक शास्त्रार्थ होते रहने के उल्लेख भी [[इतिहास]] में मिलते हैं।<ref>{{cite web |url=http://saajhaamanch.blogspot.in/2012/04/blog-post.html|title=जैन संस्कृति का वर्चस्व रहा है प्राचीन अजमेर में|accessmonthday=12 अप्रैल|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> |
Latest revision as of 09:26, 22 July 2014
अजयदेव चौहान को राजस्थान के इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है। कई इतिहासकार यह मानते हैं कि राजा अजयदेव चौहान ने ही 1100 ई. में अजमेर नगर की स्थापना की थी। अजयदेव को 'अजयराज चौहान' कहकर भी कई स्थानों पर सम्बोधित किया गया है।
- यह सम्भव है कि पुष्कर अथवा अनासागर झील के निकट होने के कारण ही अजयदेव ने अपनी राजधानी का नाम 'अजयमेर' ('मेर' या 'मीर'-झील, जैसे कश्यपमीर=काश्मीर) रखा हो।
- अजयदेव चौहान ने तारागढ़ की पहाड़ी पर एक क़िला 'गढ़-बिटली' नाम से बनवाया था, जिसे कर्नल टॉड ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ में "राजपूताने की कुँजी" कहा है।
- 'इंटेक अजमेर चैप्टर' के वरिष्ठ सदस्य इतिहासकार प्रोफेसर ओमप्रकाश शर्मा के अनुसार अजमेर की स्थापना चौहान वंश के 23वें राजा अजयराज चौहान ने गढ़ अजयमेरू के नाम से शुक्ल प्रतिपदा के प्रथम दिन की थी।[1] विख्यात चौहान नरेश अजयराज चौहान के नाम पर चारण-भाट इसे 'अजयमेरु' और क़िले को 'अजयमेरु दुर्ग' कहने लगे थे।
- अजयदेव चौहान ने प्रसिद्ध पार्श्वनाथ जैन मंदिर में स्वर्ण कलश चढ़ाया था।
- अजयदेव से पृथ्वीराज चौहान (तृतीय) के समय तक अजमेर, नरायना व पुष्कर में जैन विद्वानों के अनेक शास्त्रार्थ होते रहने के उल्लेख भी इतिहास में मिलते हैं।[2]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अजमेर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 12 अप्रैल, 2014।
- ↑ जैन संस्कृति का वर्चस्व रहा है प्राचीन अजमेर में (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 12 अप्रैल, 2014।