बिदअत: Difference between revisions
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Latest revision as of 09:58, 18 December 2014
बिदअत इस्लाम में कोई ऐसी नवीनता है, जिसका मुस्लिम समुदाय से पारंपरिक रस्मो-रिवाज (सुन्ना) में मूल न हो। इस्लाम का सबसे अधिक कट्टरवादी क़ानूनी विचारधारा हनबिला (और इसका आधुनिक उत्तरजीवी सऊदी अरब का वह मत) ने बिदअत को पूरी तरह ठुकरा दिया है और दलील दी है कि मुस्लिम का फ़र्ज़ पैगम्बर मुहम्मद द्वारा निर्धारित उदाहरण (सुन्ना) का पालन करना है, न कि उसमें सुधार लाने की कोशिश करना।
वर्गीकृत
अधिकांश मुसलमानों का मानना है कि कोई नवीनता लाये बगैर बदलते हालात के अनुरूप ढलना असंभव है। ज्यादतियों के ख़िलाफ़ हिफ़ाज़त में बिदअत को अच्छा (हसन) या प्रशंसा लायक़ (महमूद) या बुरा (सैयिआ) या दोष लगाने लायक़ (मज़मूम) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन्हें मुस्लिम क़ानून की पाँच श्रेणियों में भी वर्गीकृत किया गया:
- मुस्लिम समाज के लिये आवश्यक बिदअत में क़ुरान की सही समझ-बूझ, हदीस (पैगम्बर मुहम्म्द की दीक्षाओं या परंपराओं) के मूल्यांकन और उनकी वैधता तय करने, विधर्मता का खंडन करने और क़ानून के संहिताकरण के लिये अरबी व्याकरण और भाषाशास्त्र (फ़र्द किफ़ाया) का अध्ययन ज़रूरी है।
- पूरी तरह पाबंदी (मुहर्रम) के बिदअत शास्त्रीय सिद्धांतों का अवमूल्यन करते हैं और अविश्वास (कुफ़्र) हैं।
- स्कूलों और धार्मिक स्थलों के निर्माण की इजाज़त (मंदूब) है।
- मस्जिदों को आभूषणों से सजाये जाने और क़ुरान को सजाये जाने की मनाही (मकरू) है।
- अच्छे कपड़ों और अच्छे भोजन के बिदअत (मुबाहा) हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख