दन्तिदुर्ग

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 10:25, 12 October 2014 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
  • राष्ट्रकूट वंश की स्थापना 736 ई. में दंतिदुर्ग ने की थी। राष्ट्रकूट वंश के उत्कर्ष का प्रारम्भ दन्तिदुर्ग द्वारा हुआ।
  • किंतु उससे पहले भी इस वंश के राज्य की सत्ता थी, यद्यपि उस समय इसका राज्य स्वतंत्र नहीं था।
  • सम्भवतः वह चालुक्य साम्राज्य के अंतर्गत था।
  • उसने माल्यखेत या मालखंड को अपनी राजधानी बनाया। उसने कांची, कलिंग, कोशल, श्रीशैल, मालवा, लाट एवं टंक पर विजय प्राप्त कर राष्ट्रकूट साम्राज्य को विस्तृत बनाया।
  • उसके विषय में कहा जाता है कि उसने उज्जयिनी में हरिण्यगर्भ (महादान) यज्ञ किया था।
  • उसने चालुक्य नरेश कीर्तिवर्मन द्वितीय को एक युद्ध में पराजित किया था।
  • उसने महाराजधिराज परमेश्वर, परमभट्टारक आदि उपाधियां धारण की थी।
  • चालुक्य शासक विक्रमादित्य ने उसे पृथ्वी वल्लभ या खड़वालोक की उपाधि दी थी।
  • दन्तिदुर्ग ने न केवल अपने राज्य को चालुक्यों की अधीनता से मुक्त ही किया, अपितु अपनी राजधानी मान्यखेट (मानखेट) से अन्यत्र जाकर दूर-दूर तक के प्रदेशों की विजय भी की।
  • उत्कीर्ण लेखों में दन्तिदुर्ग द्वारा विजित प्रदेशों में काञ्जी, मालवा और लाट को अंतर्गत किया गया है।
  • कोशल का अभिप्राय सम्भवतः 'महाकोशल' है। महाकोशल, मालवा और लाट (गुजरात) को जीतकर वह निःसन्देह दक्षिणापथपति बन गया था, क्योंकि महाराष्ट्र में तो उसका शासन था ही।
  • काञ्जी की विजय के कारण दक्षिणी भारत का पल्लव राज्य भी उसकी अधीनता में आ गया था। जो प्रदेश वातापी चालुक्यों सम्राटों की अधीनता में थे, प्रायः वे सब अब दन्तिदुर्ग के आधिपत्य में आ गए थे।
  • दक्षिणापथ के क्षेत्र में राष्ट्रकूट वंश चालुक्यों का उत्तराधिकारी बन गया था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः