ईमानदारी (सूक्तियाँ)

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क्रमांक सूक्तियाँ सूक्ति कर्ता
(1) मनुष्य की प्रतिष्ठा ईमानदारी पर ही निर्भर है। अज्ञात
(2) ईमानदार मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट कृति है। अज्ञात
(3) घर के समान कोई स्कूल नहीं, न ईमानदारी व सदाचारी माता-पिता के समान कोई अध्यापक है।
(4) आदर्श, अनुशासन, मर्यादा, परिश्रम, ईमानदारी तथा उच्च मानवीय मूल्यों के बिना किसी का जीवन महान् नहीं बन सकता है। स्वामी विवेकानंद
(5) ईमानदारी और बुद्धिमानी के साथ किया हुआ काम कभी व्यर्थ नहीं जाता। हजारी प्रसाद द्विवेदी
(6) अवांछनीय कमाई से बनाई हुई खुशहाली की अपेक्षा ईमानदारी के आधार पर गरीबों जैसा जीवन बनाये रहना कहीं अच्छा है।
(7) ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने अन्तस्तल से मिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया, स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया।
(8) सच्चाई, ईमानदारी, सज्जनता और सौजन्य जैसे गुणों के बिना कोई मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता।
(9) अपने सकारात्मक विचारों को ईमानदारी और बिना थके हुए कार्यों में लगाए और आपको सफलता के लिए प्रयास नहीं करना पड़ेगा, अपितु अपरिमित सफलता आपके कदमों में होंगी। अज्ञात
(10) बड़प्पन अमीरी में नहीं, ईमानदारी और सज्जनता में सन्निहित है। श्रीराम शर्मा आचार्य
(11) ईमानदारी से बड़ी कोई विरासत नहीं है। विलियम शेक्सपियर
(12) बुद्धिमत्ता की पुस्तक में ईमानदारी पहला अध्याय है। थॉमस जैफर्सन
(13) ईमानदारी किसी कायदे क़ानून की मोहताज़ नहीं होती। आल्बेर कामू (1913-1960), 1957 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता
(14) युवा बने रहने का रहस्य है ईमानदारी से जीना, धीरे धीरे खाना और अपनी उम्र ज़ाहिर न करना। लूसिल बाल, टीवी अभिनेत्री
(15) जब तक ईमानदारी नहीं है, तो सम्मान कहां से आएगा? सीसेरो
(16) ईमानदारी के लिए किसी छद्म वेषभूषा अथवा साज श्रृंगार की आवश्यकता नहीं होती है; सादगी अपनाएं। औटवे
(17) कोई व्यक्ति सच्चाई, ईमानदारी तथा लोेक-हितकारिता के राजपथ पर दृढ़तापूर्वक रहे तो उसे कोई भी बुराई क्षति नहीं पहुंचा सकती। हरिभाऊ उपाध्याय

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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