खेड़ा सत्याग्रह

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 09:16, 12 April 2018 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - " गरीब" to " ग़रीब")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

[[चित्र:Mahatma-Gandhi-2.jpg|thumb|200px|महात्मा गाँधी]] खेड़ा सत्याग्रह राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा प्रारम्भ किया गया था। 'चम्पारन सत्याग्रह' के बाद गाँधीजी ने 1918 ई. में खेड़ा (गुजरात) के किसानों की समस्याओं को लेकर आन्दोलन शुरू किया। खेड़ा में गाँधीजी ने अपने प्रथम वास्तविक 'किसान सत्याग्रह' की शुरुआत की थी। खेड़ा सत्याग्रह गुजरात के खेड़ा ज़िले में किसानों का अंग्रेज़ सरकार की कर-वसूली के विरुद्ध एक सत्याग्रह (आन्दोलन) था। यह महात्मा गांधी की प्रेरणा से वल्लभ भाई पटेल एवं अन्य नेताओं की अगुवाई में हुआ था।

शुरुआत

खेड़ा के कुनबी-पाटीदार किसानों ने 1918 ई. में अंग्रेज़ सरकार से लगान में राहत की माँग की थी, क्योंकि गुजरात की पूरे वर्ष की फ़सल मारी गई थी। किसानों की दृष्टि में फ़सल चौथाई भी नहीं हुई थी। ऐसी स्थिति को देखते हुए लगान की माफी होनी चाहिए थी, पर सरकारी अधिकारी किसानों की इस बात को सुनने को तैयार नहीं थे। किसानों की जब सारी प्रार्थनाएँ निष्फल हो गईं, तब महात्मा गाँधी ने 22 मार्च, 1918 ई. में 'खेड़ा आन्दोलन' की घोषणा की और उसकी बागडोर सम्भाल ली।

गाँधीजी की अपील

इस समय गाँधीजी ने लोगों से स्वयं सेवक और कार्यकर्ता बनने की अपील की। गाँधीजी की अपील पर सरदार वल्लभभाई पटेल अपनी अच्छी ख़ासी चलती हुई वकालत छोड़ कर सामने आए। यह उनके सार्वजनिक जीवन का श्रीगणेश था। उन्होंने गाँव-गाँव घूम-घूम कर किसानों से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर कराया कि वे अपने को झूठा कहलाने और स्वाभिमान को नष्ट कर जबर्दस्ती बढ़ाया हुआ कर देने की अपेक्षा अपनी भूमि को जब्त कराने के लिये तैयार हैं।

सत्याग्रह की सफलता

अंग्रेज़ सरकार की ओर से कर की अदायगी के लिए किसानों के मवेशी तथा अन्य वस्तुएँ कुर्क की जाने लगीं। किसान अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहे। उन्हें अधिक दृढ़ बनाने के लिए महात्मा गाँधी ने किसानों से कहा कि "जो खेत बेजा कुर्क कर लिए गए हैं, उसकी फ़सल काट कर ले आएँ"। गाँधीजी के इस आदेश का पालन करने मोहनलाल पंड्या आगे बढ़े और वे एक खेत से प्याज की फ़सल उखाड़ लाए। इस कार्य में कुछ अन्य किसानों ने भी उनकी सहायता की। वे सभी पकड़े गए, मुक़दमा चला और उन्हें सजा हुई। इस प्रकार किसानों का यह 'सत्याग्रह' चल निकला और सफलता की ओर बढ़ने लगा।

किसानों की नैतिक विजय

यह सत्याग्रह गाँधीजी का पहला आन्दोलन था। सरकार को अपनी भूल का अनुभव हुआ, पर उसे वह खुल कर स्वीकार नहीं करना चाहती थी। अत: उसने बिना कोई सार्वजनिक घोषणा किए ही ग़रीब किसानों से लगान की वसूली बंद कर दी। सरकार ने यह कार्य बहुत देर से और बेमन से किया और यह प्रयत्न किया कि किसानों को यह अनुभव न होने पाए कि सरकार ने किसानों के सत्याग्रह से झुककर किसी प्रकार का कोई समझौता किया है। इससे किसानों को अधिक लाभ तो नहीं हुआ, पर उनकी नैतिक विजय हो चुकी थी।

'खेड़ा सत्याग्रह' के फलस्वरूप गुजरात के जनजीवन में एक नया तेज और उत्साह उत्पन्न हुआ और आत्मविश्वास जागा। यह सत्याग्रह यद्यपि साधारण-सा था, तथापि भारतीय चेतना के इतिहास में इसका महत्व 'चंपारन सत्याग्रह' से कम नहीं है। गाँधीजी के सत्याग्रह के आगे विवश होकर ब्रिटिश अंग्रेज़ सरकार ने यह आदेश दिया कि वसूली समर्थ किसानों से ही की जाय।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः