पछुआ पवन: Difference between revisions

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*पछुआ पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर प्रवाहित होती हैं।
*पछुआ पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर प्रवाहित होती हैं।
*इन हवाओं का सर्वश्रेष्ठ विकास 40 डिग्री से 65 डिग्री दक्षिणी अक्षांशों के मध्य पाया जाता है, क्योंकि यहाँ जलराशि के विशाल विस्तार के कारण पवनों की [[गति]] अपेक्षाकृत तेज तथा दिशा निश्चित होती है।
*इन हवाओं का सर्वश्रेष्ठ विकास 40 डिग्री से 65 डिग्री दक्षिणी अक्षांशों के मध्य पाया जाता है, क्योंकि यहाँ जलराशि के विशाल विस्तार के कारण पवनों की [[गति]] अपेक्षाकृत तेज़ होती तथा दिशा निश्चित रहती है।
*दक्षिणी गोलार्द्ध में पछुआ पवनों की प्रचंडता के कारण ही 40 से 50 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के बीच इन्हें 'गरजती चालीसा' तथा 50 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के समीपवर्ती इलाको में 'प्रचंड पचासा' और 60 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के पास 'चीखती साठा' पुकारा जाता है।
*दक्षिणी गोलार्द्ध में पछुआ पवनों की प्रचंडता के कारण ही 40 से 50 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के बीच इन्हें 'गरजती चालीसा' तथा 50 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के समीपवर्ती इलाको में 'प्रचंड पचासा' और 60 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के पास 'चीखती साठा' नाम से पुकारा जाता है।
*ध्रुवों की ओर इन पवनों की सीमा काफ़ी अस्थिर होती है, जो [[मौसम]] एवं अन्य कारणों के अनुसार परिवर्तित होती रहती है।
*ध्रुवों की ओर इन पवनों की सीमा काफ़ी अस्थिर होती है, जो [[मौसम]] एवं अन्य कारणों के अनुसार परिवर्तित होती रहती है।
*[[पृथ्वी]] के उत्तरी गोलार्द्ध में असमान उच्च दाब वाले विशाल स्थल खंड तथा वायु दाब के परिवर्तनशील मौसमी प्रारूप के कारण इस पवन का सामान्य पश्चिमी दिशा से प्रवाह अस्पष्ट हो जाता है।
*[[पृथ्वी]] के उत्तरी गोलार्द्ध में आसमान उच्च [[दाब]] वाले विशाल स्थल खंड तथा [[वायु दाब]] के परिवर्तनशील मौसमी प्रारूप के कारण इस पवन का सामान्य पश्चिमी दिशा से प्रवाह अस्पष्ट हो जाता है।


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Latest revision as of 13:02, 5 August 2014

पछुआ पवन पृथ्वी के दोनों गोलार्द्धों में प्रवाहित होने वाली स्थायी पवनें हैं। इन पवनों की पश्चिमी दिशा के कारण ही इन्हें 'पछुआ पवन' कहा जाता है। पछुआ हवाएँ दोनों गोलार्द्धों, उपोष्ण उच्च वायुदाब[1] कटिबन्धों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब[2] कटिबन्धों की ओर प्रवाहित होती हैं।

  • पछुआ पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर प्रवाहित होती हैं।
  • इन हवाओं का सर्वश्रेष्ठ विकास 40 डिग्री से 65 डिग्री दक्षिणी अक्षांशों के मध्य पाया जाता है, क्योंकि यहाँ जलराशि के विशाल विस्तार के कारण पवनों की गति अपेक्षाकृत तेज़ होती तथा दिशा निश्चित रहती है।
  • दक्षिणी गोलार्द्ध में पछुआ पवनों की प्रचंडता के कारण ही 40 से 50 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के बीच इन्हें 'गरजती चालीसा' तथा 50 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के समीपवर्ती इलाको में 'प्रचंड पचासा' और 60 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के पास 'चीखती साठा' नाम से पुकारा जाता है।
  • ध्रुवों की ओर इन पवनों की सीमा काफ़ी अस्थिर होती है, जो मौसम एवं अन्य कारणों के अनुसार परिवर्तित होती रहती है।
  • पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में आसमान उच्च दाब वाले विशाल स्थल खंड तथा वायु दाब के परिवर्तनशील मौसमी प्रारूप के कारण इस पवन का सामान्य पश्चिमी दिशा से प्रवाह अस्पष्ट हो जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 30 डिग्री से 35 डिग्री
  2. 60 डिग्री से 65 डिग्री

संबंधित लेख