डर (सूक्तियाँ): Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('{| width="100%" class="bharattable-pink" |- ! क्रमांक ! सूक्तियाँ ! सूक्ति कर्ता |-...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
m (Text replacement - " मां " to " माँ ")
 
(3 intermediate revisions by the same user not shown)
Line 22: Line 22:
|-
|-
| (5)
| (5)
| भय से ही दुख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयां उत्पन्न होती हैं।   
| भय से ही दु:ख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयां उत्पन्न होती हैं।   
| [[विवेकानंद]]
| [[विवेकानंद]]
|-
|-
Line 38: Line 38:
|-
|-
| (9)
| (9)
| ‘भय’ और ‘घृणा’ ये दोनों भाई-बहन लाख बुरे हों पर अपनी मां बर्बरता के प्रति बहुत ही भक्ति रखते हैं। जो कोई इनका सहारा लेना चाहता है, उसे ये सब से पहले अपनी मां के चरणों में डाल जाते हैं।   
| ‘भय’ और ‘घृणा’ ये दोनों भाई-बहन लाख बुरे हों पर अपनी माँ बर्बरता के प्रति बहुत ही भक्ति रखते हैं। जो कोई इनका सहारा लेना चाहता है, उसे ये सब से पहले अपनी माँ के चरणों में डाल जाते हैं।   
| बर्ट्रेंड रसेल
| बर्ट्रेंड रसेल
|-
|-
Line 110: Line 110:
|-
|-
| (27)
| (27)
|एक चीज जिससे डरा जाना चाहिए वह डर है।  
|एक चीज़ जिससे डरा जाना चाहिए वह डर है।  
| फ्रेंकलिन डी. रुज़वेल्ट  
| फ्रेंकलिन डी. रुज़वेल्ट  
|-
|-
Line 126: Line 126:
|-
|-
| (31)
| (31)
|दिल में प्यार रखने वाले लोगों को दुख ही झेलने पड़ते हैं। दिल में प्यार पनपने पर बहुत सुख महसूस होता है, मगर इस सुख के साथ एक डर भी अंदर ही अंदर पनपने लगता है, खोने का डर, अधिकार कम होने का डर आदि-आदि। मगर दिल में प्यार पनपे नहीं, ऐसा तो हो नहीं सकता। तो प्यार पनपे मगर कुछ समझदारी के साथ। संक्षेप में कहें तो प्रीति में चालाकी रखने वाले ही अंतत: सुखी रहते हैं।  
|दिल में प्यार रखने वाले लोगों को दु:ख ही झेलने पड़ते हैं। दिल में प्यार पनपने पर बहुत सुख महसूस होता है, मगर इस सुख के साथ एक डर भी अंदर ही अंदर पनपने लगता है, खोने का डर, अधिकार कम होने का डर आदि-आदि। मगर दिल में प्यार पनपे नहीं, ऐसा तो हो नहीं सकता। तो प्यार पनपे मगर कुछ समझदारी के साथ। संक्षेप में कहें तो प्रीति में चालाकी रखने वाले ही अंतत: सुखी रहते हैं।  
|
|
|-
|-
Line 134: Line 134:
|-
|-
| (33)
| (33)
|डर रखने से हम अपनी जिंदगी को बढ़ा तो नहीं सकते। डर रखने से बस इतना होता है कि हम ईश्वर को भूल जाते हैं, इंसानियत को भूल जाते हैं।  
|डर रखने से हम अपनी ज़िंदगी को बढ़ा तो नहीं सकते। डर रखने से बस इतना होता है कि हम ईश्वर को भूल जाते हैं, इंसानियत को भूल जाते हैं।  
| [[विनोबा भावे]]  
| [[विनोबा भावे]]  
|-
|-

Latest revision as of 14:09, 2 June 2017

क्रमांक सूक्तियाँ सूक्ति कर्ता
(1) जिसे भविष्य का भय नहीं रहता, वही वर्तमान का आनंद उठा सकता है। अज्ञात
(2) भय ही पतन और पाप का निश्चित कारण है। स्वामी विवेकानंद
(3) जैसे ही भय आपकी ओर बढ़े, उस पर आक्रमण करते हुए उसे नष्ट कर दो। चाणक्य
(4) जो चुनौतियों का सामना करने से डरता है, उसका असफल होना तय है। अज्ञात
(5) भय से ही दु:ख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयां उत्पन्न होती हैं। विवेकानंद
(6) तावत् भयस्य भेतव्यं , यावत् भयं न आगतम् । आगतं हि भयं वीक्ष्य , प्रहर्तव्यं अशंकया ॥
(7) भय से तब तक ही दरना चाहिये जब तक भय (पास) न आया हो। आये हुए भय को देखकर बिना शंका के उस पर प्रहार करना चाहिये। पंचतंत्र
(8) जो लोग भय का हेतु अथवा हर्ष का कारण उपस्थित होने पर भी विचार विमर्श से काम लेते हैं तथा कार्य की जल्दी से नहीं कर डालते, वे कभी भी संताप को प्राप्त नहीं होते। पंचतंत्र
(9) ‘भय’ और ‘घृणा’ ये दोनों भाई-बहन लाख बुरे हों पर अपनी माँ बर्बरता के प्रति बहुत ही भक्ति रखते हैं। जो कोई इनका सहारा लेना चाहता है, उसे ये सब से पहले अपनी माँ के चरणों में डाल जाते हैं। बर्ट्रेंड रसेल
(10) डर सदैव अज्ञानता से पैदा होता है। एमर्सन
(11) आदमी सिर्फ़ दो लीवर के द्वारा चलता रहता है : डर तथा स्वार्थ। नेपोलियन
(12) जिस काम को करने में डर लगता है उसको करने का नाम ही साहस है।
(13) एक बार सिकंदर से पूछा गया कि तुम धन क्यों एकत्र नहीं करते ? तब उसका जवाब था कि इस डर से कि उसका रक्षक बनकर कहीं भ्रष्ट न हो जाऊं।
(14) अपराध करने के बाद डर पैदा होता है और यही उसका दण्ड है।
(15) घृणा करने वाला निन्दा, द्वेष, ईर्ष्या करने वाले व्यक्ति को यह डर भी हमेशा सताये रहता है, कि जिससे मैं घृणा करता हूँ, कहीं वह भी मेरी निन्दा व मुझसे घृणा न करना शुरू कर दे।
(16) यदि आपको मरने का डर है, तो इसका यही अर्थ है, की आप जीवन के महत्त्व को ही नहीं समझते।
(17) डर में जीना आधा जीवित रहने जैसा है। अज्ञात
(18) डर से भागने की बजाय अपने सपनों को साकार करने के लिए हमेशा प्रतिबद्ध रहें। अज्ञात
(19) निडरता से डर को भी डर लगता है। अज्ञात
(20) तृण से हल्की रूई होती है और रूई से भी हल्का याचक। हवा इस डर से उसे नहीं उड़ाती कि कहीं उससे भी कुछ न माँग ले। चाणक्य
(21) एक बार काम शुरू कर लें तो असफलता का डर नहीं रखें और न ही काम को छोड़ें। निष्ठा से काम करने वाले ही सबसे सुखी हैं। चाणक्य
(22) भोग में रोग का, उच्च-कुल में पतन का, धन में राजा का, मान में अपमान का, बल में शत्रु का, रूप में बुढ़ापे का और शास्त्र में विवाद का डर है। भय रहित तो केवल वैराग्य ही है। भगवान महावीर
(23) जब तुम दु:खों का सामना करने से डर जाते हो और रोने लगते हो, तो मुसीबतों का ढेर लग जाता है। लेकिन जब तुम मुस्कराने लगते हो, तो मुसीबतें सिकुड़ जाती हैं। सुधांशु महाराज
(24) डर सदैव अज्ञानता से पैदा होता है। एमर्सन
(25) सफल होने के लिए ज़रूरी है कि आप में सफलता की आस असफलता के डर से कहीं अधिक हो। बिल कोज़्बी
(26) आप प्रत्येक ऐसे अनुभव जिसमें आपको वस्तुत डर सामने दिखाई देता है, से बल, साहस तथा विश्वास अर्जित करते हैं, आपको ऐसे कार्य अवश्य करने चाहिए जिनके बारे में आप सोचते हैं कि आप उनको नहीं कर सकते हैं। एलेनोर रुज़वेल्ट
(27) एक चीज़ जिससे डरा जाना चाहिए वह डर है। फ्रेंकलिन डी. रुज़वेल्ट
(28) निष्क्रियता से संदेह और डर की उत्पत्ति होती है, क्रियाशीलता से विश्वास और साहस का सृजन होता है, यदि आप डर पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं, तो चुपचाप घर पर बैठ कर इसके बारे में विचार न करें, बाहर निकले और व्यस्त रहें। डेल कार्नेगी
(29) डर के जीने की तुलना में तो मर जाना ही बेहतर है। एमिलियानों जापाटा
(30) यदि आपको भगवान का भय है, तो आपको मनुष्यों से डर नहीं लगेगा। अल्बानियाई कहावत
(31) दिल में प्यार रखने वाले लोगों को दु:ख ही झेलने पड़ते हैं। दिल में प्यार पनपने पर बहुत सुख महसूस होता है, मगर इस सुख के साथ एक डर भी अंदर ही अंदर पनपने लगता है, खोने का डर, अधिकार कम होने का डर आदि-आदि। मगर दिल में प्यार पनपे नहीं, ऐसा तो हो नहीं सकता। तो प्यार पनपे मगर कुछ समझदारी के साथ। संक्षेप में कहें तो प्रीति में चालाकी रखने वाले ही अंतत: सुखी रहते हैं।
(32) निकृष्ट व्यक्ति बाधाओं के डर से काम शुरू ही नहीं करते, मध्यम प्रकृति वाले कार्य का प्रारंभ तो कर देते हैं किंतु विघ्न उपस्थित होने पर उसे छोड़ देते हैं। इसके विपरीत, उत्तम प्रकृति के व्यक्ति बार-बार विघ्नों के आने पर भी काम को एक बार शुरू कर देने के बाद फिर उसे नहीं छोड़ते। भर्तृहरि
(33) डर रखने से हम अपनी ज़िंदगी को बढ़ा तो नहीं सकते। डर रखने से बस इतना होता है कि हम ईश्वर को भूल जाते हैं, इंसानियत को भूल जाते हैं। विनोबा भावे
(34) श्रद्धावान को कोई परास्त नहीं कर सकता। बुद्धिमान को हमेशा पराजय का डर लगा रहता है। महात्मा गांधी

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख