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'''संदीपन''' परम तेजस्वी तथा सिद्ध [[ऋषि]] थे। [[श्रीकृष्ण]] ने [[कंस]] का वध करने के पश्चात् [[मथुरा]] का समस्त राज्य अपने नाना [[उग्रसेन]] को सौंप दिया था। इसके उपरांत [[वसुदेव]] और [[देवकी]] ने कृष्ण को [[यज्ञोपवीत संस्कार]] के लिए संदीपन ऋषि के आश्रम में भेज दिया, जहाँ उन्होंने चौंसठ दिनों में चौंसठ कलाएँ सीखीं। संदीपन ऋषि के आश्रम में ही कृष्ण और [[सुदामा]] की भेंट हुई थी, जो बाद में अटूट मित्रता बन गई।


*संदीपन ऋषि द्वारा कृष्ण और [[बलराम]] ने अपनी शिक्षाएँ पूर्ण की थीं।
*संदीपन ऋषि द्वारा कृष्ण और [[बलराम]] ने अपनी शिक्षाएँ पूर्ण की थीं।

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[[चित्र:Sandipan.jpg|thumb|250px|संदीपन कृष्ण और बलराम को शिक्षा देते हुए]] संदीपन परम तेजस्वी तथा सिद्ध ऋषि थे। श्रीकृष्ण ने कंस का वध करने के पश्चात् मथुरा का समस्त राज्य अपने नाना उग्रसेन को सौंप दिया था। इसके उपरांत वसुदेव और देवकी ने कृष्ण को यज्ञोपवीत संस्कार के लिए संदीपन ऋषि के आश्रम में भेज दिया, जहाँ उन्होंने चौंसठ दिनों में चौंसठ कलाएँ सीखीं। संदीपन ऋषि के आश्रम में ही कृष्ण और सुदामा की भेंट हुई थी, जो बाद में अटूट मित्रता बन गई।

  • संदीपन ऋषि द्वारा कृष्ण और बलराम ने अपनी शिक्षाएँ पूर्ण की थीं।
  • आश्रम में कृष्ण-बलराम और सुदामा ने एक साथ वेद-पुराण का अध्ययन प्राप्त किया था।
  • दीक्षा के उपरांत कृष्ण ने गुरुमाता को गुरु दक्षिणा देने की बात कही। इस पर गुरुमाता ने कृष्ण को अद्वितीय मान कर गुरु दक्षिणा में उनका पुत्र वापस माँगा, जो प्रभास क्षेत्र में जल में डूबकर मर गया था।
  • गुरुमाता की आज्ञा का पालन करते हुए कृष्ण ने समुद्र में मौजूद शंखासुर नामक एक राक्षस का पेट चीरकर एक शंख निकाला, जिसे "पांचजन्य" कहा जाता था। इसके बाद वे यमराज के पास गए और संदीपन ऋषि का पुत्र वापस लाकर गुरुमाता को सौंप दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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