शब्दालंकार: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "उत्तरार्द्ध" to "उत्तरार्ध")
 
(6 intermediate revisions by 3 users not shown)
Line 33: Line 33:
| '''अनुप्रास'''
| '''अनुप्रास'''
| '''व्यंजन वर्णों की आवृत्ति'''
| '''व्यंजन वर्णों की आवृत्ति'''
| '''बँदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥ <br />प द स र  की आवृत्ति'''  
| '''<poem>बँदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥</poem> प द स र  की आवृत्ति'''  
|-
|-
| छेकानुप्रास
| छेकानुप्रास
| अनेक व्यंजनों की एक बार स्वरूपत व क्रमतः आवृति
| अनेक व्यंजनों की एक बार स्वरूपत व क्रमतः आवृति
| बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास, सरस अनुरागा॥ ([[तुलसीदास]]) <br />पद पदुम में पद एवं सुरुचि सरस में सर - स्वरूप की आवृत्ति।<br /> पद में प के बाद द, पदुम, में प के बाद द, सुरुचि में स के बाद र सरस में स के बाद र। क्रम की आवृत्ति।
| <poem>बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास, सरस अनुरागा॥ ([[तुलसीदास]])</poem> पद पदुम में पद एवं सुरुचि सरस में सर - स्वरूप की आवृत्ति।<br /> पद में प के बाद द, पदुम, में प के बाद द, सुरुचि में स के बाद र सरस में स के बाद र। क्रम की आवृत्ति।
|-
|-
| वृत्त्यनुप्रास
| [[वृत्त्यनुप्रास अलंकार|वृत्त्यनुप्रास]]
| अनेक व्यजनों की अनेक बार स्वरूपत व क्रमतः आवृत्ति
| अनेक व्यजनों की अनेक बार स्वरूपत व क्रमतः आवृत्ति
| कलावती केलिवती कलिन्दजा <br />कल की 2 बार आवृत्ति - स्वरूपतः आवृत्ति,<br /> क ल की 2 बार  आवृत्ति - क्रमतः आवृत्ति
| <poem>कलावती केलिवती कलिन्दजा</poem> कल की 2 बार आवृत्ति - स्वरूपतः आवृत्ति,<br /> क ल की 2 बार  आवृत्ति - क्रमतः आवृत्ति
|-
|-
| लाटानुप्रास
| लाटानुप्रास
| तात्पर्य मात्र के भेद से शब्द व अर्थ दोनों की पुनरुक्ति
| तात्पर्य मात्र के भेद से शब्द व अर्थ दोनों की पुनरुक्ति
| लड़का तो लड़का ही है - शब्द की पुनरुक्ति सामान्य लड़का रूप बुद्धि शीलादि गुण संपन्न लड़का - अर्थ की पुनरुक्ति।  
| <poem>लड़का तो लड़का ही है</poem> शब्द की पुनरुक्ति सामान्य लड़का रूप बुद्धि शीलादि गुण संपन्न लड़का - अर्थ की पुनरुक्ति।  
|-
|-
| '''यमक'''
| '''यमक'''
| '''शब्दों की आवृत्ति (जहाँ एक शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हो और उसके अर्थ अलग- अलग हों)'''  
| '''शब्दों की आवृत्ति (जहाँ एक शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हो और उसके अर्थ अलग- अलग हों)'''  
| '''कनक-कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय वा खाए बौराय जग, या पाए बौराय। ([[बिहारीलाल]])<br />कनक शब्द की एक बार आवृत्ति 1 धतूरा, 2 सोना।'''
| '''<poem>कनक-कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय वा खाए बौराय जग, या पाए बौराय। ([[बिहारीलाल]])</poem> कनक शब्द की एक बार आवृत्ति 1 धतूरा, 2 सोना।'''
|-
|-
| '''श्लेष'''
| '''श्लेष'''
| '''एक [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] में एक से अधिक अर्थ (जहाँ कोई शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो किंतु प्रसंग भेद में उसके अर्थ अलग-अलग हों)'''
| '''एक [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] में एक से अधिक अर्थ (जहाँ कोई शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो किंतु प्रसंग भेद में उसके अर्थ अलग-अलग हों)'''
| '''रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। <br />पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून ॥([[रहीम]])<br />मोती→चमक, मानुष→प्रतिष्ठा, चून→जल'''
| '''<poem>रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।  
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून ॥([[रहीम]])</poem> मोती→चमक, मानुष→प्रतिष्ठा, चून→जल'''
|-
|-
| '''वक्रोक्ति'''       
| '''वक्रोक्ति'''       
Line 61: Line 62:
| श्लेषमूला वक्रोक्ति
| श्लेषमूला वक्रोक्ति
| श्लेष के द्वारा वक्रोक्ति   
| श्लेष के द्वारा वक्रोक्ति   
| एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है? <br />उसने कहा अपर कैसा? वह उड़ गया सपर है॥ (गुरुभक्त सिंह) <br />यहाँ पूर्वार्द्ध में [[जहाँगीर]] ने दूसरे कबूतर के बारे में पूछने के लिए 'अपर' (दूसरा) शब्द का प्रयोग किया है जबकि उत्तरार्द्ध में नूरजहाँ ने 'अपर' का 'बिना (पंख) वाला' अर्थ कर दिया है।
| <poem>एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है?  
उसने कहा अपर कैसा? वह उड़ गया सपर है॥ (गुरुभक्त सिंह)</poem> यहाँ पूर्वार्द्ध में [[जहाँगीर]] ने दूसरे कबूतर के बारे में पूछने के लिए 'अपर' (दूसरा) शब्द का प्रयोग किया है जबकि उत्तरार्ध में नूरजहाँ ने 'अपर' का 'बिना (पंख) वाला' अर्थ कर दिया है।
|-
|-
| काकुमूला वक्रोक्ति
| काकुमूला वक्रोक्ति
| काकु (ध्वनि- विकार\ आवाज में परिवर्तन) के द्वारा वक्रोक्ति
| काकु (ध्वनि- विकार\ आवाज़ में परिवर्तन) के द्वारा वक्रोक्ति
| आप जाइए तो। - आप जाइए।<br /> आप जाइए तो? - आप नहीं जाइए।  
| <poem>आप जाइए तो। - आप जाइए।  
आप जाइए तो? - आप नहीं जाइए।</poem>
|-
|-
| '''वीप्सा'''
| '''वीप्सा'''
Line 72: Line 75:
|}
|}


{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति
{{लेख प्रगति
|आधार=
|आधार=
Line 83: Line 87:
{{अलंकार}}
{{अलंकार}}
{{व्याकरण}}
{{व्याकरण}}
[[Category:हिन्दी भाषा]]
[[Category:हिन्दी भाषा]][[Category:भाषा कोश]]
[[Category:व्याकरण]]
[[Category:व्याकरण]]
[[Category:अलंकार]]  
[[Category:अलंकार]]  
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 11:13, 1 June 2017

जिस अलंकार में शब्दों के प्रयोग के कारण कोई चमत्कार उपस्थित हो जाता है और उन शब्दों के स्थान पर समानार्थी दूसरे शब्दों के रख देने से वह चमत्कार समाप्त हो जाता है, वह शब्दालंकार माना जाता है। शब्दालंकार के प्रमुख भेद हैं।

अनुप्रास

  • जिस रचना में व्यंजन वर्णों की आवृत्ति एक या दो से अधिक बार होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
जैसे

मुदित महीपति मंदिर आए।
सेवक सुमंत्र बुलाए।

  • यहाँ पहले पद में 'म' वर्ण की और दूसरे वर्ण में 'स' वर्ण की आवृत्ति हुई है, अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है। इसके निम्न भेद है:-

यमक

  • जब कविता में एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आए और उसका अर्थ हर बार भिन्न हो वहाँ यमक अलंकार होता है।
जैसे

काली घटा का घमण्ड घटा।

  • यहाँ 'घटा' शब्द की आवृत्ति भिन्न-भिन्न अर्थ में हुई है। पहले 'घटा' शब्द 'वर्षाकाल' में उड़ने वाली 'मेघमाला' के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है और दूसरी बार 'घटा' का अर्थ है 'कम हुआ'। अतः यहाँ यमक अलंकार है।

श्लेष

  • जहाँ किसी शब्द का अनेक अर्थों में एक ही बार प्रयोग हो, वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
जैसे

मधुवन की छाती को देखो,
सूखी कितनी इसकी कलियाँ।

  • यहाँ 'कलियाँ' शब्द का प्रयोग एक बार हुआ है, किन्तु इसमें अर्थ की भिन्नता है।
    • खिलने से पूर्व फूल की दशा
    • यौवन पूर्व की अवस्था
अलंकार लक्षण\पहचान चिह्न उदाहरण\ टिप्पणी
अनुप्रास व्यंजन वर्णों की आवृत्ति

बँदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥

प द स र की आवृत्ति
छेकानुप्रास अनेक व्यंजनों की एक बार स्वरूपत व क्रमतः आवृति

बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास, सरस अनुरागा॥ (तुलसीदास)

पद पदुम में पद एवं सुरुचि सरस में सर - स्वरूप की आवृत्ति।
पद में प के बाद द, पदुम, में प के बाद द, सुरुचि में स के बाद र सरस में स के बाद र। क्रम की आवृत्ति।
वृत्त्यनुप्रास अनेक व्यजनों की अनेक बार स्वरूपत व क्रमतः आवृत्ति

कलावती केलिवती कलिन्दजा

कल की 2 बार आवृत्ति - स्वरूपतः आवृत्ति,
क ल की 2 बार आवृत्ति - क्रमतः आवृत्ति
लाटानुप्रास तात्पर्य मात्र के भेद से शब्द व अर्थ दोनों की पुनरुक्ति

लड़का तो लड़का ही है

शब्द की पुनरुक्ति सामान्य लड़का रूप बुद्धि शीलादि गुण संपन्न लड़का - अर्थ की पुनरुक्ति।
यमक शब्दों की आवृत्ति (जहाँ एक शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हो और उसके अर्थ अलग- अलग हों)

कनक-कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय वा खाए बौराय जग, या पाए बौराय। (बिहारीलाल)

कनक शब्द की एक बार आवृत्ति 1 धतूरा, 2 सोना।
श्लेष एक शब्द में एक से अधिक अर्थ (जहाँ कोई शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो किंतु प्रसंग भेद में उसके अर्थ अलग-अलग हों)

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून ॥(रहीम)

मोती→चमक, मानुष→प्रतिष्ठा, चून→जल
वक्रोक्ति प्रत्यक्ष अर्थ के अतिरिक्त भिन्न अर्थ
श्लेषमूला वक्रोक्ति श्लेष के द्वारा वक्रोक्ति

एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है?
उसने कहा अपर कैसा? वह उड़ गया सपर है॥ (गुरुभक्त सिंह)

यहाँ पूर्वार्द्ध में जहाँगीर ने दूसरे कबूतर के बारे में पूछने के लिए 'अपर' (दूसरा) शब्द का प्रयोग किया है जबकि उत्तरार्ध में नूरजहाँ ने 'अपर' का 'बिना (पंख) वाला' अर्थ कर दिया है।
काकुमूला वक्रोक्ति काकु (ध्वनि- विकार\ आवाज़ में परिवर्तन) के द्वारा वक्रोक्ति

आप जाइए तो। - आप जाइए।
आप जाइए तो? - आप नहीं जाइए।

वीप्सा मनोभावों को प्रकट करने के लिए शब्द दुहराना (वीप्सा- दुहराना) छिः, छिः; राम, राम; चुप, चुप; देखो, देखो;


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख