हरिभद्र: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
(नया पन्ना: {{Menu}} ==आचार्य हरिभद्र / Acharya Haribhadra== *आचार्य हरिभद्र वि0 सं0 8वीं शती के विश...) |
No edit summary |
||
(12 intermediate revisions by 7 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
'''हरिभद्र''' [[विक्रम संवत]] आठवीं शती के विश्रुत दार्शनिक तथा नैयायिक थे। कुछ विद्वानों ने इन्हें 'हरिभद्र सूरी' भी कहकर सम्बोधित किया है। हरिभद्र अप्रामाणिक [[जैन]] लेखकों में से एक थे, जो [[जैन धर्म के सिद्धांत|जैन सिद्धांतों]] तथा नीति पर [[संस्कृत]] तथा [[प्राकृत भाषा|प्राकृत]] में अपनी आधिकारिक कृतियों के लिए विख्यात थे। | |||
*आचार्य हरिभद्र | *आचार्य हरिभद्र [[चित्तौड़]] ([[राजस्थान]]) के एक [[ब्राह्मण]] थे। | ||
#अनेकान्तजयपताका | *उन्होंने [[संस्कृत]] शास्त्रों की व्यापक शिक्षा ग्रहण की थी। | ||
#अनेकान्तवादप्रवेश | *[[जैन धर्म]] स्वीकारने के बाद हरिभद्र ने [[मुनि|मुनियों]] के [[श्वेतांबर सम्प्रदाय|श्वेतांबर मत]] में प्रवेश किया था। | ||
#शास्त्रवार्तासमुच्चय | *हरिभद्र ने अपनी कृति 'सद्दर्शनसमुच्चय' के लिए और [[प्राकृत भाषा]] के वाचिक साहित्य में भी विशेष योगदान दिया था। | ||
#षड्दर्शनसमुच्चय | *वे [[ग्रंथ]] जिनकी रचना आचार्य हरिभद्र द्वारा हुई मानी जाती है, निम्नलिखित हैं- | ||
#जैनन्याय | #अनेकान्तजयपताका | ||
*यद्यपि | #अनेकान्तवादप्रवेश | ||
#शास्त्रवार्तासमुच्चय | |||
* | #षड्दर्शनसमुच्चय | ||
#जैनन्याय | |||
[[Category:कोश]] | |||
[[Category: | *यद्यपि उपरोक्त रचनाओं का कोई स्वतंत्र न्याय का ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है, किन्तु हरिभद्र के इन दर्शन ग्रंथों में [[न्याय दर्शन|न्याय]] की भी चर्चा मिलती है। | ||
*हरिभद्र का षड्दर्शन-समुच्चय तो ऐसा दर्शन ग्रन्थ है, जिसमें भारतीय प्राचीन छहों [[दर्शन|दर्शनों]] का विवेचन सरल और विशद रूप में किया गया है तथा [[जैन दर्शन]] को अच्छी तरह स्पष्ट किया गया है। इसके द्वारा जैनेतर विद्वानों को जैन दर्शन का सही आकलन हो जाता है। | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{दार्शनिक}} | |||
{{जैन धर्म2}}{{जैन धर्म}} | |||
[[Category:दार्शनिक]][[Category:जैन_दर्शन]] | |||
[[Category:जैन धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]][[Category:दर्शन कोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Latest revision as of 12:54, 23 June 2014
हरिभद्र विक्रम संवत आठवीं शती के विश्रुत दार्शनिक तथा नैयायिक थे। कुछ विद्वानों ने इन्हें 'हरिभद्र सूरी' भी कहकर सम्बोधित किया है। हरिभद्र अप्रामाणिक जैन लेखकों में से एक थे, जो जैन सिद्धांतों तथा नीति पर संस्कृत तथा प्राकृत में अपनी आधिकारिक कृतियों के लिए विख्यात थे।
- आचार्य हरिभद्र चित्तौड़ (राजस्थान) के एक ब्राह्मण थे।
- उन्होंने संस्कृत शास्त्रों की व्यापक शिक्षा ग्रहण की थी।
- जैन धर्म स्वीकारने के बाद हरिभद्र ने मुनियों के श्वेतांबर मत में प्रवेश किया था।
- हरिभद्र ने अपनी कृति 'सद्दर्शनसमुच्चय' के लिए और प्राकृत भाषा के वाचिक साहित्य में भी विशेष योगदान दिया था।
- वे ग्रंथ जिनकी रचना आचार्य हरिभद्र द्वारा हुई मानी जाती है, निम्नलिखित हैं-
- अनेकान्तजयपताका
- अनेकान्तवादप्रवेश
- शास्त्रवार्तासमुच्चय
- षड्दर्शनसमुच्चय
- जैनन्याय
- यद्यपि उपरोक्त रचनाओं का कोई स्वतंत्र न्याय का ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है, किन्तु हरिभद्र के इन दर्शन ग्रंथों में न्याय की भी चर्चा मिलती है।
- हरिभद्र का षड्दर्शन-समुच्चय तो ऐसा दर्शन ग्रन्थ है, जिसमें भारतीय प्राचीन छहों दर्शनों का विवेचन सरल और विशद रूप में किया गया है तथा जैन दर्शन को अच्छी तरह स्पष्ट किया गया है। इसके द्वारा जैनेतर विद्वानों को जैन दर्शन का सही आकलन हो जाता है।
|
|
|
|
|
संबंधित लेख