वेदव्यास के अनमोल वचन: Difference between revisions
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* जो विपत्ति पड़ने पर कभी दुखी नहीं होता, बल्कि सावधानी के साथ उद्योग का आश्रय लेता है तथा समय आने पर दु:ख भी सह लेता है, उसके शत्रु पराजित ही हैं। ~ वेदव्यास | * जो विपत्ति पड़ने पर कभी दुखी नहीं होता, बल्कि सावधानी के साथ उद्योग का आश्रय लेता है तथा समय आने पर दु:ख भी सह लेता है, उसके शत्रु पराजित ही हैं। ~ वेदव्यास | ||
* जो मनुष्य नाश होने वाले सब प्राणियों में सम भाव से रहने वाले अविनाशी परमेश्वर को देखता है, वही सत्य को देखता है। ~ वेदव्यास | * जो मनुष्य नाश होने वाले सब प्राणियों में सम भाव से रहने वाले अविनाशी परमेश्वर को देखता है, वही सत्य को देखता है। ~ वेदव्यास | ||
* जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज़ की अपेक्षा करता है, वह सदा ही | * जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज़ की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। ~ वेदव्यास | ||
* जो मनुष्य जिसके साथ जैसा व्यवहार करे उसके साथ भी उसे वैसा व्यवहार करना चाहिए, यह धर्म है। ~ वेदव्यास | * जो मनुष्य जिसके साथ जैसा व्यवहार करे उसके साथ भी उसे वैसा व्यवहार करना चाहिए, यह धर्म है। ~ वेदव्यास | ||
* जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं, क्षमा करता है, वह अपनी और क्रोध करने वाले की महा संकट से रक्षा करता है। वह दोनों का रोग दूर करने वाला चिकित्सक है। ~ वेदव्यास | * जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं, क्षमा करता है, वह अपनी और क्रोध करने वाले की महा संकट से रक्षा करता है। वह दोनों का रोग दूर करने वाला चिकित्सक है। ~ वेदव्यास | ||
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* बलवती आशा कष्टप्रद है। नैराश्य परम सुख है। ~ व्यास | * बलवती आशा कष्टप्रद है। नैराश्य परम सुख है। ~ व्यास | ||
* बाणों से बिंधा हुआ तथा फरसे से कटा हुआ वन भी अंकुरित हो जाता है, किंतु कटु वचन कहकर वाणी से किया हुआ भयानक घाव नहीं भरता। ~ वेदव्यास | * बाणों से बिंधा हुआ तथा फरसे से कटा हुआ वन भी अंकुरित हो जाता है, किंतु कटु वचन कहकर वाणी से किया हुआ भयानक घाव नहीं भरता। ~ वेदव्यास | ||
* बैर के कारण | * बैर के कारण उत्पन्नहोने वाली आग एक पक्ष को स्वाहा किए बिना कभी शांत नहीं होती। ~ वेदव्यास | ||
* न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक-दूसरे से बंधे हुए हैं। ~ वेदव्यास | * न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक-दूसरे से बंधे हुए हैं। ~ वेदव्यास | ||
* निरोगी रहना, ऋणी न होना, अच्छे लोगों से मेल रखना, अपनी वृत्ति से जीविका चलाना और निभर्य होकर रहना- ये मनुष्य के सुख हैं। ~ वेदव्यास | * निरोगी रहना, ऋणी न होना, अच्छे लोगों से मेल रखना, अपनी वृत्ति से जीविका चलाना और निभर्य होकर रहना- ये मनुष्य के सुख हैं। ~ वेदव्यास |