क़ुतुबशाही वंश: Difference between revisions

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'''क़ुतुबशाही वंश''' की स्थापना 1518 ई. में कुली क़ुतुबशाह के द्वारा की गई थी, जो कि एक तुर्की अधिकारी था। यह [[बहमनी वंश]] के सुल्तान [[मुहम्मद बहमनी शाह तृतीय|मुहम्मदशाह तृतीय]] तथा उसके उत्तराधिकारी [[महमूद शाह बहमनी|महमूदशाह]] के राज्यकाल में बहमनी राज्य के पूर्वी भाग का हाकिम था। 1687 ई. में [[मुग़ल]] बादशाह औरंगज़ेब ने इस वंश का अन्त कर दिया।
'''क़ुतुबशाही वंश''' की स्थापना 1518 ई. में कुली क़ुतुबशाह के द्वारा [[गोलकुंडा]] में की गई थी, जो कि एक तुर्की अधिकारी था। यह [[बहमनी वंश]] के सुल्तान [[मुहम्मद बहमनी शाह तृतीय|मुहम्मदशाह तृतीय]] तथा उसके उत्तराधिकारी [[महमूद शाह बहमनी|महमूदशाह]] के राज्यकाल में बहमनी राज्य के पूर्वी भाग का हाकिम था। 1687 ई. में [[मुग़ल]] बादशाह [[औरंगज़ेब]] ने इस वंश का अन्त कर दिया।


*महमूदशाह की मृत्यु पर कुली क़ुतुबशाह ने अपने को स्वतंत्र सुल्तान घोषित कर दिया और 'क़ुतुबशाही वंश' की स्थापना की।
*महमूदशाह की मृत्यु पर कुली क़ुतुबशाह ने अपने को स्वतंत्र सुल्तान घोषित कर दिया और 'क़ुतुबशाही वंश' की स्थापना की।

Revision as of 08:43, 26 January 2012

क़ुतुबशाही वंश की स्थापना 1518 ई. में कुली क़ुतुबशाह के द्वारा गोलकुंडा में की गई थी, जो कि एक तुर्की अधिकारी था। यह बहमनी वंश के सुल्तान मुहम्मदशाह तृतीय तथा उसके उत्तराधिकारी महमूदशाह के राज्यकाल में बहमनी राज्य के पूर्वी भाग का हाकिम था। 1687 ई. में मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब ने इस वंश का अन्त कर दिया।

  • महमूदशाह की मृत्यु पर कुली क़ुतुबशाह ने अपने को स्वतंत्र सुल्तान घोषित कर दिया और 'क़ुतुबशाही वंश' की स्थापना की।
  • उसके द्वारा स्थापित इस वंश ने 1518 ई. से 1687 ई. तक राज्य किया।
  • इस वंश के प्रारम्भिक सुल्तान जमशेद (1543-1550), इब्राहीम (1550-1580) तथा मुहम्मद कुली (1587-1611) थे।
  • जमशेद पितृघातक था, उसने पिता का वध करके सिंहासन प्राप्त किया था।
  • इब्राहीम क़ुतुबशाही वंश का सबसे योग्य शासक सिद्ध हुअ था।
  • उसने 1565 ई. में तालीकोट की लड़ाई में विजयनगर साम्राज्य को पराजित करने में भाग लिया था।
  • अयोग्य शासकों के कारण 1687 ई. में औरंगज़ेब ने ]क़ुतुबशाही वंश] का उच्छेद कर दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 94 |


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